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India Speak Daily > Blog > धर्म > सनातन हिंदू धर्म > वाल्मीकि रामायण (भाग 6)
सनातन हिंदू धर्म

वाल्मीकि रामायण (भाग 6)

Courtesy Desk
Last updated: 2022/12/16 at 12:11 PM
By Courtesy Desk 331 Views 5 Min Read
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5 Min Read
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सुमंत विद्वांस । विश्वामित्र जी की बातें सुनकर दशरथ जी शोक से संज्ञाशून्य हो गए। दो घड़ी बाद होश में आने पर वे दुःखी स्वर में महर्षि विश्वामित्र से बोले, “राक्षस तो छल कपट से युद्ध करते हैं। लेकिन मेरा राम अभी सोलह वर्षों का भी नहीं हुआ है। वह अभी युद्ध-कला में निपुण नहीं हुआ है और न ही अस्त्र-शस्त्र चलाना भली भांति जानता है।

इसलिए वह राक्षसों से लड़ने के लिए किसी भी प्रकार से उपयुक्त नहीं है।””मुझे इस बुढ़ापे में बड़ी कठिनाई से पुत्र प्राप्ति हुई है। राम मेरे चारों पुत्रों में सबसे बड़ा है और उस पर मेरा प्रेम भी सबसे अधिक है। उससे वियोग हो जाने पर मैं दो घड़ी भी जीवित नहीं रह सकता। इसलिए आप राम को न ले जाइए।””यदि आपको उसे ले ही जाना है तो उसके साथ मैं भी अपनी सेना लेकर चलता हूं। मेरे शूरवीर सैनिक अस्त्र-विद्या में कुशल और पराक्रमी हैं। उनके साथ मैं स्वयं हाथ में शस्त्र लेकर आपके यज्ञ की रक्षा करूंगा।

“यह सुनकर विश्वामित्र जी बोले, “रावण नाम का एक कुख्यात राक्षस है, जिसने ब्रह्माजी से मुंह मांगा वरदान प्राप्त कर लिया है और अब वह निशाचर तीनों लोकों के निवासियों को कष्ट दे रहा है। उसी के आदेश से ये दोनों राक्षस मारीच और सुबाहु मेरे यज्ञ में विघ्न डालते हैं। उन्हें मारने के लिए मैं श्रीराम को ही ले जाना चाहता हूं।

“यह सब सुनकर दशरथ जी और भी चिंतित हो उठे। वे बोले, “महर्षि! उस रावण के सामने युद्ध में तो मैं भी नहीं ठहर सकता। उसका सामना तो देवता, दानव, गन्धर्व, यक्ष, गरुड़ और नाग भी नहीं कर सकते। फिर मेरे जैसे मनुष्यों की तो बात ही क्या है। मारीच और सुबाहु दैत्य सुन्द और उपसुन्द के पुत्र हैं। वे तो प्रबल पराक्रमी योद्धा हैं। उनसे युद्ध करने के लिए मैं सुकुमार राम को नहीं भेज सकता।”राजा दशरथ की ऐसी बातों को सुनकर महर्षि विश्वामित्र बहुत क्रोधित हो गए। वे बोले, “राजन! पहले तुमने स्वयं ही मुझे मुंह मांगी वस्तु देने की प्रतिज्ञा की और अब तुम स्वयं ही उससे पीछे हट रहे हो।

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तुम्हें यदि ऐसा ही व्यवहार उचित लगता है, तो मैं जैसा आया था, वैसा ही वापस लौट जाता हूं। तुम अपनी प्रतिज्ञा को झूठी सिद्ध करके अपने परिवार और बन्धु बांधवों के साथ सुखी रहो।”उनके इस क्रोध को देखकर सभी लोग भयभीत हो गए। यह देखकर अब महर्षि वसिष्ठ आगे बढ़े और उन्होंने दशरथ को समझाते हुए कहा, “महाराज! आप महान इक्ष्वाकु वंश में जन्मे हैं और आपकी धर्मपरायणता सारे संसार में प्रसिद्ध है।

अतः आप अपने धर्म का पालन कीजिए और अधर्म का भार अपने सिर पर न उठाइए।””आप निश्चिंत होकर श्रीराम को महर्षि विश्वामित्र के साथ भेज दीजिए। श्रीराम अभी अस्त्र-विद्या जानते हों या न जानते हों, किंतु महर्षि के होते हुए वे राक्षस श्रीराम का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते।””महर्षि विश्वामित्र सभी बलवानों में सबसे श्रेष्ठ हैं और तपस्या के तो ये विशाल भंडार ही हैं। तीनों लोकों में जितने भी प्रकार के अस्त्र हैं, ये उन सभी को जानते हैं।

जब विश्वामित्र जी राज्य का शासन करते थे, तब प्रजापति कुशाश्व ने स्वयं ये सारे अस्त्र उन्हें समर्पित किए थे।””महाप्रतापी विश्वामित्र जी चाहें तो स्वयं ही उन सब राक्षसों का अकेले संहार करने से समर्थ हैं, किंतु वे आपके पुत्र का कल्याण करना चाहते हैं, इसलिए यहां आकर आपसे याचना कर रहे हैं।

आप निःशंक होकर श्रीराम को इनके साथ जाने दीजिए।”यह बातें सुनकर दशरथ जी की चिंता दूर हो गई और उनका मन प्रसन्नता से खिल उठा। उन्होंने स्वयं ही राम और लक्ष्मण को अपने पास बुलाया। फिर माता कौशल्या, पिता दशरथ और पुरोहित वसिष्ठ जी ने स्वस्ति वाचन किया और यात्रा की सफलता के लिए श्रीराम को मंगलसूचक मंत्रों से अभिमंत्रित किया गया।

इसके बाद दशरथ जी ने श्रीराम को प्रसन्नतापूर्वक महर्षि विश्वामित्र को सौंप दिया। आगे-आगे विश्वामित्र, उनके पीछे श्रीराम व उनके पीछे सुमित्रानंदन लक्ष्मण चल पड़े।(आगे अगले भाग में…)

(स्रोत: वाल्मीकि रामायण। बालकाण्ड। गीताप्रेस)(नोट: वाल्मीकि रामायण में इन सब घटनाओं को बहुत विस्तार से बताया गया है। मैं बहुत संक्षेप में केवल उसका सारांश ही लिख रहा हूँ। पूरा ही ग्रन्थ जस का तस यहाँ नहीं लिखा जा सकता, लेकिन अधिक विस्तार से जानने के लिए आप मूल ग्रन्थ को भी अवश्य पढ़ें।)

साभार

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TAGGED: maharishi valmiki, Ramayan, ramayan story in hindi, ramayana, Valmiki Ramayan
Courtesy Desk December 16, 2022
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