अब तक सत्ता की शरण में रहे बदमाशों का एनकाउंटर कर खौफ पैदा करने वाली योगी सरकार की पुलिस, सत्ताधारी विधायक के सामने इस कदर लाचार है कि उसके खिलाफ FIR दर्ज नहीं कर पायी। पुलिस की यह लाचारी बर्फ तले दबी थी लेकिन पीड़िता के पिता की हिरासत में मौत ने पूरे देश की नैतिकता जगा दी है। देश का हर नागरिक योगी सरकार से सवाल कर है कि क्या सिर्फ सड़क छाप गुंडों पर ही कारवाई होगी? माननीय गुंडों पर नहीं,नैतिक समाज में अनैतिक माननीय जो पैदा हो गए? सवाल तो उठेगा!
कुलदीप सिंह सेंगर सत्ताधारी पार्टी के विधायक हैं। उन्नाव से विधायक सेंगर, चौथी दफा अलग-अलग पार्टी से विधायक बने हैं! पहली बार 2002 में बसपा से फिर 2007 और 2012 में सपा से 2017 में भाजपा से। हर बार पार्टी बदली, विधानसभा बदली लेकिन जीत किसी पार्टी की नहीं सेंगर की हुई क्योंकि वे अपने बाहुबल से हर काम कराते हैं।
सेंगर के मुखिया को उनकी बेटी की शादी के लिए दस हजार रुपये देते हैं । गरीबों के मसीहा सेंगर की यह बात उनके विधायकी क्षेत्र में आम चर्चा है। सिपाही से लेकर पुलिस कप्तान तक मलाईदार पोस्ट पाने के लिए सेंगर जैसे माननीयों के पास जाकर पूंछ हिलाने की परंपरा रही है। समाज सेवा के नाम पर सत्ता का हिस्सेदार बन कर पॉवर की मलाई चाटने की तृष्णा ही तो लोकतंत्र में कुलदीप सेंगर पैदा करते है तभी कोई भी कुलदीप पार्टी बदल कर जीत की गारन्टी देता है।
उन्नाव की जिस दिल दहलाने वाली घटना पर हायतौबा मची है, ऊपरी तौर पर उसे देखकर पूरे सिस्टम से वितृष्णा होती है। क्या हमारे माननीयों को किसी का डर ही नहीं? पुलिस प्रशासन उनकी कठपुतली भर है? इस घटना के लिए FIR तक न होने के कारण सरकार के खिलाफ हल्ला बोल होना चाहिए लेकिन जोश में होश की बात करते हुए यह सवाल तो बनता है कि पुलिस ने पीड़िता के आरोप के बाद भी FIR में विधायक कुलदीप और उसके भाई अतुल का नाम नही लिखा! अदालत में पीड़िता का मजिस्ट्रेट के सामने बयान हुआ उसमे भी पीड़िता ने अपराधियों का नाम क्यों नहीं लिया?
कानून के मुताबिक कोई भी महिला यदि किसी के खिलाफ बलात्कार के मामले में FIR कराती है तो पुलिस की तुरंत मामला दर्ज करने जिम्मेदारी है लेकिन यह जरुरी नहीं कि पीड़िता जिसके खिलाफ भी चाहे मामला दर्ज करा दे। यह जीरो एफआईआर होता है! पुलिस की जिम्मेदारी है कि जांच के बाद संदिग्ध का नाम एफआईआर में दर्ज करे इसीलिए धारा 164 के तहत पीड़िता का बयान मजिस्ट्रेट के सामने होता है। पीड़िता ने क्या उस वक्त अपराधी का नाम नहीं लिया या मजिस्ट्रेट भी कुलदीप के आदेश पालक थे!
हमारे एकाएक नैतिक हो जाने से कुलदीप जैसों के अंदर खौफ पैदा नहीं हो सकता। बात कड़वी हो सकती है लेकिन जांच का विषय यह भी होना चाहिए की पीड़ित परिवार और आरोपित परिवार के लिए एक दुसरे को लाभ पहुंचाने का पार्षदी का कौन सा सौदा चल रहा था? जिसकी कीमत एक पिता को जान देकर गवांनी पड़ी। लोकतंत्र में एकाएक नैतिक बनने की सोच से कुलदीप शिकंजे में कहां आएगा? वह विजेता बनता रहेगा और हम नैतिक होते रहेंगें।
URL: Unnao Rape case: MLA Kuldeep Sengar’s younger brother arrested!
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