शहरी नक्सलियों को वीआईपी ट्रीटमेंट देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने असहमति को ‘सेफ्टी वाल्व’ कहा है। उम्मीद करता हूं माननीय इंडिया स्पीक्स और उसकी टीम के जरिए आम जनता की आवाज को भी आप अपने खिलाफ सेफ्टी वाल्व ही समझेंगे! मानहानि का ‘हिटलरी डंडा’ नहीं चलाएंगे!
माननीय सुप्रीम कोर्ट धीरे धीरे आम जनता के प्रति आप अपना विश्वास खोते जा रहे हैं! आप आम जनता के लिए हैं ही नहीं, आप तो लॉबिस्टों की चौखट हैं, जो रात के अंधेरे में भी उनके लिए दरवाजा खोल देता है, जो एक SMS पर लॉबिस्टों की गिरफ्तारी रोक देता है, और जो हत्यारोपियों का भी ढाल बन कर खड़ा हो जाता है!
मि-लॉर्ड इससे पहले कि जनता का ‘प्रेशर कूकर’ फट जाए, संभल जाइए! और जनता में अपने लिए भरोसा बहाल कीजिए! आपकी छवि एलिट और लॉबिस्टों के संरक्षक की होती जा रही है।
भीमा कोरेगांव हिंसा तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या जैसी साजिश के आरोप में गिरफ्तार पांच नक्सली समर्थकों को जिस प्रकार सुप्रीम कोर्ट ने नजरबंद रखने का फरमान सुनाया है ऐसे ही मामले में कितने गरीबों को इस प्रकार की राहत मिलती है। इसके बाद भी लिबरल ब्रिगेड और प्रशांत भूषण जैसे कोर्ट फिक्सर सुप्रीम कोर्ट पर मोदी सरकार का दबाव होने के आरोप लगाने जैसी अपनी आदत से बाज नहीं आते। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट ने नक्सली समर्थकों तथा सरकार और देश को बदनाम करने वालों के प्रति रियायत बरती हो। इससे पहले कई बार ऐसा हो चुका है। इसलिए सवाल उठता है कि जिस प्रकार ऐसे गंभीर आरोपों के बावजूद इन ‘संभ्रात लोगों’ को रियायत दी गई है क्या देश के अन्य गरीबों को इस प्रकार की रियायत मिलती है? जिस प्रकार देश के खाते-पीते वामी-कांगी समर्थक इन आरोपियों के समर्थन में इकट्ठे हो जाते हैं कभी इन्हें किसी गरीब के समर्थन में इकट्ठा होते देखा है, खासकर उसके समर्थन में जो इनके खेमे के नहीं हों?
मालूम हो कि भीमा कोरेगांव हिंसा तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश के मामले में गिरफ्तार पांचों नक्सली समर्थकों को रियायत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 5 सितंबर तक अपने घर पर ही नजरबंद रखने का आदेश दिया है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी कर महाराष्ट्र सरकार से गुरुवार तक मामले पर जवाब देने को कहा है। इस मामले की अगली सुनवाई अब छह सितंबर को की जाएगी। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने सभी गिरफ्तार नक्सल समर्थों की ट्रांजिट रिमांड पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है।
आज के फैसले से एक बार फिर यह आरोप और पुख्ता हो गया है कि सुप्रीम कोर्ट शुरू से ही शहरी नक्सलियों के पक्ष में फैसला सुनाता रहा है! वह चाहे नंदिनी सुंदर का मामला हो या सलवा जुड़ूम का मामला हो या फिर पीड़ित लोगों के पैसे पर ऐश करने वाली तीस्ता सीतलवाड़ का मामला हो। तीस्ता सीतलवाड़ के मामले में तो यहां तक कहा जाता है कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल के एक एसएमएस ने उसे गिरफ्तार होने से बचा लिया था।
हत्या और हथियार रखने जैसे आरोप में नंदिनी को नहीं होने दिया था गिरफ्तार
