जब से मानव बुद्धिशाली हुआ। उसने तारों की भाषा सीखी। तारों के अपार संसार को देख उसके मन में एक प्रश्न ने जन्म लिया। वह प्रश्न था ‘वहां तारों के पार कौन रहता है?’ दूसरा प्रश्न पहले प्रश्न से उत्पन्न हुआ। ‘क्या हम इस ब्रम्हांड में अकेले बुद्धिमान जीव हैं?’ इस दूसरे प्रश्न से तीसरा प्रश्न ये जन्मा क़ि ‘हम कहाँ से आए हैं?’ ये तीनों प्रश्न आज भी अजर-अमर हैं।
मानव की वर्तमान सभ्यता को बीस हज़ार वर्ष होने आए हैं लेकिन हम अब तक उस सर्वोत्तम बायोलॉजिकल सूट की थाह नहीं पा सके हैं, जिसे हम ‘शरीर कहते हैं। हम अब तक समुद्र की सही गहराई को नहीं माप सके हैं। पृथ्वी के करोड़ों वर्ष के इतिहास में कितनी सभ्यताएं यहाँ विलीन हो गई, इसका भी कोई उत्तर हमारे पास नहीं है।
यदि इस अनंत ब्रम्हांड को हम एक जंगल मान ले तो हम ऐसे कीट हैं, जो अभी अपने जन्म वृक्ष को ही माप नहीं सका है। इतिहास के लिखित प्रमाण देखे तो यूएफओ (unidentified flying object) को देखे जाने की घटनाएं मध्यकाल से भी पूर्व से होती आ रही हैं। सन 2020 का साल केवल कोरोना काल के लिए ही विशेष नहीं है। इस वर्ष यूएफओ देखे जाने की घटनाओं में जबरदस्त बढ़ोतरी देखी गई है।
कुछ दिन पूर्व अमेरिका के utah में एक धातु का मोनोलिथ (एक ही पत्थर या धातु से बनी संरचना, जिसमे किसी दूसरे पत्थर या धातु का जोड़ न हो) पाने के बाद विश्वभर के मीडिया में ये खबर प्रमुखता के साथ दिखाई गई थी। कुछ खोजियों ने बड़ी मेहनत कर इस मोनोलिथ को ढूंढ निकाला था। दो दिन पूर्व ही वह सुंदर मोनोलिथ रहस्यमयी ढंग से गायब हो गया। सरकारी विभाग ने इसे निकालने से साफ़ इंकार किया।
इस निर्जन मरुस्थल में बड़े सींगों वाली भेड़े घूमती हैं, इंसान नहीं। वन विभाग के हैलीकॉप्टर यहाँ से यदाकदा इन भेड़ों पर निगरानी करने के लिए निकलते हैं। हैरत की बात है कि ऐसे वीराने में कौन इतना सुंदर चमकदार मोनोलिथ पत्थर में गाड़कर चला गया। मुझे हैरानी है कि किसी खोजी, या सरकारी विभाग ने इस मोनोलिथ की दो विशेषताओं पर ध्यान नहीं दिया।
मोनोलिथ को देखने कुछ लोग उस पर चढ़ गए थे। लगभग 100 से 200 किलो का भार ये मोनोलिथ सह रहा था। एक खोजी ने इसके शार्प किनारों पर ध्यान दिलाया और ये भी बताया कि ये अंदर से खोखला है। उसने इसे कार्डबोर्ड बॉक्स कहा। सोचिये अंदर से खोखला ये मोनोलिथ आसानी से 200 किलो का भार सह रहा था। मोनोलिथ गायब होने के कुछ ही घंटों के अंदर पृथ्वी पर एक और मोनोलिथ प्रकट हुआ।
अबकी बार ये मोनोलिथ रोमानिया में प्रकट हुआ है। गत शनिवार अमेरिका वाला मोनोलिथ गायब होने के बाद ये नया वाला सोमवार को अस्तित्व में आया है। इसकी ऊंचाई 13 फ़ीट बताई जा रही है। ये एक पुरातात्विक साइट पर प्रकट हुआ है। ये जगह विश्व विरासत में शुमार की जाती है। नया वाला मोनोलिथ ग्रेफिटी युक्त है। हालांकि मुझे इसके फेक होने की संभावना दिखाई देती है। ये जिस तरह से जमीन में गाड़ा गया है, वह एक अनगढ़ तरीका है।
जबकि अमेरिका में मिला मोनोलिथ बहुत ही सटीक ढंग से पत्थर में गाड़ा गया था। ऐसा लगता ही नहीं था कि उसे गाड़ा गया हो। उसकी फिनिशिंग जबरदस्त थी। दूसरी बात इस मोनोलिथ पर बड़ी ही लचर किस्म की कार्विंग्स की गई है, जो किसी भाषा से मेल भी नहीं खाती है।
