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India Speak Daily > Blog > Blog > नारी जगत > कबीर ने भी लिखी स्त्री विरोधी पंक्तियाँ, फिर वामपंथियों ने तुलसी पर क्यों प्रहार किया
नारी जगत

कबीर ने भी लिखी स्त्री विरोधी पंक्तियाँ, फिर वामपंथियों ने तुलसी पर क्यों प्रहार किया

Sonali Misra
Last updated: 2020/09/09 at 5:00 PM
By Sonali Misra 6.7k Views 6 Min Read
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वह दिनों दिन हमें तोड़ने के लिए कुछ न कुछ नया सामने लाते हैं। जब तुलसीदास को जनता की दृष्टि से गिराने में सफल न हो पे, तो अकादमिक में एक नया विमर्श वामपंथी ले आए कि तुलसी स्त्री विरोधी थे। एक सूत्र पकड़ लिया कि

“ढोल गंवार शूद्र पशु नारी,
सकल ताड़ना के अधिकारी”

Leftists Targeting Tulsidas by glorifying Kabirdas
Leftists Targeting Tulsidas by glorifying Kabirdas

और इस पर तमाम विमर्श बैठा दिए गए, और उसके बाद यहाँ तक कहा जाने लगा कि तुलसीदास का साहित्य हिंदी से मिटा ही देना चाहिए। कबीरदास को तुलसी के सामने खड़ा किया, और कहा गया कि तुलसी के राम कबीर के राम नहीं हैं। कबीर के राम वह नहीं हैं, जो तुलसी ने पूजे!

मगर वह राम शब्द नहीं मिटा पाए। पर एक बात ध्यान देने योग्य है, कि यदि एक पंक्ति के कारण वह तुलसीदास को स्त्री विरोधी ठहराते हैं,  तो तुलसी के सामने श्रेष्ठ कहे जाने वाले कबीर ने भी एक से बढ़कर एक स्त्री विरोधी रचनाएं कीं। यहाँ पर कबीरदास पर कोई प्रश्न नहीं है, परन्तु यहाँ पर वामपंथियों के उस नैरेटिव पर प्रश्न है कि यदि एक दो पंक्ति से तुलसी बाबा स्त्री विरोधी हो सकते हैं, तो कबीर क्यों नहीं? क्योंकि कबीर भी भली स्त्री और बुरी स्त्री के विषय में और पतिव्रता स्त्री के विषय में उतने ही स्पष्ट हैं, जितने तुलसी! कबीर भी स्त्री के लिए वही सन्देश देते दिखाई देते हैं, जो तुलसी देते हैं, फिर वामपंथियों ने उन्हें तुलसी के सामने क्यों खड़ा किया? एक दोहा तो हद से ज्यादा स्त्री विरोधी है, जो है:

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‘नारी की झांई पड़त, अंधा होत भुजंग
कबिरा तिन की कौन गति, जो नित नारी को संग’

अर्थात नारी की झाईं पड़ते ही सांप तक अंधा हो जाता है, फिर साधारण इंसान की बात ही क्या! और फिर वह लिखते हैं:

कबीर नारी की प्रीति से, केटे गये गरंत
केटे और जाहिंगे, नरक हसंत हसंत।

कबीर तो यहाँ तक कहते हैं कि यदि आपकी इच्छाएं मर चुकी हैं और आपकी विषय भोग की इन्द्रियाँ भी आपके हाथ में हैं, तो भी आप धन और नारी की चाह न करें, वह कहते हैं:

कबीर मन मिरतक भया, इंद्री अपने हाथ
तो भी कबहु ना किजिये, कनक कामिनि साथ।

कलयुग में जो धन और नारी के मोह में नहीं फंसता, उसी के दिल में भगवान हैं, वह लिखते हैं:

कलि मंह कनक कामिनि, ये दौ बार फांद
इनते जो ना बंधा बहि, तिनका हूँ मै बंद।

और उन्होंने स्त्री को नागिन तक कहा है, वह लिखते हैं:

नागिन के तो दोये फन, नारी के फन बीस
जाका डसा ना फिर जीये, मरि है बिसबा बीस।

इसके अतिरिक्त भी कबीरदास जी के कई दोहे हैं, जो स्त्री विरोधी हैं। वहीं तुलसीदास स्त्री की पीड़ा यह कहते हुए व्यक्त करते हैं कि “पराधीन सपने हूँ सुख नाहीं!” तुलसीदास सीता के रूप में एक ऐसा स्त्री आदर्श प्रस्तुत करते हैं, जिनके साथ हर स्त्री आज तक स्वयं को जोड़े रखना चाहती है। तुलसीदास ने अपने पात्रों के माध्यम से स्त्री के हर रूप को प्रस्तुत किया है, जिनमे सीता से लेकर मंदोदरी तक सम्मिलित हैं।  यदि राक्षसी स्त्री भी है तो भी मजबूत चरित्र हैं, फिर चाहे शूपर्णखा हों या त्रिजटा!

