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India Speaks Daily > Blog > इतिहास > अनोखा इतिहास > क्या सावित्री बाई फुले पहली शिक्षिका थीं? क्या यह भारत के समृद्ध स्त्री इतिहास के साथ छल नहीं है?
अनोखा इतिहास

क्या सावित्री बाई फुले पहली शिक्षिका थीं? क्या यह भारत के समृद्ध स्त्री इतिहास के साथ छल नहीं है?

Sonali Misra
Last updated: 2023/01/09 at 7:27 PM
By Sonali Misra 215 Views 16 Min Read
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सोनाली मिश्रा। रविश कुमार ने अडानी द्वारा चैनल खरीदे जाने एवं नौकरी छोड़ने के बाद यूट्यूब पर अपना दर्द साझा करते हुए एक वीडियो पोस्ट किया कि कैसे “शिक्षा माता” सावित्री बाई फुले का बनाया स्कूल खंडहर में बदल चुका है और उन्होंने स्त्रियों की शिक्षा को लेकर सावित्री बाई फुले को ही ऐसा बताया जैसे कि स्त्रियों का जीवन उस काल खंड से पहले अंधकारमय था। यह सत्य है कि सावित्री बाई फुले ने समाज सेवा का कार्य किया, परन्तु यह कहा जाना कि उनके साथ ही स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार मिला, वह कल्चरल जीनोसाइड का सबसे बड़ा उदाहरण है जब समस्त स्त्रियों को उनके समृद्ध इतिहास से ही काटकर एक ऐसी पहचान के साथ जोड़ दिया जो औपनिवेशिक विमर्श ने दी है।

जैसे ही यह कहा जाता है कि सावित्री बाई फुले पहली शिक्षिका थीं, वैसे ही करोड़ों हिन्दू लड़कियों के मस्तिष्क से उनके समृद्ध इतिहास जिसमें गार्गी, अपाला, विदुषी, घोषा आदि वैदिक स्त्रियों के साथ-साथ महाभारत में वर्णित सुलभा सन्यासिनी, कालिदास को शिक्षा देने वाली उनकी पत्नी विद्योत्तमा, अक्क महादेवी, मीराबाई, सहजो बाई, जीजाबाई, हिन्दुओं के मंदिरों का जीर्णोद्धार कराने वाली रानी अहिल्या, अंग्रेजों से लोहा लेने वाली रानी लक्ष्मी बाई, उनकी हमशक्ल एवं बलिदान देने वाली झलकारी बाई, सहित उन तमाम स्त्रियों की तमाम उपलब्धियों को भुला देते हैं, जिन्होनें अब तक स्त्रियों की चेतना को थाम रखा है।

रविश कुमार तो एजेंडा पत्रकार हैं, परन्तु यह तो सरकार द्वारा भी कहा गया कि लड़कियों के लिए भारत का प्रथम विद्यालय शुरू किया गया 1 जनवरी 1848 को।

सरकारी विभाग होकर झूठ फैला रहे हैं? 1848 के बाद की विदुषी महालाओं का आपको शायद नाम भी याद न हो, परंतु वेद-उपनिषद काल की गार्गी, मैत्रेयी, लोपामुद्रा, भारती आदि का नाम आज भी जन-जन जानता है। अंग्रेजों व कम्युनिस्टों के फैलाए झूठ को न फैलाएं। शोध करें। https://t.co/xZB9yw2LMq

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तथाकथित इतिहासिक प्रोपेगैंडा को ध्वस्त करें।
स्वामी विवेकानन्द : व्यवहारिक जीवन के शिक्षक
— संदीप देव #SandeepDeo (@sdeo76) January 2, 2023

वेदों में एक नहीं कई ऋषिकाओं के उल्लेख प्राप्त होते हैं। फिर ऐसे में क्या माना जाए कि उन्हें शिक्षा नहीं मिली होगी? यदि प्रथम विद्यालय 1848 में बना था तो इसका अर्थ यह था कि विवाह में मन्त्र रचने वाली सूर्या सावित्री अनपढ़ थीं? यह माना जाए कि रोमशा जिन्होनें स्त्री विमर्श रचा, उनमें ज्ञान नहीं था? वैदिक काल में एक नहीं असंख्य स्त्रियाँ ऐसी थी जिन्होंने विमर्श की नींव रखी। तो क्या वह अनपढ़ थीं? या वेदों को यह लोग नहीं मानते हैं?

