विपुल रेगे। जब तक यश राज चोपड़ा जीवित रहे, यशराज फिल्म्स का संगीत मेलोडियस रहा। मधुर संगीत यशराज की फिल्मों की रीढ़ हुआ करता था। सबसे अधिक म्यूजिकल संभवतः यश चोपड़ा ने ही बनाए थे। आज यशराज फिल्म्स ने अपनी फिल्म ‘पठान’ का एक गीत ‘बेशर्म रंग’ रिलीज किया है। इस गीत से वह सब कुछ गायब है, जिसके लिए यशराज जाने जाते हैं।
निर्माता आदित्य चोपड़ा ने जब यशराज फिल्म्स की कमान संभाली तो ये एक छोटा सा प्रोडक्शन था। एक बहुत ही माहिर निर्देशक आदित्य चोपड़ा एक माहिर निर्माता भी बन गए। अच्छी व्यावसायिक सोच से आदित्य ने यशराज फिल्म्स को एक कंपनी का रुप दे दिया। अब कंपनी फ़िल्में मशीनी अंदाज़ में बनाने लगी। फ़िल्में जितनी अधिक बनती जा रही थी, क्रिएटिविटी उतनी रफ़्तार से ख़त्म होती जा रही थी।
सन 1973 में यश चोपड़ा ने ‘दाग़’ बनाकर यशराज फिल्म्स की शुरुआत की थी। कभी-कभी, दूसरा आदमी, काला पत्थर और नूरी ने यश चोपड़ा को फिल्म उद्योग में स्थापित कर दिया था। यश की फिल्म मेकिंग प्रेम कहानी और मधुर संगीत के बिना पूरी नहीं होती थी। जैसे ही यशराज फिल्म्स का भार आदित्य के कन्धों पर आया, उनकी फिल्मों का संगीत खराब होने लगा।
सन 2018 में ठग्स ऑफ़ हिन्दुस्तान और उसके बाद की पांच फिल्मों में तो संगीत पूरा ही बेसुरा हो गया। आज यशराज की ‘पठान’ का ‘बेशर्म रंग’ गीत रिलीज हुआ है। फिल्म में विशाल- शेखर, संचित बल्हारा और अंकित बल्हारा ने संगीत दिया है। इस एक गीत से ही अंदाज हो गया है कि फिल्म में संगीत की क्या दशा बनाई गई है। इसमें मेलोडी नहीं है लेकिन दीपिका की देह के दर्शन होते हैं। शाहरुख़ खान हिप्पी लुक में दिखाई दे रहे हैं।
ये गाना पिक्चराइजेशन में यशराज की ही एक फिल्म ‘वॉर’ के एक गीत ‘घुंघरु’ की नक़ल लग रहा है। आदित्य के पिता ने फिल्म संगीत को शिखर पर पहुंचाया था। उनकी फिल्मों में खय्याम, शिवहरि जैसे संगीतकारों ने संगीत दिया था। और आदित्य ने उस सांगीतिक प्रतिष्ठा को धूल चटाकर रख दी है। यश चोपड़ा की फिल्मों के गीत पहले लिखे जाते थे, फिर सिचुएशन समझकर संगीतकार संगीत देते थे।
इसके बाद यश कैमरा उठाकर गाना शूट करते थे। गाना बनाने की ये परंपरा वर्षों तक कायम रही, जब तक कि कंप्यूटर क्रियेटेड सॉफ्टवेयर नहीं आ गए। हालाँकि अब निर्माता-निर्देशक और संगीत कंपनियां मेलोडी को आगे आने ही नहीं देती। आगे आती है तो प्रतिस्पर्धा और संगीत कंपनियों का अहं आगे आता है। हाल ही में नेटफ्लिक्स पर एक म्यूजिकल फिल्म ‘कला’ रिलीज हुई है।
‘कला’ के गीत अमित त्रिवेदी ने बनाए हैं। आज संगीत प्रेमी इन गीतों को सुनकर कहते हैं कि ‘मेलोडी’ इसे कहते हैं। आज यशराज जीवित होते और ‘बेशर्म रंग’ देख लेते तो शर्म से मर जाते। यशराज प्रोडक्शंस अब फ़िल्में बनाने वाली फैक्टरी बन चुकी है। मशीने एक जैसी चीजे बनाती है। उसमे रचनात्मक मन नहीं होता। यश चोपड़ा की फ़िल्में उनके दिल से निकली थी और आदित्य की फ़िल्में फैक्टरी से निकल रही है।
‘बेशर्म रंग’ में शानदार सिनेमेटोग्राफी हो सकती है लेकिन मेलोडी नहीं है। उसमे दीपिका की आँखे चौंधिया देने वाली देह थिरक तो रही है, लेकिन बेजान लग रही है। एक चमकदार पैकेट में ‘बेसुरापन’ परोसा गया है। कैसा उलटफेर हो गया है। जहाँ से अच्छे संगीत की उम्मीद थी, वहां से कचरा मिला है और जिसे हम बेजान ओटीटी प्लेटफॉर्म मानते हैं, वहां सुरीले फूल खिले हैं।