यह एक ऐसी वीरगाथा है,जो भारत के इतिहास में चार चांद लगाती है,यह गाथा है मातृशक्ति के पराक्रम की,जो भारत इतिहास के उस सुनहरे समय की गवाह है,जब भारत में स्त्रियां भी शासन कर सकती थी और युद्ध में दुश्मन को चारों खाने चित्त भी कर सकती थी।
केवल यही क्यों, इससे पूर्व भी सम्राट मिहिरभोज ने स्त्रियों के हाथों में तलवार देकर उन्हें अरबों से लड़वाया था, भारत की वीर क्षत्राणियों ने अरबों को अपनी तलवार का ऐसा स्वाद चखाया की सारा अरब जगत ” हाय अल्लाहः – हाय अल्लाहः” करने लगा ।
कुछ ऐसी ही वीर गाथा लिखी गयी बारहवीं सदी के मध्य में, काकतीय प्रदेश में इस बार सिंहासन पर एक पुरुष नहीं, बल्कि महिला विराजमान थी । 1259 का वह समय था । जब काकतीय वंश ने एक कन्या के हाथ मे अपने राष्ट्र की सत्ता सौंप दी ।
क्योंकि उस वंश में उस दौरान कोई राजकुमार नहीं जन्मा तो राजा ने अपनी राजकुमारी को ही राजकुमार जैसे पाला और उसका नाम भी रुद्रदेव रखा गया, यहां तक कि उस कन्या को भी ज्ञान नही था कि वह पुरुष नही,महिला है,..यूद्ध भूमि पर कन्या रुद्रदेव अपनी तलवार से हाहाकार मचा देती, आसपास के राजा भी उसे प्रतापी राजा समझने लगे,यहां तक कि कई राजकुमारियां भी रुद्रदेव के प्रताप की गाथा सुनकर उनपर मर मिटी।

काकतीय सुर्यवंशी क्षत्रिय हैं, इनका गोत्र भारद्वाज है, यह खुद को श्री राम के वंशज कहते है । लेकिन रुद्रमादेवी के बाद यह वंश चन्द्रवंश में बदल गया था, क्योंकि काकतीय वंश में कोई राजकुमार नहीं हुआ, रुद्रमादेवी का विवाह सोलंकी (चालुक्य) नरेश वीरभद्र के साथ हो गया,..जो कि एक चन्द्रवंशी कुल था । चालुक्य सोलंकी खुद को अर्जुन का वंशज कहते हैं । वर्तमान में निजाम की जो राजधानी है, वहीं काकतीय प्रदेश था, तुगलक के काल मे रुद्रमादेवी के पुत्र प्रतापरुद्र तुगलक से हार गए थे, उसके बाद इस प्रदेश पर मुसलमानों का अधिकार हो गया।
रुद्रमादेवी, रुद्रदेव बनकर जब सिंहासन पर विराजमान हुई थी, तो उनके समक्ष संकटो की भरमार थी, सामन्त अपने आप को स्वतंत्र करने के प्रयास में थे, तो दूसरी ओर दिल्ली का सुल्तान भी उनके वैभवशाली राज्य पर नजर गढ़ाए बैठा था ।
चौदह वर्ष की रुद्रमादेवी ने बड़ी कठोरता से विद्रोह को दबाया और राज्य में शांति की स्थापना की, लेकिन अभी भी संकट टला नहीं था, मुसलमान सुल्तान, काल की भांति मुँह फाड़े एक ही बार में काकतीय प्रदेश को निगल जाने की ताक में था, लेकिन सुल्तान के रुद्रमादेवी पर जितने आक्रमण हुए,…हर बार उसे मुँह की खानी पड़ी । इसी बीच रुद्रमादेवी ने शक्तिशाली चोल साम्राज्य को उखाड़कर उसे अपने अधीन कर लिया ।आंध्र ओर तमिलनाडु की सीमा पर लगते कई प्रदेशों को जीत रुद्रमादेवी ने एक विशाल साम्राज्य स्थापित कर दिया ।
उनकी म्रत्यु के बाद उनके पुत्र रुद्रप्रताप पर सुल्तानों के बार बार आक्रमण होने के कारण यह राज्य कमज़ोर पड़ गया, और अंत में रुद्रप्रताप हार गए,उसके कुछ समय बाद इस राज्य का पतन हो गया। ऐसी ही कई गाथाएं इतिहास के पन्नों में छिपी हुई हैं जिन्हें अब उजागर करने का समय आ गया है।