विपुल रेगे। पिछले दो वर्ष में इतना परिवर्तन तो आया कि ‘बॉलीवुड-बॉयकॉट’ की बात फिल्म उद्योग स्वीकार करने लगा है। बॉयकॉट तो सुशांत की मौत और ड्रग्स के खुलासे के बाद से ही शुरु हो गया था लेकिन इंडस्ट्री द्वारा उसे स्वीकारा नहीं जा रहा था। शायद इस बात का गुमान था कि नागरिकों का सत्याग्रह दो दिन में हवा हो जाएगा। दो साल पूर्व शुरु हुआ ये सत्याग्रह निर्णायक मोड़ पर पहुँच चुका है और बॉलीवुड भी इस बात को स्पष्ट भांप रहा है।
इन दिनों शाहरुख़ खान के इंटरव्यू का एक हिस्सा बड़ा वायरल हो रहा है। इसमें वे फिल्म समीक्षक कोमल नाहटा से कहते हैं ‘हवा से तो नहीं हिलने वाला हूं। हवा से झाड़ियां हिलती हैं।’ ये बात उन्होंने ‘बॉलीवुड-बॉयकॉट’ के बारे में पूछे गए प्रश्न के बाद कही है। शाहरुख़ ने इस बातचीत में बिना नाम लिए आमिर ख़ान पर भी तंज़ कसा है। वे कहते हैं ‘कभी-कभी ये अच्छा रहता है कि अगर पिक्चर उतनी ना चले तो ये एक्सक्यूज रहता है। लेकिन बॉयकॉट हुआ था इसलिए नहीं चली।
दिल बहलाने के लिए यह गालिब खयाल अच्छा है कि फिल्म अच्छी थी, लेकिन सोशल बॉयकॉट की वजह से नहीं चल पाई।’ शाहरुख़ ख़ान ये बात कह सकते हैं क्योंकि वे अब तक बॉयकॉट नामक बुलडोजर के नीचे रौंदे नहीं गए हैं। शाहरुख़ को एक ऐसा लाभ मिलता आया है, जो बॉलीवुड के अन्य अभिनेताओं को नहीं मिलता, या बहुत कम मिलता है। शाहरुख़ को ओवरसीज मार्केट का किंग कहा जाता है। उनकी फ्लॉप फिल्मों को भी विदेश में अच्छे दर्शक मिलते हैं।
सो भारत में बॉयकॉट हो भी जाए तो विदेश संभाल लेता है। शाहरुख़ की आखिरी ब्लॉकबस्टर फिल्म सन 2014 में आई थी। फराह खान द्वारा निर्देशित ‘ओम शांति ओम’ ने देश-विदेश में अच्छे कलेक्शन किये थे। इसके बाद से शाहरुख़ ने बुरा वक्त देखा है। उनकी सात फ़िल्में फ्लॉप हो गई। इस पर ‘बॉलीवुड-बॉयकॉट’ का आंशिक असर तो होगा ही। उनके खाते में इस समय बड़ी फ़िल्में हैं। यशराज फिल्म्स की ‘पठान’, एटली कुमार की ‘जवान’ और राजकुमार हिरानी की ‘डंकी’ उनके आगामी मेगा प्रोजेक्ट हैं।
इसके बावजूद उन्होंने कोमल नाहटा के माध्यम से दर्शकों को दबे स्वर में चुनौती दे दी है। इन तीन फिल्मों में एक ‘जवान’ ही ऐसी है, जो सफलता का मुंह देखने की संभावना रखती है। इन दिनों दो बातें एक साथ हो गई है। बॉलीवुड की फिल्मों के विषय और उनका ट्रीटमेंट दर्शकों को ज़रा भी पसंद नहीं आ रहे और उनका बहिष्कार भी हो रहा है। ये दोनों अलग बाते हैं और बॉलीवुड को गहरा घाव दे रही हैं। मसाला फ़िल्में बॉलीवुड की शक्ति थी। उसमे पारिवारिक टच और गली-मोहल्लों की संस्कृति दिखाई जाती थी।
अब तो चाय की गुमटी और पान के ठीये स्क्रीन पर दिखाई ही नहीं देते हैं। अनुराग कश्यप और करण जौहर के सिंथेटिक विषैले सिनेमा ने उस सिनेमाई संस्कृति को नष्ट कर दिया। अब दर्शक न केवल खिन्न है, अपितु अपना भारत दक्षिण की फिल्मों में खोजने लगा है। पुष्पा की अप्रतिम सफलता उसी खोज का परिणाम है। पहले बॉलीवुड के लोग इस बात से ही इनकार करते रहे कि उनका बहिष्कार हो रहा है। फिर वे अहंकार पर उतर आए। फेरहिस्त लंबी है।
अक्षय कुमार, आमिर खान, सलमान खान, तापसी पन्नू, करण जौहर बहिष्कार के बुलडोजर तले कुचले गए हैं। शाहरुख़ भले ही ‘झाड़ी’ न हो लेकिन उनको ये अहसास ज़रा सा भी नहीं है कि ये बुलडोज़र बड़े घातक परिणाम लेकर आने वाला है।