आदित्य जैन अंतरराष्ट्रीय संबंध कोरी भावनाओं पर आधारित न होकर , ” शक्ति ” पर आधारित होते हैं। आर्थिक शक्ति , सैन्य शक्ति और ज्ञान शक्ति ( R & D ) के आधार पर ही एक देश दूसरे देश से संबंध स्थापित करता है । भारतीय विदेश नीति अब ” गुजराल सिद्धांत ” , ” गुट निरपेक्ष सिद्धान्त ” , ” रक्षात्मक सिद्धांत ” के कालखंड से आगे निकलकर ” डोभाल सिद्धांत ” , ” बहुपक्षीय विश्व सिद्धांत ” और ” आक्रामक – रक्षात्मक सिद्धांत ” के दौर में पहुंच गई है । यूक्रेन के संदर्भ में भारत का निर्णय राष्ट्र हित के व्यापक परिप्रेक्ष्य में ही होना चाहिए। ” शास्त्र और शस्त्र ” की सनातन भारतीय परम्परा के पुनर्जागरण का समय आ गया है ।
अंतरराष्ट्रीय संबंधों के परिप्रेक्ष्य में निर्णय लेते समय भारत को कूटनीति का प्रयोग जमकर करना चाहिए। अब भारत को विश्व केवल एक ” बहुत बड़े बाजार ” के रूप में नहीं देखता है । भारत विश्व के शक्तिशाली देशों के समक्ष अपने निर्णयों और व्यवस्थित प्रचार तंत्र के माध्यम से अपनी सशक्त छवि बना चुका है । अभी हाल ही में , भारत की तरफ से गलती से एक सुपरसोनिक मिसाइल पाकिस्तान की सीमा के बहुत अंदर तक सैकड़ों किलोमीटर चली गई थी और पाकिस्तान का एंटी मिसाइल डिफेंस सिस्टम उस मिसाइल को ध्वस्त नहीं कर पाया था । हालांकि भारत इसकी जांच एक उच्च स्तरीय कमेटी से करा रहा है ।
अंतरराष्ट्रीय संबंधों की क्रियाविधि में बहुत अधिक जटिलता होती है। इसमें एक कहावत प्रचलित है – ” होता कुछ है , दिखता कुछ है , कहा कुछ जाता है और सुना कुछ जाता है । “
चीन प्राय : इसी कूटनीति का प्रयोग करता है। चीन के राष्ट्रध्यक्ष जब भारत के मेहमान होते हैं तो चीनी सेना भारतीय सीमा पर चहल – पहल शुरू कर देती है । कहा जाता है – हिंदी व चीनी भाई – भाई । लेकिन 1962 का युद्ध हो जाता है । कहा जाता है – पंचशील । लेकिन सुना जाता है – भारत की कायरता और युद्ध की तैयारी न होना । अमेरिका कहता है – अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा । लेकिन करता है युद्ध और फैलाता है अंतरराष्ट्रीय अशांति और अस्थिरता । अब भारत ने भी चीन की तरह ही कूटनीतिक व सामरिक चहल – पहल प्रारम्भ कर दी है , जिसकी सूचना आप सभी को आगामी कुछ माह में देर – सबेर मिल ही जाएगी । इसके साथ ही , पाक – अधिकृत कश्मीर को वापस लेने की जन भावना भी जोरों पर दिखाई दे रही है । स्वयं प्रधानमंत्री जी ने भी एक सार्वजनिक संबोधन में इस कसक व पीड़ा की ओर संकेत किया था।
पी. ओ. के. लेने के बाद भारत को अमेरिका , चीन , रूस और यूरोपीय यूनियन को मनाना पड़ेगा या शांत करना पड़ेगा या अपने पक्ष में करना होगा। रूस भारत से कुछ मैत्रीपूर्ण संधि करेगा और भारत के साथ हो जाएगा । यूरोपीय यूनियन को भारत अपने पक्ष में करने के लिए फ्रांस और ब्रिटेन सरीखे देशों को लगाएगा । फ्रांस देश भारत का स्त्रातेजिक साझेदार देश है और वह भारत का साथ अवश्य देगा । यदि ब्रिटेन भारत का साथ नहीं देता है तो भारत को कॉमनवेल्थ देशों के संगठन से बाहर आने की धमकी देनी चाहिए। यदि भारत कॉमनवेल्थ से बाहर आता है तो अन्य देश भी इस संगठन से बाहर आएंगे और ब्रिटेन की वैश्विक छवि की अपूरणीय क्षति होगी। ब्रिटेन व अन्य यूरोपीय देशों द्वारा समर्थित उपनिवेशवाद व साम्राज्यवाद के कारण पूरे विश्व के लोगों ने जो कष्ट सहे हैं व उनका जो शोषण हुआ है , उसे पूरी शक्ति व इको – सिस्टम के साथ भारत को विश्व में प्रचारित करना होगा । पीओके को लेना भारत और विश्व के लिए न्यायपूर्ण है , ऐसी बात अफ्रीकन महाद्वीप के देशों को भी समझना पड़ेगा ।
संभवत: भारत के इस कदम से प्रेरित हो चीन भी ताइवान के प्रति आक्रामक हो जाए। ऐसे समय में दोनों देश एक – दूसरे के मामलों में हस्तक्षेप करने से बचेंगे । अब आखिरी में , अमेरिका को साधना होगा । क्या आप जानते हैं कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था कैसे चलती है ?
