श्वेता पुरोहित :-
(रामप्रेममूर्ति श्रीमद् गोस्वामी तुलसीदासजी की मुंख्यतः श्रीमद बेनीमाधवदासजीविरचीत मूल गोसाईचरित पर आधारीत अमृतमयी लीलाएँ)
गतांक से आगे –
राम रसिया हूँ मैं, राम सुमिरन करू, सिया राम का सदा ही मैं चिंतन करू सच्चा आनंद है ऐसे जीने में श्री राम, श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में
अगली कथा कहते हुए भक्तिरस बोधिनीकार ने लिखा है-
दिल्लीपति पातसाह असदी पठाये लैन ताको सो सुनायौ सूबे बिप्र ज्यायौ जानियै ।
देखिबेकॅ चाहै नीकै सुख सों निबाहै, आय कही वहु बिनै गही चले मन आनियै ॥
पहुँचे नृपति पास आदर प्रकाश कियौ, दियौ उच्च आसन लै बोल्यो मृदु बानियै ।
दीजै करामात जग ख्यात सब मात किये कही झूठ बात एक राम पहिचानियै ॥
उन दिनों दिल्लीपर अकबर का शासन था । भारत के गौरव महाराणा प्रतापसिंहजी गोस्वामीजी के पास पहुँचे और अत्यंत दीन होकर प्रार्थना करने लगे ‘ गोस्वामीजी ! आप जैसे समर्थ संत गुफाओं में ही छिपे रहेंगे तो देश और धर्म की रक्षा कौन करेगा? आप देख रहे हैं की अकबर अपनी कूटनीतियों से भाई भाई मे भी भेद डालकर हम लोगों की शक्ति को एकदम जर्जरीत करके हमारे धर्म को मिटाकर स्वनिर्मित दिन-ए-इलाही का प्रचार करने लगा है, भौतिक शक्ति से उसका पराभव अब सर्वथा असंभव हो गया है, अतः अब आप जैसे सिद्ध संत ही अपनी आध्यात्मिक शक्ति से ही उसके प्रभाव को दबा सकते है ।
‘गोस्वामीजी ने उन्हें आश्वासन दिया की वे अवश्य दिल्ली जाएँगे। उन दिनों गोस्वामीजी दिल्ली जाकर अकबर एवं मानसिंह को समझाने की बात सोच ही रहे थे कि अकबर के यहाँ से कुछ सिपाही गोस्वामीजी के पास आ गए, उन्होंने कहा ‘आपके द्वारा किये गए बहुत से चमत्कारों की वार्ता सुनकर बादशाह अकबर आपके दर्शन करना चाहते हैं।’
गोस्वामीजी ने इसे सुंदर अवसर जानकर स्वीकृति दे दी और उन राजदूतों को विदा कर दिया और स्वयं बहुत से संतों को संग लेकर नौका से दिल्ली के लिए प्रस्थान किया।
जब प्रयाग से आगे नौका यमुना में चली तो एक यमुना तटवर्ती नरेश ने आपका शुभागमन सुनकर आगे आकर बड़ा स्वागत किया और घर पर चलने के लिए बहुत अनुनय विनय की। उस समय गोस्वामीजी रामनाम के जाप में मग्न थे, संग के संतों ने राजा का प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया।
तब राजाने एक युक्ति सोची । साथ में कुछ सिपाहियों को लेकर नाव को घेर लिया और बोला ‘ आप लोग राजकर दिये बिना आगे नहीं जा सकते हैं।’ सब संत चिंतीत हुए। जब गोस्वामीजी जपसे निवृत्त हूए तो उन्होंने राजा से पूछा ‘हम साधु लोग आपको क्या राजकर दें ? ‘राजा ने हाथ जोडकर कहा ‘आप लोगों को मेरे घर चलना होगा।’
श्री गौरी शंकर की जय 🙏 🚩
सियावर रामचन्द्र की जय 🙏 🚩
पवनसुत हनुमान की जय 🙏🚩
रामप्रेममूर्ति तुलसीदासजी की जय 🙏🌷