
उत्तराखंड की बेटी को नहीं मिला इंसाफ, सुप्रीम कोर्ट ने तीनों आरोपियों को किया बरी, फैसले से टूट गए माता-पिता, उत्तराखंड समाज स्तब्द
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट के फैसले से आज उत्तराखंड की बेटी स्व. किरन नेगी के परिजनों के पैरों तले से जमीन खिसक गई। उनको यकीन नहीं हो पा रहा है कि जिन तीन आरोपियों ने उनकी बेटी के साथ हैवानियत की सारी हदें पर करते हुए उसकी हत्या कर दी थी, उन दरिंदों को देश की सर्वोच्च अदालत ने आज बरी कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट और निचली अदालत के उस फैसले को भी पलट दिया जिसमें दोषियों के लिए फांसी की सजा सुनाई गई थी।
गौरतलब है कि देश की राजधानी दिल्ली के नजफगढ़ इलाके में 10 साल पहले 09 फरवरी 2012 को तीन युवकों द्वारा उत्तराखंड की निर्भया (किरन नेगी) का अपहरण कर उसके साथ गैंगरेप और बाद में उसकी हत्या कर हरियाणा के खेतों से फेंक देने का मामला सामने आया था। जब उत्तराखंड समाज के लोगों ने सड़कों पर निकलकर इस घटना का जबरदस्त विरोध किया तो पुलिस हरकत में आई। और तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। इस चर्चित केस पर निचली अदालतों ने आरोपियों के गुनाह को देखते हुए तीनों को फांसी की सजा सुनाई थी।
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परिजनों के मुताबिक निचली अदालों में लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद भी इस केस में सुप्रीम कोर्ट में करीब 8 साल लग गए। सोमवार को इस मामले में देश की सर्वोच्च अदालत का फैसला भी आ गया। लेकिन जैसे ही कोर्ट का आदेश सुनाई दिया, किरन परिजनों के पैरों तले जमीन खिसक गयी। परिजन सीधे कोर्ट पहुंच गए। दरसल कोर्ट ने तीनों आरोपियों को बरी कर दिया।
किरन की मां ने कहा कि कोर्ट का फैसला सुनकर यकीन नहीं हो रहा है। आखिर ऐसे कैसे हो सकता है कि सर्वोच्च अदालत ने कोई सजा ही नहीं सुनाई हो और तीनों आरोपी बरी हो गए। परिजनों को फैसले से धक्का लगा है। उनका कहना है कि सर्वोच्च अदालत के आरोपियों को बरी कर देने से उनकी उम्मीदों को ही खत्म कर दिया है। महेश्वरी देवी का कहना है कि आरोपियों को उम्र कैद या आजीवन कारावास की सजा भी हो जाती तो कम से कम उनका दिल तो मान जाता, लेकिन सभी आरोपी बरी ही हो गए।
क्या थी वह झकझोर देने घटना
सूत्रों और परिजनों से मिली जानकारी के मुताबिक मूल रूप से उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल की रहने वाली 19 वर्षीय किरन नेगी अपने परिवार के साथ दिल्ली के नजफगड़ में रहती थी। 9 फरवरी 2012 को वह गुडगाँव स्थित कम्पनी से काम करके अपनी तीन सहेलियों के साथ रात करीब 8:30 बजे नजफगढ़ स्थित छाँवला कला कालोनी पहुंची थी, कि तभी कार में सवार तीन युवकों ने तीनो लड़कियों से बदतमीजी करनी शुरू कर दी। जैसे ही तीनों लड़कियां वहां से भागने लगी उसी दौरान तीनो आरोपी किरन को जबरन कार में बिठाकर वहां से ले गए। और उसका सामूहिक बलात्कार करने के बाद उसके आँख, कान में तेज़ाब डालकर हैवानियत की सारी हदें पार कर उसकी लाश को हरियाणा के खेतों में फेंक कर चले गए। उसकी सहेलियों ने किरन के अपहरण की खबर पुलिस व उसके घरवालों को दी। परन्तु पुलिस ने इस पर कोई कार्यवाही नहीं की।
जिसके बाद उत्तराखंड समाज के लोगों ने सड़कों पर निकलकर इस घटना का जबरदस्त विरोध किया। जिसके बाद पुलिस हरकत में आई और 14 फरवरी को किरन की लाश सड़ी गली हालत में पुलिस को हरियाणा के खेतों से मिली। जिसके बाद पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेजा। जिसके बाद द्वारका कोर्ट ने दोषियों को फाँसी की सजा निर्धारित की और फिर हाईकोर्ट ने भी फांसी की सजा को बरकरार रखा। आज 7 नवम्बर को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा दोषियों को दी गई फांसी की सजा को पलट दिया। इस मामले में निचली अदालत और हाईकोर्ट ने तीनों दोषियों को फांसी की सजा सुनाई थी। दिल्ली के छावला इलाके में उतराखंड की रहने वाली 19 वर्षीय लड़की से गैंगरेप और हत्या के तीनों दोषियों को सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बरी कर दिया। उत्तराखंड समाज के लोगों का कहना है कि आज देश की सर्वोच्च अदालत द्वारा सुनाये गए इस फैसले से पूरा समाज स्तब्द है। किसी को इस पर यकीन नहीं हो रहा है कि हाईकोर्ट ने जिस केस को रियर ऑफ़ रेयरेस्ट समझते हुए दोषियों को फांसी की सजा सुनाई थी, वो सुप्रीम कोर्ट में साफ बचकर कैसे निकल गए।
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