1995 में प्रदर्शित हुई एक फिल्म ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींच लिया। ध्यान खींचने का कारण था फिल्म का यूनिक कथानक। भविष्य की पृथ्वी जलमग्न हो चुकी है। मनुष्यों का एक समूह बरसों से इस आस में समुद्री यात्राएं कर रहा है कि कहीं तो जमीन का छोटा सा कतरा मिल जाए। ये लोग चलती नाव को ही घर बना लेते हैं। मुख्य नायक ‘मैरीनर’ ने बचपन से समुद्र में रहते हुए अनोखी शारीरिक विशेषताएं विकसित कर ली हैं। मछलियों की तरह उसके गलफड़े उग आए हैं। जिनकी मदद से वह पानी के भीतर साँस ले सकता है। उसकी आँखें गहरे पानी के भीतर कम रोशनी में भी साफ़-साफ़ देख लेती हैं। ‘मरिनर’ जैसी एक प्रजाति पृथ्वी पर वाकई में अस्तित्व रखती है। ये प्रजाति हज़ारों वर्ष से समुद्र को अपना घर बनाए हुए हैं। 500 वर्ष पूर्व इनके बारे में दुनिया को मालूम हुआ। इन्हें दुनिया ‘सामा बजाउ’ के नाम से जानती है।
समुद्र की उफनती लहरें सदियों से ‘सामा-बजाउ’ का घर है। मलेशिया के खतरनाक समुद्री इलाकों में उनके बच्चे शार्क मछलियों से खेलते हैं। ‘सुलावेसी’ जैसे खतरनाक समुद्री क्षेत्रों में ये दूर-दूर तक फैले हुए हैं। ये मनुष्यों की ऐसी आखिरी प्रजाति है जो बिना ऑक्सीजन पानी के भीतर पंद्रह मिनट तक साँस रोक लेते हैं। खारा समुद्री पानी पी लेते हैं।
पानी के भीतर वैसे ही देख सकते हैं, जैसे समुद्री जीवों की क्षमता होती है। पानी के भीतर तल पर दौड़ लगाकर मछली का शिकार करने वाली ये विश्व की इकलौती प्रजाति है। ‘सामा-बजाउ’ की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि उन्होंने कई शताब्दियों की समय यात्रा में अपना एक ख़ास अंग विकसित कर लिया। यहाँ हम ‘इवॉल्यूट’ शब्द का प्रयोग करेंगे तो बात सही समझ आएगी। उन लोगों ने ‘प्लीहा’ को इवॉल्यूट कर लिया।
प्लीहा’ यानि ‘तिल्ली’ पेट में स्थित अंग होता है। तिल्ली प्रतिरक्षा प्रणाली को पुष्ट करने और पुरानी लाल रक्त कोशिकाओं को नष्ट करने में सहायक अंग माना जाता है। अधिकांश समुद्री स्तनधारी जीवों के शरीर में बड़ी तिल्ली पाई जाती है। इसकी मदद से ही वे अधिक समय तक गहरे पानी में रह पाते हैं। सील इसका सबसे श्रेष्ठ उदाहरण है जो तट पर आराम करते पाए जाते हैं और गहरे पानी में देर तक तैर लेते हैं। ‘सामा-बजाउ’ की काबिलियत ठीक ऐसी ही है। विस्तृत चिकित्सीय शोध के बाद पता चला कि इस प्रजाति में पाई जाने वाली तिल्ली का आकार सामान्य मनुष्यों की तुलना में पचास प्रतिशत बड़ा है।
सामान्य तैराक पानी के कई फ़ीट नीचे जाकर तल पर ठीक से खड़ा भी नहीं रह सकता। 200 फ़ीट यानि दस मंजिलों जितनी गहराई में जाने के लिए ऑक्सीजन टैंक और विशेष सूट पहली आवश्यकता है। सामा-बजाउ इस गहराई में बिना किसी ऑक्सीजन टैंक के उतरते हैं और भाला मारकर शिकार करते हैं। शिकार लपकने के लिए उन्हें दौड़ना भी पड़ता है। सोचिये बिना ऑक्सीजन के पंद्रह मिनट तक न केवल पानी में रहना बल्कि शारीरिक श्रम करके शिकार करना कैसा असंभव कार्य है।
होमो सीपियन्स की ये दुर्लभ प्रजाति विलुप्ति की कगार पर है। विश्व में इनकी संख्या घटकर मात्र बीस लाख के आसपास रह गई है। ये लोग समुद्र में तैरती नावों को घर बनाकर रहते हैं। जमीन से दूर रहते हैं। जब उन्हें लकड़ियां लेना हो या अपने घर के किसी सदस्य का अंतिम संस्कार करना हो तो ही भूमि पर आते हैं। चार शताब्दियों तक वे एक समुद्री देवता ओम्बो दिलौत’ नामक देवता की पूजा करते थे। इस देवता का हुलिया हिन्दुओं के ‘वरुण देव’ से मेल खाता है। पिछली एक सदी में इंडोनेशिया के इस्लामिक कल्चर के प्रभाव में आकर ये इस्लाम ग्रहण कर रहे हैं लेकिन देवता पूजन की परम्परा निर्बाध चल रही है।
लेख की शुरुआत में मैंने एक काल्पनिक पात्र ‘मैरीनर’ के बारे में बताया था। इस पात्र की प्रेरणा उन्ही ‘सामा बजाउ’ से ली गई थी। पृथ्वी ने प्राचीन काल में अद्भुत मानव प्रजातियों को जन्माया था लेकिन उनमे से अधिकांश काल के गाल में समा गई। उनकी शारीरिक विशेषताएं, उनकी बस्ती बसाने के तरीके, उनके खान-पान, उनका विज्ञान उनके साथ ही विलुप्त हो गए। क्या यही सामा बजाउ’ के साथ होने जा रहा है।
Water Humans: Sama-Bajau running at the bottom of the sea without oxygen
Keywords: Sama-Bajau, Water Humans, History and origin, Homo sapiens, Samals and Sama People, सामा बजाउ,
जल मानव, इतिहास और उत्पत्ति, होमो सेपियंस, मनुष्य प्रजाति