श्वेता पुरोहित-
(रामप्रेममूर्ति श्रीमद् गोस्वामी तुलसीदासजी की मुंख्यतः श्रीमद बेनीमाधवदासजी विरचीत मूल गोसाईचरित पर आधारीत अमृतमयी लीलाएँ)
गतांक से आगे –
एकबार काशी नरेश के इकलौते युवराज ने सभी अस्त्र शस्त्र में निष्णात होने पर पिता से मृगया के लिए आज्ञा माँगी। प्रथम तो पुत्रप्रेम वश राजा ने अनुमति नहीं दी। परंतु जब हठ देखा तो राज ज्योतिषी पंडित गंगाराम को बुलाया और निवेदन किया कि आप ऐसा मुहूर्त देखें जिसमें राजकुमार शिकार से सकुशल घर लौट आवें।
अस प्रभु दीन बंधु हरि कारण रहित दयाल
तुलसी दास सठ ताहि भज छाँड़ि कपट जंजाल
पंडित गंगाराम जी के निर्देशानुसार राजकुमार ने चुने हुए सैनिकों के साथ शुभ घड़ी में प्रस्थान किया। विंध्याचल के गहन वन में जाकर पड़ाव पडा। राजकुमार कुछ अश्वारोहियों को संग लेकर शिकार की टोह में आगे बढ़े।
संयोग की बात, राजकुमार का घोड़ा एकाएक चलते चलते बिदक गया। कुमार ने तुरंत उसे एक सैनिक को दे दिया और सैनिक का घोड़ा स्वयं लेकर घोर वन में प्रविष्ट हो गए। आगे चलकर सैनिकों से साथ छूट गया, दैव दुर्विलास वश उस सैनिक को सिंह ने मार डाला और घोड़ा घायल होकर, भागकर पड़ाव पर आ गया।
लोगों ने पहचान लिया यह तो राजकुमार का अश्व है। हो न हो, राजकुमार को किसी हिंसक जानवर ने मार डाला और घोड़ा घायल होकर भाग आया। फिर तो सब लोग दुखी होकर घर लौट आए और उन्होंने यह समाचार राजा से कहा, राजा तो सुनते ही मूर्च्छित हो गए और जब बहुत उपचार करने पर सचेत हुए तो उन्हें राज जोतिषी पर अपार क्रोध हुआ।
तुरंत ही उन्हें पुनः दरबार में बुलाया गया। राजा ने दाँत पीसकर कहा – ‘यदि राजकुमार नहीं लोटे तो आपको भी फाँसी पर चढ़ाया जायगा। आपने मुहूर्त ठीक नहीं विचारा। ज्योतिषीजी ने एकदिन की मुहलत माँगी और अत्यंत उदास होकर घर को आये। मुहूर्त पर उन्होंने पुनः पुनः विचार किया, परंतु कोई दोष दिख नहीं पडा। पंडितजी हैरान थे कि फिर ये अमंगल हुआ कैसे ?
पंडितजी की गोस्वामीजी के साथ मित्रता थी। दोनों प्रतिदिन सायंकाल को गंगातट पर टहलने जाया करते थे। परंतु आज गोस्वामीजी को वे नहीं मिले। तब गोस्वामीजी पता लगाने उनके घर गये , तो सब समाचार ज्ञात हुआ। गोस्वामीजी ने पंडितजी को प्रोत्साहित किया कि चलिये, पहले टहल आवें फिर बाद में इस पर विचार करेंगे।
दोनों टहल कर घर आये। गोस्वामीजी ने छः घंटे में ‘रामाज्ञा प्रश्न’ ग्रंथ की रचना की जिसमें शकुनविचार कहे हैं। उसके शकुन को देखकर गोस्वामीजी ने कहा ‘कल दोपहर तक राजकुमार निश्चय घर लौट आवेंगे।
पंडितजी की जान में जान आ गयी। तुरंत राजा के पास जाकर बल देकर कहा – ‘मैनें मुहूर्त बढ़िया विचारा है। राजकुमार का कोई अमंगल नहीं हो सकता है, वे दोपहर तक घर आयेंगे।’
राजा ने पंडितजी को हिरासत में रखा। सचमुच निर्दिष्ट समय पर राजकुमार कई सिंहों का शिकार करके सकुशल लौट आये। सब लोग आनंदित हो गए। राजा ने पंडितजी के चरणों में पड़कर धृष्टता के लिए क्षमा माँगी और प्रसन्न होकर एक लाख रुपये भेंट किए।
पंडितजी ने वह धन नहीं लिया तो राजा ने घर भिजवा दिया। तब पंडितजी ने वह धन लाकर गोस्वामीजी के चरणों मे डाल दिया। जब गोस्वामीजी ने लेना स्वीकार नहीं किया तो अंत में निर्णय हुआ की इस द्रव्य से काशी में श्रीहनुमानजी के दस विग्रहों की प्रतिष्ठा कराई जाय और शेष का भण्डारा कर दिया जाय। और ऐसा ही किया गया
श्री गौरी शंकर की जय 🙏 🚩
सियावर रामचन्द्र की जय 🙏 🚩
पवनसुत हनुमान की जय 🙏🚩
रामप्रेममूर्ति तुलसीदासजी की जय 🙏🌷
क्रमशः (भाग – ५१)