वैदिक काल में कम से कम 25-30 ऋषिकाओं का उल्लेख है जिसमें सबसे महत्वपूर्ण है रोमशा! रोमशा पहली ऐसी स्त्री थी जिन्होनें इस विमर्श को आरम्भ किया कि स्त्री के सौन्दर्य से इतर उसकी बुद्धि और गुण के आधार पर आंकलन किया जाना चाहिए।

Savitribai was indeed a British Missionary. Nobody's declaration is needed.

She was trained by missionaries & her school was organized & funded by Missionaries.

This question was asked in KBC 13.

How does a Noball Prize fact checker miss basic facts?https://t.co/aaVViPYx0R https://t.co/7rwigBh1SB pic.twitter.com/8AtikAI59x

— Bharadwaj (@BharadwajSpeaks) January 6, 2023

ऋग्वेद के प्रथम मंडल के 126वें सूक्त के सातवें मन्त्र की रचयिता रोमशा लिखती हैं

“उपोप मे परा मृश मा मे दभ्राणि मन्यथाः।

सर्वाहमस्मि रोमशा गन्धारीणामिवाविका ॥“

सूर्या सावित्री को ऋग्वेद में सूर्य की पुत्री कहा गया है तथा ऋग्वेद के दसवें मंडल को विवाह सूक्त कहा जाता है, और आज की स्त्रियों को पता ही नहीं होगा कि इस विवाह सूक्त के मन्त्र किसी और ने नहीं बल्कि सूर्या सावित्री ने की है।

कुछ मन्त्र हैं:

सम्राज्ञी श्वशुरे भव सम्राज्ञी श्वश्रवाम् भव

ननान्दरि सम्राज्ञी भाव सम्राज्ञी अधि देवृषु।  (ऋग्वेद 10 मंडल सूक्त 85। मन्त्र 46)

अर्थात वह अपने श्वसुर गृह की साम्राज्ञी बने, अपनी सास की साम्राज्ञी बने, वह अपनी नन्द पर राज करे एवं अपने देवरों पर राज करे।

सूर्या सावित्री ने तब उन मन्त्रों की रचना की जब विश्व की कई परम्पराएं देह एवं विवाह के मध्य संबंधों को ठीक से समझ ही रही होंगी। इन मन्त्रों में सहजीवन के सहज सिद्धांत हैं जो अर्धनारीश्वर की अवधारणा को और पुष्ट करते हैं। मन्त्र संख्या 43 में संतान की कामना के साथ ही एक साथ वृद्ध होने की इच्छा है।

आ नः प्रजां जन्यातु प्रजापति राज्ररसाय सम्नक्त्वर्यमा

अदुर्मंगलीः पतिलोकमा विशु शं नो भव द्विपदे शम् चतुष्पदे ।

(ऋग्वेद 10 मंडल सूक्त 85 मन्त्र 43)

अर्थात पति पत्नी द्वारा प्रजापति से मात्र अच्छी संतान की कामना ही नहीं है अपितु वृद्ध होने पर अर्यमा से रक्षा की भी प्रार्थना है, इसके साथ ही हर पशु के कल्याण की भी कामना है। सूर्या सावित्री बाद में प्रचलित अबला स्त्री एवं त्यागमयी स्त्री की छवि से उलट यह कहती हैं कि स्त्री अपने पति के साथ अपनी संतानों के साथ अपने भवन में आमोद प्रमोद से रहे।

एक और वैदिक ऋषिका हैं, उनका नाम है विश्ववारा! उन्होंने अग्निदेव की आराधना करते हुए ऋग्वेद के पंचम मंडल के २8वें सूक्त को रचा है। उन्होंने तीसरी ऋचा में लिखा है

अग्ने शर्ध महते सौभगाय तव द्युम्नान्युत्तमानि सन्तु।

सं जास्पत्यं सुयममा कृणुष्व शत्रूयतामभि तिष्ठा महांसि ॥३॥ (ऋग्वेद 5 मंडल 28 सूक्त मन्त्र 3)

इसका अंग्रेजी अनुवाद है

Show thyself strong for mighty bliss, O Agni, most excellent be thine effulgent splendours।

 Make easy to maintain our household lordship, and overcome the might of those who hate us। (Ralph T।H। Griffith)