अब तक की खोज से संभावना यही है कि रोमानिया में मिला मोनोलिथ किसी की शरारत भर है। रोमानिया की विश्व विरासत को लोगों के सामने लाने के लिए ये खेल खेला गया हो। हालांकि यूएफओलॉजिस्ट( यूएफओ विशेषज्ञ) मानते हैं कि अमेरिका में मिला मोनोलिथ खोज का विषय था। इस कोरोना साल में इस मोनोलिथ के अलावा एक और खोज हुई है, जो तर्कों के आधार पर विश्वसनीय मानी जा सकती है।
सन 1961 में डॉ फ्रेंक ड्रेक ने एक थ्योरी प्रस्तुत की। ये ड्रेक इक्वेशन (Drake equation) के नाम से बहुत प्रसिद्ध हुई। श्रीमान फ्रेंक सशक्त अनुमान लगाना चाहते थे कि जिस महा विशाल आकाशगंगा में हमारा छोटा सा ग्रह पृथ्वी है, उसमे पृथ्वी जैसे रहने योग्य (habitable) ग्रह और कितने हो सकते हैं।
वे पता लगाना चाहते थे कि ऐसे कितने ग्रह हैं, जिन्हे अपने सूर्य और एक संतुलित सौरमंडल मिला हुआ है। जिनके तालमेल से वहां एक बुद्धिमान जीवन जन्म ले सके। फ्रेंक ने ये पता लगाने के लिए संभावना सिद्धांत (Probability theory) की सहायता ली। संभावना सिद्धांत मुख्यतः गणित पर आधारित होता है।
इसकी गणनाएं गणितीय होती हैं। उनका अनुमान था कि हमारी आकाशगंगा (Milky way) में एक हज़ार से लेकर एक करोड़ ऐसे ग्रह हो सकते हैं, जिन पर हमारे जैसा जीवन संभव हो सकता है। 1961 में दी गई इस अनुमानित थ्योरी का कोई ठोस आधार नहीं था किन्तु फिर भी फ्रेंक महोदय को कई समर्थक मिल गए।
फ्रेंक ने उस समय ब्रम्हांड में ऐसे ग्रहों को खोजने के लिए गणितीय अनुमान लगाया था, जहाँ बुद्धिमतापूर्ण जीवन हो सकता है। ये एक दिलचस्स्प थ्योरी थी, जिसमे बताया गया कि कुछ ग्रहों पर जीवन शुरु ही हो रहा होगा। कुछ ग्रहों पर सम्भवतः पाषाण युग चल रहा होगा। और बहुत से ऐसे होंगे, जो पहिये के अविष्कार से आगे बढ़ चुके होंगे।
नासा ने एक प्लेनेट हंटिंग स्पेसक्रॉफ्ट आज से 9 साल पूर्व पृथ्वी से रवाना किया था। केप्लर नामक ये स्पेसक्रॉफ्ट हमारी आकाशगंगा में एक लंबी दूरी तय कर चुका है और लगातार डाटा भेज रहा है। केप्लर उन ग्रहों की जानकारियां भेजता है, जिनमे उसे पृथ्वी जैसी समानताएं मिलती है।
हालांकि अब तक केप्लर को हमारी पृथ्वी जैसा सौरमंडल नहीं मिला है। एक दुसरा स्पेसक्रॉफ्ट हमारी आकाशगंगा में ऐसे ग्रहों को खोज रहा है, जिन पर जीवन संभव है। ध्यान रहे ये दोनों मानव रहित स्पेसक्रॉफ्ट है। अब तक मानव ऐसी अंतहीन यात्राओं के लिए तैयार नहीं हुआ है। Gaia spacecraft यूरोपियन स्पेस एजेंसी का स्पेसक्रॉफ्ट है। इसकी सहायता से पता चला है कि हमारी ही आकाशगंगा में बीस प्रकाश वर्ष की दूरी पर ऐसे ग्रह मिले हैं, जिनका अपना सौरमंडल है।
मानव ने ब्रम्हांड में जीवन की खोज में अरबों रुपया खर्च कर डाला है। विभिन्न देशों की स्पेस एजेंसियां लगातार ऐसे अभियान चलाती रहती है। हमे इतना तो ज्ञात हो गया है कि ब्रम्हाण्डों के इस गुच्छे में हम अकेली प्रजाति नहीं है।
इस गुच्छे में इतनी सभ्यताएं विकास कर रही हैं, जिसका अनुमान भी हम नहीं लगा सकते। इस गुच्छे को हमने बस अभी पहचानना ही शुरु किया है। इन पहेलियों के कुछ जवाब पृथ्वी पर स्थित प्राचीन संरचनाओं में कैद हैं और कुछ हमें खोजने हैं। अमेरिका में मिला मोनोलिथ संभवतः पृथ्वी पर कोई नहीं बना सकता था।
वह कोई मानव स्कल्प्चर नहीं था। उसकी कुछ विशेषताएं बताती थी कि मानव को ऐसी वस्तु बनाने के लिए बहुत दिमागी माथापच्ची करनी पड़ती। जैसे आज विश्व का कोई भी इंजीनियर एलोरा का मोनोलिथ या ग्रेट पिरामिड नहीं बना सकता। वह विज्ञान उनके साथ चला गया। हम अपने विज्ञान से चीजों को देखते हैं।
Useful information
Thanks Amitev