नुपुर शर्मा पर तल्ख टिप्पणी करने वाले जस्टिस सूर्यकांत पूर्व में अपने से चार साल वरिष्ठ एक न्यायाधीश को पीछे छोड़कर हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं, जिस पर सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश A.k गोयल ने आपत्ति भी दर्ज कराई थी, लेकिन अपनी पहुंच का इस्तेमाल करते हुए सूर्यकांत मुख्य न्यायाधीश बनने में सफल रहे थे।
भ्रष्टाचार के कई आरोपों के कारण भी वह बेहद विवादित रहे हैं। 2012 में उन पर अवैध प्रोपर्टी डीलिंग में करोड़ों के भ्रष्टाचार का आरोप लगा था। उन पर कैश लेन-देन का आरोप भी लगा था।
जस्टिस सूर्यकांत पर लगे भ्रष्टाचारों से संबंधित लिंक:- Courting Controversy Surya Kant, chief justice of Himachal Pradesh, likely to be elevated to SC despite allegations of corruption and tax evasion!
2017 में पंजाब जेल में बंद एक कैदी ने उनके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी कि जस्टिस सूर्यकांत ने जमानत देने के लिए उससे बड़ी रकम रिश्वत में ली है। तब जस्टिस सूर्यकांत पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय में न्यायाधीश थे। उन पर दर्ज आरोप का निस्तारण नहीं हुआ था, लेकिन कॉलेजियम ने सुप्रीम कोर्ट में उनकी नियुक्ति के लिए नाम आगे बढ़ा दिया।
मोदी सरकार के कानून मंत्रालय ने भी सबकुछ जानते हुए जस्टिस सूर्यकांत का नाम रोकने की जगह उसे मंजूरी दे दी। इस तरह भ्रष्टाचार के आरोप से मुक्त हुए बिना एक न्यायधीश सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया! ऐसा ही एक केस जस्टिस तरुण चटर्जी का मैंने अपनी पुस्तक ‘साजिश की कहानी’ में भी उल्लेखित किया है कि भ्रष्टाचार का आरोपी एक न्यायाधीश कैसे सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और अपने खिलाफ जांच को प्रभावित किया था।
यहां तक कि उस केस में गवाह की संदिग्ध परिस्थिति में जेल के अंदर ही मौत हो गई थी। बाद में परिवार वालों ने जहर देकर उसे मारने का आरोप लगाया था। इसलिए न्यायधीशों को ‘मी-लॉर्ड’ मानना बंद कीजिए। ये साधारण लोग हैं जिनमें से कई पर तिकड़म से पद हथियाने से लेकर भ्रष्टाचार तक के मामले सामने आ चुके हैं।
दुख इस बात का है कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध ‘नो टॉलरेंस’ नीति वाली मोदी सरकार ने भी जस्टिस सूर्यकांत जैसों को सुप्रीम कोर्ट में पहुंच जाने दिया। सरकार चाहती तो अपने अधिकार का इस्तेमाल कर जस्टिस सूर्यकांत को सुप्रीम कोर्ट पहुंचने से रोक सकती थी, जैसा कि पूर्व में कई अन्य न्यायधीशों को अलग-अलग कारणों से उसने रोका भी है।