छत्तीसगढ़ के बस्तर में आदिवासी हत्या के मामले में नंदिनी सुंदर तथा अन्य के खिलाफ दर्ज हत्या और हथियार रखने जैसे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उनकी गिरफ्तारी नहीं होने दी। जब पुलिस उनके गिरेबां तक पहुंचने ही वाली थी कि ऐन वक्त पर सुप्रीम कोर्ट ने उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ही राज्य सरकार को भरोसा दिलाना पड़ा था कि नंदिनी सुंदर, अर्चना प्रसाद और दो अन्य की गिरफ्तारी नहीं होगी। मालूम हो की छत्तीसगढ़ के बस्तर के तोंगपाल थाने में नंदिनी सुन्दर, अर्चना प्रसाद, संजय पराते, विनीत तिवारी, मंजू कवासी और मंगल राम कर्मा के खिलाफ 302, 120 B, 147, 148, 149 ,452 तथा 25, 27 आर्म्स एक्ट के तहत अपराध दर्ज किया जा चुका है।
माओवादियों से लड़ने वाली सलवा जुडूम को बता दिया था असंवैधानिक
एक तरफ तो सुप्रीम कोर्ट शहरी नक्सलियों को रियायत देने में कभी कोई कोताही नहीं की वहीं दूसरी तरफ माओवादियों से लड़ने वाले बल को असंवैधिक घोषित कर दिया। नक्सलियों से लड़ने के लिए सलवा जुडूम का इस्तेमाल करने की आलोचना करते हुए उच्चतम न्यायालय ने छत्तीसगढ़ सरकार और केंद्र द्वारा विशेष पुलिस अधिकारियों (एसपीओ) को हथियारबंद करने पर रोक लगा दी और पांच हजार सदस्यों वाले इस बल को ‘असंवैधानिक’ करार दे दिया। इसके साथ ही न्यायालय ने छत्तीसगढ़ सरकार और केंद्र को निर्देश दिया कि वे आदिवासियों को एसपीओ के तौर पर नियुक्त करने और नक्सलियों से प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर निपटने के लिए उन्हें हथियारबंद करने से परहेज करे। मालूम हो कि नक्सलियों से पार पाने के लिए प्रदेश सरकार ने आदिवासी युवकों को एसपीए के रूप में नियुक्त करने की योजना बनाई थी। लेकिन हत्या और हथियार रखने की आरोपी नंदिनी सुंदर, इतिहासकार रामचंद्र गुहा आदि की याचिका पर न्यायमूर्ति बी सुदर्शन रेडी तथा न्यायमूर्ति एस एस निज्जर की पीठ ने प्रदेश सरकार के इस कदम को ही असंवैधानिक करार दे दिया था।
ऐन वक्त पर सुप्रीम कोर्ट ने तीस्ता सीतलवाड़ की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी
यह घटना साल 2015 की है जब गुजरात हाईकोर्ट ने तीस्ता सीतलवाड़ की अग्रिम जमानत की याचिका को नामंजूर कर दिया था। गुजरात हाईकोर्ट द्वारा याचिका नामंजूर करने के बाद गुजरात पुलिस का एक दल मुंबई के जुहू स्थित तीस्ता के घर पहुंच भी गया था। संयोग से तीस्ता घर से भाग चुकी थी। अपनी गिरफ्तारी से पहुंचने के लिए छिपते छिपाते वह दिल्ली आई और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तथा सुप्रीम कोर्ट के वकील कपिल सिब्बल की शरण में जा पहुंची। उसने सुप्रीम कोर्ट में अपनी जमानत की याचिक दायर की। उसकी तरफ से सुप्रीम कोर्ट में कपिल सिब्बल पेश हुए। उन्होंने एक बार फिर गुजरात सरकार पर तीस्ता सितलवाड़ को गिरफ्तार करने के लिए पूरी ताकत झोंकने जैसी दलील दी और उसे सुप्रीम कोर्ट ने राहत दे दी।
इस तरह के ऐसे कई मामले हैं जिससे स्पष्ट होता है कि सुप्रीम कोर्ट शहरी नक्सलियों के प्रति सॉफ्ट रहा है। इसके बावजूद प्रशांत भूषण जैसे कोर्ट फिक्सर तथा वामी कामी सुप्रीम कोर्ट पर वर्तमान सरकार के दबाव होने के आरोप लगाते रहते हैं। मालूम हो कि ये सारी घटनाएं मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान हुई है।
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