
देश के लिए गर्व के पल: ‘कलरी लड़ाके’ विद्युत जामवाल का नाम विश्व के श्रेष्ठ मार्शल आर्ट लड़ाकों में शामिल हुआ।
भारत की जिस युद्ध कला को श्रीकृष्ण से लेकर बोधिधर्मन ने विकसित किया, आज उसी में महारत एक योद्धा ने फिर से भारत को गौरवान्वित किया!
कलरीपायट्टु यानी…!
पांचवी सदी का बिसराया एक कालखंड आज पुनः जीवित हो गया है। ये वह स्वर्णिम कालखंड था, जिसमे आज के ‘कंग-फू’ की आधारशिला रखी गई थी। ‘कंग- फू’ यानि ‘कलरीपायट्टु’, जिसका अविष्कार स्वयं श्रीकृष्ण ने किया। महर्षि अगत्स्य और परशुराम ने इस कला को नए आयाम दिए। बोधिधर्मन ने श्री कृष्ण की इस युद्धकला से संसार का परिचय करवाया। बिसराया कालखंड इसलिए पुनः स्मरणीय हो गया है क्योंकि भारत के एक ‘कलरी योद्धा’ को दुनिया के श्रेष्ठ मार्शल आर्ट्स फाइटर्स में चुना गया है। इस कलरी योद्धा का नाम है ‘विद्युत जामवाल’।
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कृष्ण ने जिसे विकसित किया अगत्स्य मुनि ने उसे फैलाया!
भारतभूमि में इस विलक्षण कला का अविष्कार ‘कलरीपायट्टु’ के रूप में हुआ था। पुराण कहते हैं कि श्रीकृष्ण इस अनुपम कला के जनक थे। श्रीकृष्ण ने कलरीपायट्टु के माध्यम से ही सोलह साल की आयु में राक्षसी प्रवृत्ति के रजक का सर हथेली के वार से काट दिया था। श्रीकृष्ण ने मार्शल आर्ट का विकास ब्रज क्षेत्र के वनों में किया था। उनकी ‘नारायणी सेना’ इस कला को सीखकर उस समय की सबसे शक्तिशाली और घातक सेनाओं में गिनी जाने लगी थी। उनके अलावा कलरीपायट्टु को अगत्स्य मुनि ने विकसित किया था। परशुराम ने ‘धनुर्वेद’ की सहायता से इस कला को विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। कालांतर में ‘कलरीपायट्टु’ एक स्थापित युद्ध कला बन गई। पांचवी सदी में एक विलक्षण योद्धा प्रकट हुआ। इसका नाम बोधिधर्मन था।
बोधिधर्मन ने इस कला को वैश्विक पहचान दिलाई!
आज के लोकप्रिय मार्शल आर्ट्स के जनक बोधिधर्मन पांचवीं सदी में चीन पहुंचे और इस भारतीय युद्धकला को विश्व पटल पर स्थापित कर दिया। ये वह समय था जब बौद्ध धर्म भारत की सीमाओं से बाहर फैलने लगा था। बोधिधर्मन का जन्म दक्षिण भारत में पल्ल्व राज्य के राजपरिवार में हुआ था। कांचीपुरम के राजा के इस बेटे ने कम उम्र में संन्यास ले लिया और बौद्ध भिक्षु बन गए। बाइस की उम्र में वे बौद्ध धर्म के सन्देश वाहक के रूप में चीन पहुंचे।
जब बोधिधर्मन चीन के नानयिन गांव पहुंचे तो उनको संकट समझकर बाहर खदेड़ दिया गया। उनके जाते ही गांव में महामारी का प्रकोप हुआ। बोधिधर्मन एक योद्धा होने के साथ आयुर्वदाचार्य भी थे। उन्होंने अपने चिकित्सकीय ज्ञान से महामारी को ख़त्म किया। बोधिधर्मन का योद्धा रूप उस समय देखने को मिला जब गांव पर लुटेरों ने हमला बोल दिया। बोधिधर्मन ने ‘कलरीपायट्टु’ और सम्मोहन विद्या के बल पर अकेले ही लुटेरों को परास्त कर दिया। उस दिन चीन के लोगों ने जाना कि बिना हथियार भी युद्ध किया जा सकता है।
कई साल चीन में रहकर उन्होंने लोगों को ‘कलरीपायट्टु’ के गुर सिखाए। माना जाता है चाय की पत्तियों की खोज उन्होंने ही की थी। दंतकथा है कि नींद से परेशान होकर उन्होंने अपनी पलकें काटकर फेंक दी थी। जहाँ पलकें गिरी, चाय के पौधे उग आए। हालांकि इस कथा का अर्थ यही है कि उन्होंने अपने शिष्यों का आलस्य खत्म करने के लिए चाय के पौधे की खोज की थी। बाद में जब उन्होंने भारत में लौटने की इच्छा प्रकट की तो पुनः एक संकट की भविष्यवाणी हुई। ग्रामीणों को डर था कि यदि बोधिधर्मन गांव से गए तो बड़ा संकट आएगा। उनका विश्वास था कि बोधिधर्मन की मृत्यु यहीं हो जाए तो वे संकट से बचे रहेंगे। ग्रामीणों ने चाय में विष मिलाकर उन्हें पीने के लिए दिया। घूंट भरते ही वे समझ गए कि चाय में क्या है। गांववालों के लिए उन्होंने वह विष का प्याला भी सहर्ष स्वीकार लिया और अनंतलोक की यात्रा पर चल दिए।
विद्युत ने फिर से इसे भारतीयों के बीच जीवित कर दिया!
