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India Speak Daily > Blog > Blog > भाषा और साहित्य > तुलसी लीलामृत भाग – (५३ और ५४)
भाषा और साहित्यसनातन हिंदू धर्म

तुलसी लीलामृत भाग – (५३ और ५४)

ISD News Network
Last updated: 2024/07/26 at 11:54 AM
By ISD News Network 68 Views 7 Min Read
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7 Min Read
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श्वेता पुरोहित :-

(रामप्रेममूर्ति श्रीमद् गोस्वामी तुलसीदासजी की मुंख्यतः श्रीमद बेनीमाधवदासजी विरचीत मूल गोसाईचरित पर आधारीत अमृतमयी लीलाएँ)

गतांक से आगे –

एक बार कोई ब्राह्मण जिसका नाम मूल गोसाई चरित में विप्रचन्द बताया गया है, किसी की हत्या करके फिर उसके प्रायश्चित्त स्वरुप बहुत से तीर्थों में घूमता फिरता काशी को आया। वह मुख से पुकार कर कहता था, ‘राम राम ! मैं हत्यारा हूँ, मुझे भिक्षा दीजिये।’

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गोस्वामीजी ने उसके मुख से अपने इष्ट का अतिप्रिय नाम सुनकर अपने निवास स्थान पर बुला लिया और उसे अपनी पंक्ति में बिठाकर उसे रघुपति का प्रसाद खिलाया, इस प्रकार मानो उन्होंने उसे शुद्ध ही घोषित कर दिया। फिर उन्होंने राम नाम का उच्चारण करने वालों की महिमा में यह दोहा कहा-

तुलसी जाके बदन ते धोखेहुँ निकसत राम ।
ताके पग की पगतरी, मेरे तन को चाम ॥

हत्यारे ब्राह्मण को अपनी पंक्ति में बिठाकर भोजन करने के बाद गोस्वामीजी ने राम नाम का उच्चारण करनेवालों एवं अपने आराध्य श्रीरघुपती की कीर्ति का गान किया।

जड़ चेतन जग जीव जत सकल राममय जानि।
बंदउँ सब के पद कमल सदा जोरि जुग पानि॥

काशी के ब्राह्मणों ने जब यह बात सुनी, तो उन्होंने एक सभा की और उसमें गोस्वामीजी से पूछा ‘प्रायश्चित पूरा हुए बिना इस हत्यारे का पाप कैसे दूर हो गया? आपने जिसे बहिष्कृत किया गया है उस ब्राह्मण के साथ बैठकर भोजन कैसे किया ?’

गोस्वामीजी ने उत्तर दिया ‘आप लोग धर्मशास्त्रों को केवल पढ़ते हैं, उसके वास्तविक रहस्य को जानकर विश्वासपूर्वक हृदय में धारण नहीं करते हैं। इसी से आप का मन और मत कच्चा है। वह अज्ञान-अंधकार को दूर नहीं कर सकता है। (शास्त्रों में असंख्य स्थानों पर रामनाम की अलौकिक महिमा का वर्णन मिलता है।
यथा –

रामेति नाम यच्छ्रोत्रे विश्रम्भादागतं यदि ।
करोति पापसंदाहं तूलं वह्निकणो यथा ॥

अर्थात्‌ –
जिसके कानों में ‘राम’ यह नाम अकस्मात भी पड़ जाता है, उसके पापों को वह वैसे ही भलीभाँति जला देता है, जैसे अग्नि का एक ही छोटा सा कण (चिनगारी) रुई को।

  • पद्मपुराण, पातालखण्ड, २०। ८०

और इस तरह के बहुत से श्लोक हैं। पर इन ब्राह्मणों जैसे कथित विद्वान ऐसे श्लोकों को या तो भावुक मानकर या फिर अतिश्योक्ति मानकर उसे वास्तविक नहीं मानते।

यहाँ पर गोस्वामीजी ऐसे लोगों की आलोचना करते हुए कहते हैं कि कम से कम शास्त्र को तो सच मानो। अपने हिसाब से शास्त्रों का अर्थ करोगे तो अज्ञान कभी दूर नहीं होगा।)

भक्तिरसबोधिनी में आगे का वर्णन है-

देखी पोथी बाँच नाम महिमा हूँ कहि साँच ऐपै हत्या करै कैसे तरे कहि दीजियै ।
आवै जौ प्रतीति कहौ कही याके हाथ जेवै शिवजू को बैल तब पंगति मे लिजिए ॥
थार में प्रसाद दियौ चले जहाँ पन कियौ बोले आप नाम कै प्रसाद मति भीजियै ।
जैसे तुम जानों तैसी कैसे के बखानों अहो सुनिकै प्रसन्न पायो जै जै धुनि रीझियै ॥

पंडितों ने कहा हम लोगों ने शास्त्रों में राम नाम की महिमा पढ़कर देखी है, सो सच्ची है। परंतु ये हत्यारा ब्राह्मण अब पापमुक्त हो गया है ये आपने कैसे मान लिया?’

