माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने देश को आत्मनिर्भर बनाने का आह्वान किया है और इस बात पर कोई शंका नहीं है कि इस क्षेत्र में बहुत तेज़ी से देशव्यापी कार्य भी हो रहा है। एक सशक्त, स्वावलंबी, आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार होता दिखाई दे रहा है। मोदी जी के नेतृत्व में बहुत बड़े-बड़े बुनियादी परिवर्तन किये जा रहे हैं। देश में आयुष मंत्रालय का गठन हमारी पुरातन स्वास्थ्य पद्धति आयुर्वेद एवं अन्य परंपरागत स्वास्थ्य पद्धतियों तथा देश में विकसित होने वाली नई स्वास्थ्य पद्धतियों के विकास में एक आवश्यक कदम था। परन्तु शायद आयुर्वेद व अन्य स्वास्थ्य प्रणालियों का पिछले कई शताब्दियों में इतना दमन हो चुका है कि अब उन्हें अपने अतीत पर ही विश्वास नहीं रहा। इसके अलावा देश में विकसित होने वाली किसी भी नई स्वास्थ्य प्रणाली को तभी मान्यता मिलेगी जब पश्चिमी विकसित देश मान्यता दे चुके होंगे क्योंकि हमें हिन्दुस्तानियों के टेलेन्ट पर विश्वास ही नहीं है। विश्व की अग्रणी तकनीकी कंम्पनियों को बाहर जाकर उन्हीं हिन्दुस्तानियों ने खड़ा किया जिनका देश में रहते हुये नामो निशान नहीं था।
इस बात को सभी जानते हैं कि आयुर्वेद का जन्म हमारे आराध्य देवताओं से है पर हम मानते नहीं, जिसका मुख्य कारण है कि मौजूदा बीमारियों में आयुर्वेद कारगर सिद्ध नहीं हो रहा क्योंकि पिछले कई हज़ार वर्षों से आयुर्वेद का दमन होता आया है और बदलती बीमारियों के अनुरूप आयुर्वेद में रिसर्च नहीं हुई। आज यह कहने से काम नहीं चलेगा कि हथेली सूंघ लो हमारे दादा ने घी खाया था। अत: समय आ गया है जब आयुर्वेद के प्रांगण में विकसित कारगर स्वास्थ्य प्रणाली ज़ायरोपैथी, जो फ़ूड सप्लीमेंट तथा ज़ायरो नेचुरल के कॉम्बिनेशन से मॉडर्न बीमारियों को जड़ से समाप्त करने का काम कर रही है उसे दुनिया के सामने प्रस्तुत करें। पिछले कई दशकों में ज़ायरोपैथी ने लाखों लोगों को विभिन्न प्रकार की बीमारियों में सलाह दी है और हज़ारों संतुष्ट लोगों के माध्यम से शनै-शनै यह लोगों में व्याप्त होती जा रही है।
आयुर्वेद शास्त्रों में उल्लेखित जड़ी-बूटियों में मनुष्य को स्वस्थ रखने का संपूर्ण ज्ञान वर्णित है परन्तु जबतक बीमारी की जड़ का सही ऑंकलन नहीं हो पायेगा तब तक उसका सही इलाज सम्भव नहीं है। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि आयुर्वेद जन्म लगभग 5 से 10 हज़ार साल ईशा पूर्व में हुआ था। उस समय की प्रकृति, वातावरण और जलवायु आज के मुक़ाबले बहुत भिन्न थीं। चारों ओर घने जंगल और पूरे साल घनघोर बारिश, वातावरण में अत्यधिक नमी जिसके कारण अधिकांश बीमारियाँ वात्, पित्त और कफ़ से जुड़ी होती थीं, परन्तु आज वातावरण शुष्क है और मनुष्य की जीवन शैली में ज़बरदस्त बदलाव आ चुका है। जिसके फलस्वरूप बीमारियों के कारण भी बदल गये हैं अत: इलाज और औषधियों को भी बदलना पड़ेगा। इसी बदलाव का नाम है-“जा़यरोपैथी”।
माडर्न साइन्स का जन्म लगभग 300 साल पुराना है। शुरुआत से ही इसकी खोज, दवायें और उपचार सिर्फ़ लक्षणों पर ही केंद्रित थे और बीमार की समस्या बीमारी नहीं बल्कि लक्षण होते हैं। अत: यदि लक्षण में आराम मिल जाये तो लोग इलाज समझ लेते हैं। यही कारण है कि माडर्न साइन्स ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में बहुत ही कम समय में इतनी ज़बरदस्त ख्याति पाई। परन्तु अब लोगों को पता चल रहा है कि तात्कालिक लक्षण कंट्रोल कर साइड इफ़ेक्ट के रूप में दूसरी बीमारी को जन्म देने वाला यह विज्ञान कितना घातक है।मॉडर्न मेडिकल साइन्स में इमरजेंसी हैन्डलिंग, सर्जरी और इनफ़ेक्शन के अलावा किसी भी बीमारी का कोई इलाज नहीं है। इसके बावजूद इस स्वास्थ्य विज्ञान ने सम्पूर्ण मानवता को कई शतकों तक गुमराह किया और प्रकृति विरोधी इलाज जैसे – स्टेरॉयेड, इम्यूनोसप्रैसेंट, कीमोथिरैपी, रेडियोथिरैपी तथा ऑर्गन ट्रॉंसप्लॉन्ट इत्यादि से स्वास्थ्य हानि पहुँचाई है। परन्तु अब लोगों में जागरूकता आ रही है, लोग धीरे-धीरे अन्य स्वास्थ्य पद्धतियों की ओर पुन: आकर्षित हो रहे हैं, जहाँ उन्हें वर्षों से खोया हुआ विश्वास प्राप्त हो रहा है।मौजूदा परिस्थितियों में ज़ायरोपैथी लोगों को एक विश्वसनीय इलाज देकर सभी के दिमाग़ पर एक अमिट छाप बनाता जा रहा है। दिन प्रतिदिन लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। उम्मीद है कि आगे आने वाले समय में ज़ायरोपैथी लीडिंग स्वास्थ्य पद्धति के रूप में जानी जायेगी।
ज़ायरोपैथी आत्मविश्वास से भरपूर कैंसर से लेकर कोरोना तक हर स्वास्थ्य समस्या का निदान देने में सक्षम है। अत: जिन स्वास्थ्य पद्धतियों में आत्मविश्वास की कमी है उन्हें छोड़कर ज़ायरोपैथी अपनायें और निरोगी जीवन का आह्वान करें।
कमान्डर नरेश कुमार मिश्रा
फाउन्डर ज़ायरोपैथी
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