जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या करने की साजिश का खुलासा हुआ है तभी से ‘माईनो माफिया’ गिरोह में शामिल रवीश कुमार, राणा अयूब, बरखा दत्त तथा सड़कों पर खूनी लड़ाई का आह्वान करने वाला गुजरात का विधायक जिग्नेश मवानी एक सुर में चिल्लाने लगे हैं कि हमारी जान को खतरा है। हमें जान से मारने की धमकी मिल रही है। भारत में विरोधी आवाज को दबाने की कोशिश हो रही है….वगैरह..वगैरह..! वैसे ये ‘पीडी’ पहले से ही धमकी मिलने का बिगुल बजा रहे हैं, लेकिन पीएम मोदी पर हमले की साजिश के खुलने के बाद इनके चमचों ने इस बिगुल को और जोर-जोर से फूंकना शुरु कर दिया है ताकि शोर ज्यादा हो!
दरअसल ये लोग इस प्रकार का अभियान चलाकर देश की जनता को देशविरोधी गतिविधियों में संलिप्त माओवादियों, अलगाववादियों और इस्लामी कट्टरपंथियों की करतूत से ध्यान हटाकर इस मुद्दे को दबाने में लगे हैं। जबकि रोना विल्सन के घर से मिली चिट्ठी में स्पष्ट है कि मोदी के रहते इनलोगों के वजूद पर ही संकट आ गया है। यही वजह है कि मोदी को ही रास्ते से हटाने के लिए इतना बड़ा षड्यंत्र रचा गया है। इसलिए रवीश हो या अयूब, बरखा हो या जिग्नेश सभी ने सियार की भांति एक सुर में जान से मारने की धमकी मिलने का राग आलापना शुरू कर दिया है, ताकि ये लोग देश का ध्यान अपने आकाओं (देश विरोधियों ) की ओर से हटा सकें।
रवीश कुमार और राणा अय्यूब जैसे तथाकथित लिबरल और एंटी इस्टैब्लिशमेंट कहे जाने वाले पत्रकारों ने संयुक्त राष्ट्र के कथित मानवाधिकार विशेषज्ञ के एक बयान की आड़ में मोदी सरकार को बदनाम करने का अभियान चला रखा है। सोशल मीडिया पर पड़ने वाली गाली को भी मोदी की शह बताने पर तुले हैं। संयुक्त राष्ट्र के एक कथित मानव अधिकार विशेषज्ञ ने स्वतंत्र पत्रकार राणा अय्यूब की सुरक्षा सुनिश्चित करने को लेकर भारत सरकार से दरख्वास्त की थी। इसके साथ ही उन्होंने गौरी लंकेश की हत्या का हवाला देते हुए भारत में पत्रकारों की स्थिति को बदतर बताया है। अब यह कौन है और इसका नाम क्या है? यही लोग जानते हैं!
इन लोगों ने उसके बयान को हथियार बनाकर देश में लोकतंत्र को ही खतरे में बताने पर तुले हैं। ये लोग मीडिया की स्वतंत्रा के मापदंड को लोकतंत्र की मजबूती और कमजोरी का पैमाना बताते हैं। वहीं अपनी आलोचना बर्दाश्त करने को तैयार नहीं हैं। जबकि सोशल मीडिया के रूप में देश में एक जन मीडिया भी तैयार हो चुका है। जो सरकार के साथ ही मीडिया की भी खबर लेता भी है और रखता भी है।
राणा अय्यूब और रवीश कुमार की नाराजगी इस बात को लेकर है कि आए दिन लोग उन्हें गाली देने के साथ जान से मारने की धमकी देते हैं। उनका कहना है कि उन्होंने इसकी कई बार शिकायत की है लेकिन कुछ हुआ नहीं। इन लोगों ने ये कभी नहीं बताया कि जहां इन्होंने शिकायत की है वहां की जांच रिपोर्ट क्या कहती है? आखिर क्या वजह है कि जिन लोगों ने इन्हें जान से मारने की धमकी दी है उनके खिलाफ ये लोग अभी तक कोर्ट नहीं गए हैं? या फिर पुलिस में एफआईआर करने के बाद जांच रिपोर्ट के बारे में मौन हैं ?