गोस्वामीजी ने कहा ‘आप लोगों को किस प्रकार इसकी प्रतीति करायी जाय सो कहिए।’ इस पर पंडित बोले ‘ यदि इसके हाथ से शिवजी के नंदी भोजन करेंगे तो हम लोग इसे पापमुक्त मानकर इसे अपनी पंक्ति में बिठा लेंगे।

गोस्वामीजी ने इस बात को स्वीकार किया और उस ब्राह्मण के हाथ में प्रसाद का थाल सजा दिया। सब लोग काशी के ज्ञानवापी के निकट नन्दीश्वर के पास पहुँचे, जहाँ की शर्त रखी थी।

गोसाईंजी ने कहा ‘हे नन्दीश्वर ! आपकी बुद्धि श्रीराम नाम के प्रताप प्रभाव से सर्वदा सरस रहती है। जिस प्रकार जितनी श्रीरामनाम की महिमा को आप जानते हैं, उस प्रकार उतनी महिमा का वर्णन मैं किसी प्रकार से भी नहीं कर सकता हूँ।

(यदि यह ब्राह्मण राम राम के प्रताप से शुद्ध हो गया है तो आप इसके हाथ से प्रसाद स्वीकार करके नाम महिमा को प्रमाणित कीजिए)’

यह प्रार्थना सुनकर नन्दीश्वर ने प्रसन्न होकर प्रसाद खा लिया। सभी लोगों ने रामचंद्रजी की एवं रामनाम की जय जयकार की और तुलसीदासजी की नाम निष्ठा पर बलिहार हो गए। निंदकों ने गोस्वामीजी के पैरों पर पड़कर क्षमा माँगी।

कमलभव नाम का एक ब्राह्मण गोस्वामीजी के सत्संग में कभी कभी आया करता था। एक बार उसने गोस्वामीजी से भगवान राम के दर्शन करने का उपाय पूछा, गोस्वामीजी ने सहज भाव से कहा ‘भैया भगवान का भजन करो ।

भजत कृपा करिहहिं रघुराई ।

अर्थात्‌ –
भगवान का दर्शन तो कृपासाध्य ही है ।’

ब्राह्मण हठ करने लगा कि आप कोई ऐसा उपाय बतावें जिससे अति शीघ्र दर्शन हों।’

गोस्वामीजी ने कहा कि यदि ऐसी बात है तो वृक्ष के नीचे ये त्रिशूल गाड़कर, वृक्ष पर से त्रिशूल पर कूद पड़ो, तो दर्शन हो जायेगा।

ब्राह्मण एकांत स्थान पर वन में जाकर वृक्ष के नीचे त्रिशूल गाड़कर जब उपर से कूदने का विचार किया तो त्रिशूल की अनी देखकर उसकी हिम्मत छूट गई। वह नीचे उतर आया। फिर हिम्मत की तो फिर हार गया। ऐसे ही वह कई बार वृक्ष पर चढ़ा और उतरा।

उसी मार्ग से एक पछाहीं वीर घोड़े पर चढ़ा जा रहा था। उसने यह तमाशा देखा तो उसके समीप आकर पूछा। ब्राह्मण ने सही सही सब बता दिया। उसको विश्वास हो गया कि जब गोस्वामीजी ने कहा है तो अवश्य दर्शन हो जाएगा।

बस उसने अपना सब सामान ब्राह्मण को दे दिया और स्वयं वृक्ष पर चढ़कर गोस्वामीजी का स्मरण कर कूद पड़ा। भक्त वत्सल भगवान ने उसके विश्वास पर रीझकर उसे अपनी गोद में थाम लिया और दर्शन देकर उसे कृतार्थ कर दिया।

श्री गौरी शंकर की जय 🙏 🚩
सियावर रामचन्द्र की जय 🙏 🚩
पवनसुत हनुमान की जय 🙏🚩
नन्दीश्वर की जय 🙏🚩
रामप्रेममूर्ति तुलसीदासजी की जय 🙏🌷

क्रमशः (भाग – ५५)

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ISD News Network July 22, 2024
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