अमेरिका यदि हथियार नहीं बेचेगा तो कुछ वर्षों में दिवालिया हो जाएगा। अमेरिका यदि बीमारियां फैलाकर दवाइयां नहीं बेचेगा तो दिवालिया है जाएगा। इसीलिए विश्व में युद्ध होते रहें और बीमारियां फैलती रहें , यही अमेरिका के हित में है। अमेरिका ने खाड़ी देशों को बर्बाद किया । अमेरिका ने दक्षिण – पूर्व एशिया के कई देशों को बर्बाद किया और अब अमेरिका ने यूक्रेन को भड़काकर रूस के विरुद्ध खड़ा किया। अब यूक्रेन भी बर्बाद होगा । अमेरिका का चरित्र दोगला है । बिडेन द्वारा शासित अमेरिका पर किसी भी देश को भरोसा नहीं करना चाहिए। लेकिन जैसे कांटे को कांटा निकालता है , वैसे ही अमेरिका से भी भारत निपट सकता है ।
एशिया में मजबूत भारत अमेरिका के हित में ही है । चीन की बढ़ती शक्ति के संतुलन के लिए भारत ही अमेरिका का साथ दे सकता है । भारत को कूटनीतिक टेबल के साथ सामरिक हाईवेज में भी अपनी शक्ति , संगठन व शांति स्थापित करने वाली वैश्विक छवि का जमकर प्रदर्शन करना चाहिए । यदि अमेरिका भारत पर कोई आर्थिक प्रतिबंध लगाता है तो उसे भी देख लिया जाएगा । भारत को अपनी त्रि-आयामी शक्ति बढ़ानी चाहिए तथा आगामी 50 वर्षों को ध्यान में रखकर निर्णय लेना चाहिए । भारत को निरंतर सैन्य शक्ति बढ़ानी चाहिए । अनुसंधान एवं विकास के बजट को दोगुना करना चाहिए , जिसे ज्ञान शक्ति कहा जाता है । इसके साथ ही भारत को स्वावलंबी , स्वदेशी व राष्ट्र प्रेम की भावना का संचार करके उच्च गुणवत्ता युक्त भारतीय उत्पादों का घैरेलू उपयोग करना चाहिए एवं विश्व में निर्यात करना चाहिए , जिससे भारत की आर्थिक शक्ति मजबूत हो ।
जिस देश में सैन्य शक्ति , ज्ञान शक्ति और आर्थिक शक्ति मजबूत है , उस देश की बात पूरा विश्व सुनता है और मानता है । शस्त्र – शास्त्र और वणिक – कौशल परम्परा को यदि भारत में पुनर्जीवित कर दिया जाए तो भारत पुन: महाशक्ति के रूप में उभरेगा। न सिर्फ पी ओ के का विलय भारत में होगा , बल्कि ” जंबू द्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्त ” का सनातनी संकल्प भी पूर्ण होगा , जो हज़ारों वर्षों से भारत भूमि में गूंजता रहता है ।
।। जयतु जय जय शस्त्र – शास्त्र – वणिक – कौशल – परम्परा ।।
आदित्य जैन
सीनियर रिसर्च फेलो
यूजीसी
प्रवक्ता ( तर्कशास्त्र ) जी आई सी
प्रयागराज
adianu1627@gmail.com
( इलाहाबाद विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग के गोल्ड मेडलिस्ट छात्र हैं । कई राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में अपने शोध पत्रों का वाचन भी कर चुके हैं । विश्व विख्यात संस्था आर्ट ऑफ लिविंग के युवा आचार्य हैं । भारत सरकार द्वारा इन्हे योग शिक्षक के रूप में भी मान्यता मिली है । भारतीय दर्शन , इतिहास , संस्कृति , साहित्य , कविता , कहानियों तथा विभिन्न पुस्तकों को पढ़ने में इनकी विशेष रुचि है और यूट्यूब में पुस्तकों की समीक्षा भी करते हैं । )
Mind blowing analysis, jai gurudev 🙏🏻🙏🏻🙏🏻
Dharmendra Singh.