पीरियड फिल्मों को बनाने के हिन्दी फिल्मों के इतिहास को बारीकी से देखा जाए तो चुनिंदा फ़िल्में ऐसी हैं जो दर्शक को किसी विशेष कालखंड में होने का आभास करवा सकी हैं। पीरियड फिल्म की सफलता यही होती है कि दर्शक खुद को उस कालखंड में होने का अनुभव कर सके। आज आमिर खान और अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘ठग्स ऑफ़ हिन्दोस्तान’ का प्रोमो लॉन्च किया गया। प्रोमो देखने के बाद इस फिल्म को लेकर जितनी उत्सुकता थी, जाती रही। आमिर खान और अमिताभ बच्चन जैसे नामी सितारों के कारण शायद ये चल भी जाए लेकिन पीरियड फिल्मों में जैसी उत्कृष्टता दिखाई देनी चाहिए, वह नदारद है।
ठग्स ऑफ़ हिन्दोस्तान ट्रेलर
हॉलीवुड की फिल्मों में आपने देखा होगा कि पीरियड फिल्म बनाते समय वे आर्ट डायरेक्शन में बहुत बारीकी से काम करते हैं। एक एक शॉट को ध्यान से चुना जाता है। यदि किसी सीक्वेंस में कम्प्यूटर जनित छवि का सहारा लेना हो तो उस पर सौ बार विचार किया जाता है। हिन्दी फिल्मों में ये गहराई दिखाई दी हैं लेकिन बदकिस्मती से ऐसी फिल्मों को उँगलियों पर गिना जा सकता है। कमल हासन की ‘हिंदुस्तानी’ फिल्म का एक सीक्वेंस विशेष तौर पर ब्लैक एंड व्हाइट में फिल्माया गया था।
ये सीक्वेंस उन तमाम पीरियड फिल्मों पर भारी पड़ता है जो किसी एक कालखंड को लेकर बनाई गई थी। आशुतोष गोवारीकर की ‘लगान’, सत्यजीत राय की ‘शतरंज के खिलाड़ी’, जोधा अकबर, गोविन्द निहलानी की तमस, एस.राजामौली की ‘बाहुबली: द कन्क्लूजन’,’मगधीरा’, परेश मोकाशी की ‘हरिश्चन्द्राची फैक्टरी’ अब तक की श्रेष्ठ कालखंड फ़िल्में मानी जाती हैं।
दर्शक को एक विशिष्ट कालखंड में प्रविष्ट कराने के लिए बड़े जतन की आवश्यकता होती है। स्क्रीनप्ले लेखक के साथ ड्रेस डिजाइनर और आर्ट डाइरेक्टर का सबसे बड़ा योगदान होता है। एक छोटी सी गलती दर्शक का सम्मोहन भंग कर देती है। मनमोहन देसाई की फिल्म ‘मर्द’ के एक दृश्य में अमिताभ के तांगे के पीछे स्कूटर चलता दिखाई दे गया।
फिल्म की कहानी ब्रिटिश काल की थी और ये गलती दालभात में कंकर साबित हुई। दर्शक अपना सम्मोहन भंग होना कभी बर्दाश्त नहीं करता। आखिर वह इसी के लिए तो पैसे देता है। अब सवाल ये है कि आमिर खान की बहु प्रचारित और बहु प्रतीक्षित फिल्म ‘ठग्स ऑफ़ हिंदुस्तान’ का ये प्रोमो क्या कह रहा है?
यदि सस्ते सीजी (कम्प्यूटर ग्राफिक्स) से कालखंड फिल्म बनाने के प्रयास किये जाए तो नतीजे बहुत घातक हो सकते हैं। सस्ते एनिमेशन से बने समुद्री बेड़े देखकर मुझे राजामौली की बाहुबली का वह दृश्य याद आया जिसमे सूअर मारने की प्रतियोगिता होती है। कल्पना और रचनात्मकता का सुंदर मेल था वह दृश्य। मुझे ‘300’ फिल्म के दूसरे भाग ‘राइज ऑफ़ एन अम्पायर’ के कम्प्यूटर जनित समुद्री बेड़े याद आते हैं। कितने वास्तविक दिखाई देते थे वे बेड़े।
उत्तरप्रदेश का एक ठग जिस पर ब्रितानी संस्कृति का प्रभाव है, एक देशभक्त ठग को पकड़ने निकला है। कहानी बड़ी रोचक है लेकिन परदे पर उसका प्रस्तुतिकरण बहुत सतही अनुभव हो रहा है। आमिर का किरदार असंतुलित है तो अमिताभ बच्चन के किरदार के सारे स्टंट ‘सीजी’ से फिल्माए प्रतीत हो रहे हैं। साफ़ है कि इस उम्र में उनसे स्टंट तो होने से रहे।
और भी बहुत कुछ है। कटरीना की मादक अदाएं हैं और एक साथ छह तीर चलाने वाली फातिमा सना शेख भी हैं। ये फिल्म दीपावली के मौके पर प्रदर्शित होगी इसलिए इसे अति मसालेदार बनाने की कोशिश की गई है। फिल्म का मुख्य दारोमदार एक्शन दृश्यों पर है और वही ‘सीजी’ के भरोसे है। निर्माता आदित्य चोपड़ा ने सस्ते में हॉलीवुड के स्तर पर आने की कोशिश की है। लेखक ऐसा कतई नहीं कहने जा रहा कि फिल्म पिट जाएगी लेकिन ये जरूर कह रहा है कि भारतीय दर्शक इससे अच्छे ‘सीजी’ बाहुबली और मगधीरा’ में देख चुके हैं। जबकि उनका बजट आदित्य चोपड़ा की फिल्म से बहुत कम था।
अंत में बॉक्स ऑफिस का जायज़ा ले लिया जाए। ‘स्त्री’ अपने यूनिक विषय और सुंदर प्रस्तुतिकरण के दम पर अब तक आगे बनी हुई है। चौथे सप्ताह में बहुत सस्ते बजट में बनी इस फिल्म ने 120 करोड़ का कलेक्शन कर इतिहास रच दिया है। पिछले सप्ताह प्रदर्शित हुई ‘बत्ती गुल मीटर चालू’ एक ‘कछुआ फिल्म’ साबित हो रही है। इसने अब तक 35 करोड़ का व्यवसाय किया है। फिल्म का बजट 55 करोड़ है और दर्शकों की सहज प्रतिक्रिया इसे ख़बरों में बनाए रखे हुए हैं। शाहिद कपूर की ये फिल्म इस सप्ताह ‘सुईं-धागा’ का सामना करेगी। निश्चित ही इसका व्यवसाय प्रभावित होगा।
URL: Two superstars Amitabh Bachchan and Aamir Khan in Thugs of Hindostan epic
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