विद्युत जम्मू के रहने वाले हैं और आज देश के नंबर एक मार्शल आर्ट फाइटर हैं। फिल्म उद्योग में उन्होंने सम्मानजनक स्थान प्राप्त किया है। सेना के परिवार से होने के कारण अनुशासन और शारीरिक श्रम से उनका बचपन से ही नाता रहा है। मात्र तीन वर्ष की आयु से विद्युत केरल के पलक्कड़ में ‘कलरीपायट्टु’ सीखते थे। ख़ास बात कि ये स्कूल उनकी माँ संचालित करती हैं। ‘कलरीपायट्टु’ सीखने के बाद विद्युत ने विश्व के कई देशों की यात्राएं की और मार्शल आर्ट की विभिन्न शैलियों पर अपनी पकड़ बनाई। मार्शल आर्ट में डिग्री लेने के बाद उन्होंने 25 देशों का सफर किया। इन देशों में उन्होंने कई एक्शन शो में हिस्सा लिया। सन 2011 में वे एक तेलगु फिल्म ‘शक्ति’ के जरिये फिल्म उद्योग में कदम रखते हैं और हिन्दी फिल्म ‘फ़ोर्स’ से बॉलीवुड में एंट्री करते हैं। इसके बाद आई उनकी फिल्म ‘कमांडो’ ने उन्हें बतौर नायक स्थापित कर दिया।
अमेरिका की एक मीडिया कंपनी ‘लूपर’ ने दो दिन पूर्व विश्व के सबसे तेज़ और घातक मार्शल आर्ट लड़ाकों की लिस्ट जारी की है। विश्व के इन सर्वोत्तम लड़ाकों में विद्युत अकेले भारतीय हैं। इससे पहले भारत के किसी व्यक्ति को इस सूची में स्थान नहीं मिला है। भारत के लिए गर्व की बात है कि ‘चोई’, ‘स्कॉट एडकिंस’, ‘जरोर क्राउडर’, ‘वू जी’ और ‘नग्युयेन’ जैसे शीर्ष लड़ाकों के साथ एक भारतीय ‘कलरी’ लड़ाके का नाम भी जुड़ गया है। आज की तारीख में विद्युत जामवाल की टक्कर का दूसरा मार्शल आर्ट योद्धा भारत में तो नहीं है। उनके बाद टाइगर श्रॉफ का नाम आता है। फिल्म बागी में टाइगर श्रॉफ ने ख़ास तौर पर कलरी की ट्रेनिंग मास्टर शिफूजी शौर्य भारद्वाज से ली थी।
कलरीपायट्टु दो शब्दों से मिलकर बना है, पहला कलरी जिसका मतलब ‘स्कूल’ या ‘व्यायामशाला’, वहीं दूसरे शब्द पायट्टु का मतलब होता है ‘युद्ध या व्यायाम करना’। इसे सीखने में कई वर्ष लग जाते हैं। कलरीपायट्टु वास्तव में एक जीवनशैली है। इसे सीखने के बाद साधक न केवल प्रबल योद्धा बन जाता है बल्कि चिकित्सा का ज्ञान भी हो जाता है। आमतौर पर इसे सात वर्ष की आयु से सीखा जाता है। कलरीपायट्टु का अभ्यास ‘कलरी’ में किया जाता है, जिसे आम भाषा में इस कला का अखाड़ा भी कहा जा सकता है।
कृष्ण ने जिस अनुपम कला का अविष्कार किया। अगत्स्य और परशुराम ने जिसे संवारा। बोधिधर्मन ने जिस कला को विश्व में प्रचारित करने के लिए विषपान कर लिया। दस लोगों को एक साथ धराशायी करने की वह युद्ध कला भारत से विलुप्त होती चली गई और दुनिया में ‘कंग-फू’ के नाम से प्रचारित हो गई। वह तो भला हो चीन की ईमानदारी का कि उन्होंने देश के शाओलिन टेम्पल्स में बोधिधर्मन की मूर्तियां खड़ी कर रखी है। आज भारतीय मार्शल आर्ट फॉर्म कलारीपायट्टू को वैश्विक मान्यता मिली है। बोधिधर्म ने दुनिया को जो दिया, वह मय ब्याज भारत के पास लौटकर आ गया है।
इंडिया स्पीक्स डेली के फिल्म क्रिटिक विपुल रेगे द्वारा विद्युत जामवाल पर लिखी खबर को जामवाल ने ट्वीटर पर सराहा
@RegeVipul Vipul बहुत बहुत धन्यवाद की आपने इतने विस्तार से इसके बारे में इतना अच्छा लिखा, बहुत बढ़िया रिसर्च की।
— Vidyut Jammwal (@VidyutJammwal) August 2, 2018
URL: Vidyut Jamwal named one of the 6 top martial artistes in the world
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