गांधी जी को फिर से परिभाषित करने की जरूरत है, क्योंकि जितना मैंने उन्हें पढा है, उनके व्यक्तित्व में अहंकार को मैंने जबरदस्त पाया है। वह अपनी बात दूसरों पर थोपते थे। जो नहीं मानता था, उस पर भयंकर रूप से क्रोधित भी होते थे। यही कारण कि भारतीय संबोधि परंपरा में वह अपने कर्मों से नहीं आ पाए।
नोआखाली में वह रात में उठ उठ कर बैठ जाते थे कि मेरी कोई हत्या कर देगा! भारत पाकिस्तान बंटवारे के बाद उन्हें अपने मारे जाने का भयंकर डर सताने लगा था! और मृत्यु का डर तभी होता है जब जीवन में ‘मैं’ का भाव अर्थात् अहंकार व्याप्त हो!
महात्मा बुद्ध को पता था कि वह विष वाला भोजन करने जा रहे हैं, श्रीकृष्ण को पता था कि उस रोज वह शिकारी के तीर का शिकार होने जा रहे हैं, राम को अपनी जल समाधि का पता था, आदि शंकर व विवेकानंद जानते थे कि वह शरीर छोड़ने वाले हैं।
दरअसल भारतीय संबोधि परंपरा में ज्ञान प्राप्त महापुरुषों ने मृत्यु का चयन खुद किया, इसलिए वह मृत्यु से नहीं डरे। वहीं गांधी को हम संत, महामानव, महात्मा और न जाने क्या क्या बनाए हुए हैं, लेकिन एक ब्रहमचर्य साधने में उन्होंने जितनी स्त्रियों के साथ हिंसा किया था, उतना किसी ने नहीं किया!
कई स्त्रियों का व्यक्तित्व गांधी के कारण कुंठित हो गया, कई अवसादग्रस्त हो गई और यह सब गांधी के अहंकार के कारण था, जिसके मूल में हिंसा ही थी। पता नहीं क्यों लोग उन्हें अहिंसक कहते हैं?
चौरी-चौरा कांड के बाद सत्याग्रह की समाप्ति भी उन्होंने अपनी सर्वमान्यता पर लगी चोट के कारण समाप्त किया था न कि हिंसा के कारण! सुभाषचंद्र बोस की कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में जीत और अपने उम्मीदवार पट्टाभि की हार को वह पचा नहीं पाए! सुभाष का कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में कार्य करना मुश्किल बनवा दिया था, जिससे उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। यह साफ-साफ गांधी के अहंकार और हिंसा की परिणति थी।
अहिंसक गांधी के रहते पूरी दुनिया का सबसे बडा कत्लेआम भारत-पाक बंटवारे के समय हुआ और फिर भी लोग उन्हें अहिंसक कहते हैं!
गौतम बुद्ध और महावीर की धरती पर जब गांधी को अहिंसा का पुजारी कहा जाता है तो मुझे भारतीयों की मूढता पर केवल तरस आता है!