दरअसल वामपंथी हर उस व्यक्ति को नष्ट करना चाहते हैं, जो लोक में रमा है, जिसे लोक से प्रेम है और हिन्दू जिससे प्रेम करता है। यह हिन्दुओं के आदर्शों को नीचा दिखाने का षड्यंत्र है। इस देश का जनमानस कबीर और तुलसी दोनों को पूजता है, मगर वह तुलसी के स्थान पर कबीर को नहीं पूजता! 

वामपंथी जन्स्वीकर्यता से भय खाते हैं, इसलिए वह जानबूझकर उसे नीचा दिखाते हैं, मगर वह  चाहते हुए भी तुलसीदास को मानस से हटा नहीं पाए हैं। फिर भी यह प्रश्न पूछा जाना चाहिए कि यदि कुछ पंक्तियों के आधार पर तुलसीदास जी को स्त्री विरोधी ठहरा सकते हैं तो कबीरदास जी को छूट क्यों? लोक की बात न कीजियेगा!

लोक को दोनों पसंद हैं, पर तुलसी की कीमत पर कबीर नहीं। लोक ने हमेशा ही वामपंथ के षड्यंत्र को नकारा था, और फिर नकारेगा! कबीर इसलिए लोक में नहीं हैं कि ये वामपंथी उन्हें पढ़ते हैं, बल्कि वामपंथी इसलिए उन्हें पढ़ते हैं क्योंकि लोक में है और कैसे कबीर और तुलसी को नष्ट किया जाए, वह इस फिराक में हैं! कैसे सनातनियों को आपस में लड़ाया जाए इस फिराक में हैं,  कैसे किसी भी कारण से टुकड़े टुकड़े भारत हो जाए, इस फिराक में है

#Kabirdas @Tulsidas @Redconsipracy

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TAGGED: Against Women, Goswami Tulsidas, Kabir, kabirdas, Red Conspiracy, tulsidas
Sonali Misra September 8, 2020
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Sonali Misra
Posted by Sonali Misra
Follow:
सोनाली मिश्रा स्वतंत्र अनुवादक एवं कहानीकार हैं। उनका एक कहानी संग्रह डेसडीमोना मरती नहीं काफी चर्चित रहा है। उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति कलाम पर लिखी गयी पुस्तक द पीपल्स प्रेसिडेंट का हिंदी अनुवाद किया है। साथ ही साथ वे कविताओं के अनुवाद पर भी काम कर रही हैं। सोनाली मिश्रा विभिन्न वेबसाइट्स एवं समाचार पत्रों के लिए स्त्री विषयक समस्याओं पर भी विभिन्न लेख लिखती हैं। आपने आगरा विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में परास्नातक किया है और इस समय इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से कविता के अनुवाद पर शोध कर रही हैं। सोनाली की कहानियाँ दैनिक जागरण, जनसत्ता, कथादेश, परिकथा, निकट आदि पत्रपत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं।
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3 Comments 3 Comments
  • Avatar Mahesh Singh says:
    September 8, 2020 at 2:22 pm

    wah Sonali ji adbhut tathyatmak lekh ! abhut dhanyabd aapka !

    Loading...
    Reply
  • Avatar निर्मल कुमार says:
    September 8, 2020 at 6:42 pm

    बहुत ही सुंदर और आईना दिखाता लेख ??

    Loading...
    Reply
  • Avatar Anuj Chander says:
    August 18, 2021 at 3:33 pm

    जी कबीर करे या फिर तुलसीदास, सवाल ये होना चाहिए की नारी को ही नीचा क्यों दिखाया जाता है। पुरुष ने ना जाने कितनी बार नारी को रोंदा तो उसी साँप या गधा क्यों ना कहा जाए?
    आपका लेख पढ़ कर तो यही लगता है की औरतों को कबीर ने गाली दी तो आपको बड़ी ख़ुशी हुई। आप से मेरा सवाल यही है की औरत ने ऐसा क्या पाप किया है की उसको ‘ताड़ा’ जाए या फिर ‘नागिन’ कहा जाए?

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    Reply

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