इस में अग्नि से दाम्पत्त्य सम्बन्ध सुदृढ़ करने के कामना के साथ ही यह भी कामना की गई है कि उनका नाश हो जो उनके दाम्पत्त्य जीवन के शत्रु हैं।  स्त्री विजयी होना चाहती है, परन्तु वह विजय वह अकेले नहीं चाहती, वह चाहती है कि जो उसके जीवन में हर क्षण साथ निभा रहा है, वह उसके साथ ही हर मार्ग पर विजयी हो।

विश्ववारा को कर्म सिद्धांत प्रतिपादन करने वाली भी माना जाता है। विश्ववारा ने चौथे मन्त्र में अग्नि के गुणों की स्तुति की है।

समिद्धस्य प्रमहसोऽग्ने वन्दे तव श्रियम्।

वृषभो द्युम्नवाँ असि समध्वरेष्विध्यसे

इसका अंग्रेजी अनुवाद है:

Thy glory, Agni, I adore, kindled, exalted in thy strength।

A Steer of brilliant splendour, thou art lighted well at sacred rites।

(Ralph T।H। Griffith)

विश्ववारा द्वारा स्वयं यज्ञ किए जाने का भी उल्लेख प्राप्त होता है, विश्ववारा ने अपने मन्त्रों के माध्यम से अग्निदेव की प्रार्थना की है, प्रार्थना में अग्नि देव के गुणों के वर्णन के साथ साथ दाम्पत्त्य सुख का भी उल्लेख है। स्त्री को सदा से ही भान था कि एक सफल दाम्पत्त्य के लिए क्या आवश्यक है और क्या नहीं, देवों से क्या मांगना चाहिए, अतिथियों का स्वागत किस प्रकार करना चाहिए। जब हम सृष्टि के प्रथम लिखे हुए ग्रन्थ को देखते हैं, और उसमें हमें विश्ववारा भी टकराती हैं तो सच कहिये क्या क्रोध की एक लहर आपके भीतर जन्म नहीं लेती कि यह मिथ्याभ्रम किसने और क्यों उत्पन्न किया कि स्त्री को वेद अध्ययन करने का अधिकार नहीं?

वेदों में स्त्री नामक पुस्तक में ऐसी ही तमाम स्त्रियों के विषय में विस्तार से लिखा है। महाभारत के शांतिपर्व में मोक्षपर्व में ऐसी ही एक और परम विदुषी महिला का उल्लेख है जिन्होनें राजा जनक के साथ सूक्ष्म देह के स्तर पर संवाद किया था।

सुलभा यह जानना चाहती थीं कि कि राजा जनक जीवन मुक्‍त हैं या नहीं। वह योगशक्तियों की जानकर तो थी ही, अपनी सूक्ष्‍म बुद्धिद्वारा राजा की बुद्धि में प्रविष्‍ट हो गयी। और फिर शास्त्रार्थ किया। राजा जनक के साथ उन्होंने संवाद किया एवं राजा जनक के समक्ष यह स्थापित किया कि मोक्ष क्या है एवं मोक्ष प्राप्त करने का अहंकार क्या है? वह कहती हैं कि हे राजन जिस प्रकार आत्मा को इससे मुक्त होना चाहिए कि यह वस्तु मेरी या नहीं, उसी प्रकार आत्मा को इससे भी मुक्त होना चाहिए कि तुम कौन हो और कहाँ से आई हो। आपके लिए इतना पर्याप्त होना चाहिए कि आपको प्रश्नों के उत्तर देने हैं।

चाणक्य भी अर्थशास्त्र में कई प्रकार की ऐसी स्त्रियों का उल्लेख हैं जो विभिन्न प्रकार के कार्य करती थीं। जैसे गुप्तचर, परिचारिका एवं यहाँ तक वस्त्र उद्योग में भी! तो फिर उनके पास शिक्षा कहाँ से आई? क्योंकि प्रथम विद्यालय तो 1848 में खुला था?

