न्यायिक गलियारे में एक कहावत आम है। एक अदना सा वकील अपने पुराने क्लाईंट से कहता है “तुम्हें कोर्ट ने फांसी की सजा दी? इसके लिए देश के सबसे काबिल वकील रखने की क्या जरुरत थी यह सजा तो हम तुम्हें मुफ्त में दिला देते”। बीसीसीआई का अध्यक्ष पद हासिल करने के बाद भाजपा के हिमाचल प्रदेश के तेज तर्रार नेता अनुराग ठाकुर इस कदर मदहोश थे कि उनके लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश का आदेश भी ठेंगे पर था। ठीक उसी तरह जैसे उनके पूर्ववर्ती एन श्रीनिवासन ने लंबे समय तक सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ठेंगे पर रखा और अपनी मनमर्जी चलाते रहे। बाद में उनकी क्या गति हुई, सामने है।
सवाल यह है कि आखिर बीसीसीआई के अध्यक्ष पद में ऐसा क्या नशा है कि कोई श्रीनिवासन या अनुराग ठाकुर सा मतवाला बन जाता है? फिर सोचता हूं कि जिस देश में क्रकेटर, भगवान सरीखा हो और क्रिकेट एक धर्म जैसा उसके भाग्यविधाता होने का नशा किसी को भी मतवाला बना सकता है। शायद इसीलिए अनुराग ठाकुर भी श्रीनिवासन की राह पर चले गए। ठेंगे से सुप्रीम कोर्ट! ठेंगे से उसकी बनाई लोढा कमिटी शायद यही सोचा होगा ठाकुर साहब ने।
सुप्रीम कोर्ट ने जो लोढा कमिटी बनाई उसके आदेश का पालन करने के बदले ठाकुर साहब फर्जी दस्तावेजों का सहारा लेकर बीसीसीआई के अध्यक्ष की कुर्सी से चुपके रहने की जुगत लगा रहे थे। तो क्या वे बिना अपने काबिल वकील की सलाह से यह सब कर रहे थे? हिमाचल क्रिकेट संघ, राष्ट्रीय जुनियर क्रिकेट टीम के चयनकर्ता, भारतीय ऑलंपिक संघ के सद्स्य न जाने और किन किन पदों पर चिपके ठाकुर अनुराग को शायद यह भ्रम हो कि उनसे काबिल कोई है नहीं इसीलिए तो वे मजबूर हैं इतनी जिम्मेदारी निभाने को! शायद सुप्रीम कोर्ट ही यह नहीं समझ पा रही थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद सबसे पहले भाजपा ने उनके पर कतरे, उनकी जगह भाजपा युवा मोर्चा का अध्यक्ष पूनम महाजन को बना कर! लेकिन सवाल यह है कि क्या कपिल सिब्बल ने यह दिलासा दिया था की वह अनुराग ठाकुर को बीसीसीआई अध्यक्ष पद की पोटली ताउम्र के लिए थमवा कर जाएंगे? या यह भरोसा कि सुप्रीम कोर्ट ने बस उन्हें जेल भेजने की धमकी भर दी है? वे इतने बड़े कद के हैं कि उनके साथ कोई ऐसा करने की हैसियत नहीं रखता।
क्या बात इतनी भर है? देश को यह नहीं समझना चाहिए कि सिब्बल साहब ही अनुराग ठाकुर के वकील क्यों हैं? रोचक तो यह है कि बीसीसीआई के खिलाफ जो एसएलपी सुप्रीम कोर्ट में बिहार क्रिकेट एसोसिएशन ने दाखिल की है उसके वकील भी कांग्रेस के कद्दावर नेता पी चिदंबरम की पत्नि नलीनी चिदंबरम है। सवाल अहम सिर्फ यह नही है कि सिब्बल साहब ने जो राहत अनुराग ठाकुर को दिलवा दी है वो कोई और नहीं दिला सकता था। सवाल यह भी है जो नूरा कुश्ती संसद में सत्ता और विपक्ष में दिखती है उसके पर्दे के पीछे का खेल क्या है? सिर्फ एनकेन प्रकारेण व्यवस्था पर काबिज होना? चाहे सत्ता में रहे या विपक्ष में! बीसीसीआई का इतिहास देख लीजिये यह सत्ता और विपक्ष का कॉकटेल रहा है! बड़ा नशा है इसमें। इसका स्वाद मिलबांट कर खाने में ही आता है! हम बस नशेड़ी के नशा उतरने का इंतजार ही कर सकते है। यही लोकतंत्र है! सत्ता और विपक्ष का तंत्र! हम जिसे जनतंत्र समझते हैं।