रवीश ने आरोप लगाया है कि उन्हें गाली देने वालों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का समर्थन प्राप्त है। रवीश कभी ये नहीं बताया कि आखिर मोदी के खिलाफ कोई शिकायत क्यों नहीं की? इसके पीछे एक ही उद्देश्य है कि झूठ फैलाओ और मोदी सरकार को बदनाम करो। देश दुनिया को ये बताओ कि मोदी सरकार के कारण मीडिया खतरे में हैं इसलिए लोकतंत्र भी खतरे में है।
जहां तक राणा अय्यूब की सुरक्षा की बात है तो ये महज संयुक्त राष्ट्र के मानव अधिकार के विशेषज्ञ के कहने पर निर्भर नहीं करता। देश में अपनी व्यवस्था है। सुरक्षा की जरूरत किसे है और किसे नहीं हैं इसकी परख करने की एजेंसी है? आखिर उसे भी तो लगे कि अयूब को सुरक्षा की व्यवस्था है कि नहीं। वहीं बरखा दत्ता ट्वीट पर ट्वीट कर यह बताने की कोशिश कर रही है कि वह एक न्यूज चैनल लाना चाहती है, जिसके कारण सरकारी एजेंसियां उसके फोन टेप कर रही है, उसके घर की जासूसी की जा रही है..ब्ला..ब्ला…! वहीं सड़क छाप भाषा बोलने वाले जिग्नेश मवानी ने ट्वीट कर कहा है कि उसे गैंगस्टर पुजारा खुलेआम फोन कर धमका रहा है। जिग्नेश के इस कथित डर को ‘पेटिकोट मीडिया’ और ‘पीडी पत्रकार’ खूब उछाल रहे हैं! हालांकि इनमें से किसी ‘पीडी’ ने अभी तक पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं कराई है! उनका मकसद तो केवल शोर मचाकर ध्यान बंटाना है। सचमुच का डर होता तो ये पुलिस में जाते न कि ट्वीट-ट्वीट खेलकर नौटंकी पसारते!
जब पत्रकारिता का स्तर घटता है तो पत्रकार राणा अयूब, बरखा दत्त और रवीश कुमार बन जाता है। झूठ ही सही अपना आभामंडल इतना बड़ा कर लेता है ताकि लोगों को यह समझाने में आसानी हो सके कि पूरी भारत सरकार सारा काम-काज छोड़कर इनको ठिकाने लगाने के षड्यंत्र में जुटी हैं। केंद्रीय वित्त मंत्री न रवीश के कद के हिसाब से छोटा हो गया, स्वयं प्रधानमंत्री रवीश कुमार की नौकरी छीनने में जुटे हैं, रक्षामंत्री राणा अयूब की हत्या कराने की साजिश कर रही हैं और स्वयं सूचना एवं प्रसारण मंत्री बरखा दत्त को अपना न्यूज चैनल लाने के लिए लाइसेंस नहीं दे रहे हैं।
ये लोग जनता से मिल रही गाली को मोदी की शह साबित करने में जुटे हैं। इसके साथ ही ये छिपा लेना चाहते हैं कि सरकार के नाम पर देश को बदनाम करने के अभियान का प्रभाव कुछ उलटा हो गया है। सरकार से धन मीडिया खफा है जनमीडिया नहीं, इसलिए सही रिपोर्टिंग होनी शुरू हो गई है। आसमान में फेका थूक उन्हीं पर बरसने लगे हैं। वे देश को गाली देने पर आमादा हैं तो जनमीडिया उन्हें! नाराजगी दोनो तरफ है अब ऐसे में एफआईआर स्वयं मोदी तो लिखवाएंगे नहीं?
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