हर रोज़ टूटकर बिखर जाता है मेरा दिल !
डूबता हुआ मन , डर से खोजता है सुन्दर साहिल !
दिल की धड़कनें , मां भारती का बनना चाहती हैं स्वर
अपने लहू से राष्ट्र अभिषेक करना चाहता हूं , मगर !
कर ही नहीं पाता हूं मोह में फंसकर !
सांसारिक प्रलोभनों के पाश में बंधकर !
भगत सिंह ने भला प्रेमिका कहां देखी थी ?
आदि शंकर ने भी प्रणय की बातें कहां सीखी थी ?
संसार का भोग करूं ? या चुन लूं सन्यास ?
क्या मुझमें इतनी क्षमता है ? या झूठा है ये विश्वास ?
सत्य है मेरा मन या फिर है ये बकवास ?
कभी महर्षि अरविंद स्वप्न में आते तो कभी
राम शर्मा आचार्य गृहस्थ ऋषि बनने को कह जाते !
मैं निरीह तड़पता रहता ! कुछ समझ न आता !
विवाह चुनूं या वैराग्य का वरण करूं ?
या बस ! घटिया जीवन जीता रहूं ?
हे मां दुर्गा ! दश प्रहर धारिणी , कुछ मदद करो !
मोहे इस सांसारिक दलदली कीचड़ से निकालो मां !
या फिर सीता मां – सा मुझे भी धरती में समा जाने दो !
हर रोज़ टूटकर बिखर जाता है मेरा दिल !
डूबता हुआ मन , डर से खोजता है सुन्दर साहिल !
दिल की धड़कनें , मां भारती का बनना चाहती हैं स्वर
अपने लहू से राष्ट्र अभिषेक करना चाहता हूं , मगर !
कवि
आदित्य जैन “आदि अद्वैत”