कांग्रेस की नियति रही है कि जिस भी चीज में गांधी-नेहरू परिवार का नाम जुड़ा नहीं होता है उसे वह न तो अपनाती है और न ही अपना मानती है चाहे वह देश के मान की बात हो या फिर सेना के सम्मान की बात। तभी तो कारगिल जीत के बाद 26 जुलाई को हर साल मनाया जाने वाला कारगिल विजय दिवस से कांग्रेस अपना मुंह चुराती रही है। इतना ही नहीं तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने तो अपनी यूपीए सरकार को भी साल 2004 से लेकर 2009 तक कारगिल विजय दिवस मनाने से मना कर दिया था।
मुख्य बिंदु
* कारगिल को भाजपा का युद्ध मानने के कारण ही सोनिया गांधी नियंत्रित मनमोहन सिंह की सरकार ने कारगिल विजय दिवस का उत्सव नहीं मनाया
* वाजपेयी के खिलाफ अप्रत्याशित जीत के साथ सत्ता में आई यूपीए सरकार ने संसद में आधिकारिक रूप से कारगिल विजय दिवस नहीं मनाने की घोषणा की थी
यूपीए सरकार अपने पहले पांच साल के कार्यकाल के दौरान कारगिर विजय दिवस पर उत्सव नहीं बल्कि मातम मनाती रही। कांग्रेस ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि कारगिल में पाकिस्तान की सेना से हुआ युद्ध को कभी उसने देश का युद्ध माना ही नहीं, सेना के बलिदान को स्वीकारा ही नहीं। वह हमेशा कारगिल की लड़ाई को भाजपा का युद्ध मानती रही। तभी उसने कारगिल विजय दिवस नहीं मनाया। कांग्रेस की यहीं मंशा सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान साफ नजर आई। कांग्रेस ने तो भारतीय सेना की वीरता पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया ।
गौरतलब है कि पाकिस्तान की दगाबाजी के कारण कारगिल युद्ध हुआ था। कायर की तरह छिपकर वार करने वाली पाकिस्तानी सेना ने जबरन कारगिल में कई भारतीय पोस्ट को अपने कब्जे में कर लिया था। तभी भारतीय सैनिकों ने उसे वहां से मार भगाया। पाकिस्तानी सेना को 1999 में एक बार फिर भारतीय सेना के सामने नतमस्तक होकर जान की भीख मांगनी पड़ी। सेना की बदौलत देश को 26 जुलाई 1999 में कारगिल युद्ध में विजय मिली। उसी साल से अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार ने 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया। 1999 से ही हर साल देश में 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है। लेकिन कांग्रेस इस जीत को कभी पचा नहीं पाई। साल 2004 में वाजपेयी के खिलाफ कांग्रेस को मिली अप्रत्याशित जीत के बाद जब मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार का गठन हुआ तो सोनिया गांधी की दबी मंशा बाहर निकल आई। सोनिया गांधी ने यूपीए सरकार को 2004 से लेकर 2009 तक कभी कारगिल विजय दिवस नहीं मनाने दिया।
यूपीए-1 के सत्ता में आते ही कांग्रेस के राज्यसभा सांसद राजीव चंद्रशेखर ने राज्य सभा में बाकायदा बयान दिया था कि यूपीए सरकार ने 2004 से लेकर 2009 तक आधिकारिक रूप से कारगिल विजय दिवस नहीं मनाने का फैसला किया है। राज्यसभा में ही नहीं बाहर भी कांग्रेस के नेता बेशर्म की तरह इसे एनडीए सरकार की जीत बताते रहे हैं। कांग्रेस के ही सांसद राशिद अल्वी ने 2009 में कहा था कि कांग्रेस पार्टी को कारगिल विजय दिवस मनाने की कोई वजह नहीं दिखाई देती। उन्होंने कहा था कारगिल की जीत को युद्ध में मिली विजय के रूप में नहीं देखा जा सकता। यह अलग बात है कि एनडीए इसका उत्सव मना सकता है क्योंकि यह युद्ध उस समय हुआ था जब उसकी सरकार थी।
यूपीए 2 सरकार को भी सोनिया गांधी कारगिल विजय दिवस नहीं मनाने देती और सरकार भी अपने पहले निर्णय पर कायम रहती अगर उसके खिलाफ आवाज नहीं उठती। क्योंकि सदन के अधिकांश सदस्य कारगिल विजय दिवस की महत्ता को जानते थे। इस मामले को राजीज चंद्रशेखर ने ही राज्यसभा के महासचिव के समक्ष उठाया। राज्यसभा के महासचिव ने कारगिल विजय को न केवल देश का विजय बताया बल्कि इस दिवस को सैन्य बलों और उनके परिजनों के लिए प्रेरणादायक बताया। बाद में यूपीए सरकार को शर्मसार होकर कारगिल विजय दिवस मनाने को मजबूर होना पड़ा।
वैसे भी जब से कांग्रेस की कमान सोनिया गांधी के हाथ में गई तब से कांग्रेस पार्टी देश के मान और सेना के सम्मान के साथ समझौता कर रही है। कारगिल युद्ध को देश का युद्ध नहीं मानना, सर्टिकल स्ट्राइक को सेना का फर्जी स्ट्राइक बताना, देश भर थू-थू होने के बाद सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत मांग लेने जैसे सारे कारनामे सोनिया गांधी के ही नेतृत्व में तो हुआ है। दरअसल सोनिया गांधी अभी तक भारत को अपना देश स्वीकार ही नहीं कर पाई है।
साभार: मूल खबर के लिए पढें OPIndia.com
Keywords: congress, indian army, sonia gandhi kargil,kargil vijay diwas,congress politics, rajeev chandrasekhar, कांग्रेस, भारतीय सेना, सोनिया गाँधी, कारगिल, कारगिल विजय दिवास, विजय दिवस, राजीव चन्द्रशेखर