यह तो मात्र उन स्त्रियों के नाम हैं, जो वैदिक काल एवं महाभारत में वर्णित हैं। यदि इसके बाद भी देखा जाए तो तमाम स्त्रियाँ ऐसी थीं जिन्होनें अपनी उपलब्धियों से पूरे विश्व को चकित किया। धर्मपाल अपनी पुस्तक द ब्यूटीफुल ट्री में इस पूरे झूठ की पोल खोलते हैं।

धर्मपाल द्वारा लिखित द ब्यूटीफुल ट्री में भी ऐसी महिलाओं का उल्लेख है, जो सर्जरी किया करती थीं। और यह बात Dr Buchanan के अनुभव से कही गयी है। उसमें लिखा है कि

“Dr Buchanan heard of about 450 of them, but they seemed to be chiefly confined to the Hindoo divisions of the district, and they are held in very low estimation।There is also a class of persons who profess to treat sores, but they are totally illiterate and destitute of science, nor do they perform any operation।They deal chiefly in oils।The only practitioner in surgery was an old woman, who had become reputed for extracting the stone from the bladder, which she performed after the manner of the ancients”

अर्थात Dr Buchanan ने एक ऐसी बूढ़ी महिला को गॉल ब्लेडर की पथरी की सर्जरी करते हुए देखा जो प्राचीन चिकित्सा से सर्जरी कर रही थी और पथरियों को निकाल रही थीं!

प्रश्न यही उठता है कि यदि प्रथम स्कूल 1848 में खुला तो इन सभी स्त्रियों को शिक्षा कहाँ से प्राप्त हो रही थी?  कहाँ से स्त्रियाँ वैद्य बन रही थीं? इससे पहले हम जाएं तो पाएंगे कि मीराबाई के साथ साथ एक बड़ी समृद्ध धरोहर स्त्री रचनाकारों की रही है। अक्क महादेवी ने तो वस्त्र तक त्याग दिए थे और महादेव के भजनों की रचना की थी। यह भक्ति की पराकाष्ठा तो थी ही, परन्तु साथ ही उस समाज की भी महानता को बताती है जिसे हर क्षण निम्न बताया जाता है।

आइये सहजो बाई की रचनाओं को भी देखते हैं, जिसमें वह कभी कभी निर्गुण तो कभी सगुण उपासना करती हुई दिखाई देती हैं। 1848 से पहले की एक नहीं सैकड़ों विदुषियों से इतिहास भरा पड़ा है

सहजो बाई के भी राम हैं, मगर वह राम निर्गुण राम हैं। वह गुरु के बारे में लिखते हुए कहती हैं

धन छोटासुख महा, धिरग बड़ाईख्वार,

सहजो नन्हा हूजिये, गुरु के बचन सम्हार

भक्ति को सर्वोपरि बताते हुए सहजो लिखती हैं

प्रभुताई कूँ चहत है प्रभु को चहै न कोई,

अभिमानी घट नीच है, सहजो उंच न होय!

इसके साथ ही राम को कितनी ख़ूबसूरती से सहजो लिखती हैं:

चौरासी के दुःख कट, छप्पन नरक तिरास,

राम नाम ले सहजिया, जमपुर मिले न बॉस!

और

सदा रहें चित्त भंग ही हिरदे थिरता नाहिं

राम नाम के फल जिते, काम लहर बही जाहीं!

और जिस प्रकार कबीर गुरु की महत्ता स्थापित करते हुए यह लिख गए हैं

गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागू पायं,

बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताय!

उसी प्रकार सहजो लिखती हैं

सहजो कारज जगत के, गुरु बिन पूरे नाहिं

हरि तो गुरु बिन क्यों मिलें, समझ देख मन माहिं!

गुरु की महिमा पर सहजो का यह पद देखा जा सकता है:

सहजो यह मन सिलगता काम क्रोध की आग,

भली भई गुरु ने दिया, सील छिमा का बाग़!

सहजो बाई की गुरु बहन थी दया बाई, उन्होंने भी लिखा। तमाम स्त्रियाँ थीं जो लिख गईं, जो रच गईं, जिन्होनें विमर्श रच दिए और विमर्श के मैदान में यह कहा जा रहा है कि महिलाओं के लिए प्रथम स्कूल वर्ष 1848 में आरम्भ हुआ?

स्त्रियों की शिक्षा को लेकर कि विद्यालय की शिक्षा उन्हें मिले, ट्विटर यूजर trueindology ने ऐसी तमाम स्त्रियों की जानकारी दी है जिन्होनें स्त्रियों के लिए सावित्री बाई फुले से पहले विद्यालय खोले थे। ऐसी ही एक महिला थीं बंगाली हिन्दू विधवा होती, जिन्होनें बनारस में सभी महिलाओं के लिए विद्यालय खोला था। और यह सावित्री बाई फुले से पहले की बात है:

A Bengali Hindu widow named Hotee established a School in Varanasi for ALL women. She taught Poetry, Law, Mathematics and Ayurveda. She was awarded the title "Vidyalankar" by Kashi Pandits.

