श्वेता पुरोहित। (रामप्रेममूर्ति श्रीमद् गोस्वामी तुलसी दास जी की मुख्यतः श्रीमद बेनीमाधवदासजीविरचीत मूल गोसाईचरित पर आधारीत अमृतमयी लीलाएँ )
माता हुलसी ने चुनियाँ से कहा ‘सखी ! अब तो मेरे प्राण-पखेरू उडना चाहते है। अतः तुम मेरे शिशु को लेकर अभी ही अपनी ससुराल हरिपुर चली जाओ और उसका अच्छी प्रकार से लालन-पालन करना, भगवान तुम्हारा मंगल करेंगे।
नहीं तो सखी ! मेरे मरनेपर ये सब पढतमुर्ख इस बालक को जीवित ही जमुना मे बहा देंगे। अभी अंधेरा है, लोग गहरी नींद सो रहे है, उनके जगने से पहले तुम यहाँ से निकल जाओ।’ ऐसा कहकर माता हुलसी ने अपना प्राण-धन नवजात शिशु दासी की गोद में दे दिया और उसके पालन-पोषण के लिए अपने आभूषण भी दासी को दे दिये। वह चुपचाप बालक को लेकर चली गईं। माता की वेदना पुत्र वियोग से और बढ़ गईं।
उन्होंने हाथ जोडकर रमेश, महेश और विधाता से बिनती की कि आप लोग मेरे प्राण-निधी पुत्र की रक्षा करें, और एकादशी को ब्राह्म मुहूर्त में शरीर-त्याग कर वह भगवद्धाम चली गईं।
चुनियाँ ने पाँच घडी दिन चढते-चढते अपने ससुराल पहुँचकर अपनी सास मुनियाँ के चरणों में प्रणाम किया और यहाँ का समस्त वृत्तांत कह सुनाया। सास ने उसके सद्भाव का समर्थन किया। बालक का बडे लाड प्यार से लालन-पालन होने लगा। परंतु दैव-दुर्विलासवश जब बालक पाँच वर्ष पाँच महीने का हुआ तो चुनियाँ भी सर्प द्वारा डसे जाने से सुरलोक सिधार गई, और दूसरा कोई वैसी सार-सँभाल करनेवाला नही था, अतः बालक अनाथ हो गया।
गाँव के लोगों ने एक नाई के द्वारा पंडित आत्मारामजी को संदेश भेजा, परंतु पंडितजी ने एकदम कोरा जवाब दिया कि हम ऐसे बालक को लेकर क्या करेंगे जो अपने पालन-पोषण करनेवाले का ही नाश कर देता है। अतः वह जीवे अथवा मरे मुझे इसका कोई सोच नही है।’ नाई निराश होकर लौट आया।
आत्मारामजी के इस कथन से गाँव के लोग भी डर गये, कोई भी उस अनाथ बालक को द्वार पर खडा नहीं होने देता था, सबने उसपर से दया दृष्टि हटा ली, लोग उसकी परछाई से डरने लगे। दाने-दाने के लिये द्वार-द्वार भटकते बालक को देखकर छाती फटने लगती थी, परन्तु हाय रे दुर्भाग्य! दया को भी निर्दय बना दिया। श्रीमद गोस्वामी तुलसीदासजी ने अपनी इस दीन दशा का मर्मस्पर्शी वर्णन अपनी रचनाओं में कुछ जगह किया है ।
यथा:
बारेंते ललात-बिललात द्वार-द्वार दीन, जानत हौ चारि फल चारि ही चनक को । फिर मैं बालपन से ही अत्यंत दीन होने के कारण द्वार-द्वार ललचाता और बिल-बिलाता फिरा, (किसी ने दयापरवश होकर दिये हुए) चने के चार दानों को ही अर्थ, धर्म, काम और मोक्षरूप चार फल समझ लेता था।
जड़ चेतन जग जीव जत सकल राममय जानि।
बंदउँ सब के पद कमल सदा जोरि जुग पानि॥
जय श्री तुलसीदासजी
जय श्रीराम
क्रमशः… (भाग – ६)