This was BEFORE Savitribai Phule was even born.

First Indian female teacher who? https://t.co/qswoI3Prdr pic.twitter.com/27qo8bmoqU

— True Indology (@TrueIndology) January 3, 2023

इसके साथ ही एक पक्ष यह भी है कि सावित्री बाई फुले अंग्रेजी भाषा को अपना उद्धारक मानती थीं और उन्होंने इसे लेकर कविता भी लिखी है।

(स्रोत- लल्लनटॉप)

और अंग्रेजी शिक्षा के विषय में सीएफ एंड्रयूज़ अपनी पुस्तक THE RENAISSANCE IN INDIA ITS MISSIONARY ASPECT में लिखते हैं कि डफ ने ईसाई धर्म को फ़ैलाने के लिए अंग्रेजी भाषा को जरूरी बताया था। इस पुस्तक के पृष्ठ संख्या ३३ पर लिखा है कि डफ का सिद्धांत था कि ईसाइयत केवल कुछ सिद्धांत ही नहीं है बल्कि हाडमांस में लिपटी हुई जीवंत स्प्रिट है। और भारत में ईसाई सिविलाइजेशन एवं ईसाई मत का विस्तार करना है। अंग्रेजी शिक्षा जो उस सिविलाइजेशन को बताती है वह केवल सेक्युलर चीज नहीं है बल्कि वह ईसाई रिलिजन में रची पगी है। अंग्रेजी भाषा, साहित्य, अंग्रेजी साहित्य एवं अर्थशास्त्र, अंग्रेजी दर्शन ईसाइयत की आवश्यक अवधारणा को समेटे हुए है क्योंकि वह जिस परिवेश में गढ़े गए हैं, वह ईसाई है।

इसके बाद वह लिखते हैं कि यह प्रमाणित हुआ कि जब हिन्दुओं को सेक्युलर विषय पढ़ाया जाता है तो उनके लिए ईसाई सिद्धांत लिए हुए होता है। पश्चिमी विज्ञान भी एक प्रकार का ईसाइयत का प्रचार ही है।

यह बात जब खुद सीएफ एंड्रूज़ अपनी पुस्तक में स्वीकार करते हैं कि अंग्रेजी भाषा दरअसल ईसाइयत में ही रची पगी है तो वह उद्धारक किसके लिए हो सकती है यह समझा जा सकता है?

यह कहना कि स्त्रियों के लिए प्रथम स्कूल वर्ष 1848 में खुला, उन तमाम स्त्रियों का अपमान है जिन्होनें अपनी शिक्षा एवं वीरता से आज तक स्त्रियों की चेतना को सम्हाल रखा है, एवं कहीं न कहीं स्त्रियाँ अपनी जड़ों से कट जाती हैं, क्योंकि उनके मस्तिष्क में यही बस जाता है कि उनका समृद्ध इतिहास तो वर्ष 1848 से आरम्भ हुआ है उससे पूर्व अंधकार युग था और उन पर उनके पुरुष अत्याचार किया करते थे!

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TAGGED: History, Ravish kumar, Savitri Bai Phule, sonali misra, Was Savitri Bai Phule the first teacher
Sonali Misra January 5, 2023
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Sonali Misra
Posted by Sonali Misra
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सोनाली मिश्रा स्वतंत्र अनुवादक एवं कहानीकार हैं। उनका एक कहानी संग्रह डेसडीमोना मरती नहीं काफी चर्चित रहा है। उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति कलाम पर लिखी गयी पुस्तक द पीपल्स प्रेसिडेंट का हिंदी अनुवाद किया है। साथ ही साथ वे कविताओं के अनुवाद पर भी काम कर रही हैं। सोनाली मिश्रा विभिन्न वेबसाइट्स एवं समाचार पत्रों के लिए स्त्री विषयक समस्याओं पर भी विभिन्न लेख लिखती हैं। आपने आगरा विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में परास्नातक किया है और इस समय इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से कविता के अनुवाद पर शोध कर रही हैं। सोनाली की कहानियाँ दैनिक जागरण, जनसत्ता, कथादेश, परिकथा, निकट आदि पत्रपत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं।
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