पिछली 18 अप्रैल को सलमान खान को काला हिरण शिकार मामले में जोधपुर कोर्ट पेश होना था लेकिन कोरोना के कारण सुनवाई टल गई। इससे पहले 7 मार्च को उन्हें कोर्ट में पेश होना था लेकिन वे नहीं गए। इस मामले में कोर्ट ने सलमान को पांच साल की सज़ा सुनाई थी। इसके खिलाफ सलमान की ओर से की गई अपील पर अभी सुनवाई होनी बाकी है। सलमान इसके साथ आर्म्स एक्ट में भी कोर्ट प्रकरण का सामना कर रहे हैं। सलमान खान मुंबई के कुख्यात ‘हिट एंड रन’ केस में लंबी अदालती कार्रवाई का सामना कर चुके हैं। ये बात अक्सर कही जाती है कि सलमान की जगह कोई आम आदमी होता तो उसे जाने कब से सज़ा हो गई होती। लेकिन ये विशिष्ट आदमी सलमान खान है, जो कई साल से अपने रसूख और पैसों की ताकत से जेल जाने से बचता रहा है।
दो साल पहले 5 अप्रैल 2018 को जोधपुर कोर्ट ने सलमान को पांच साल कैद की सजा सुनाते हुए जेल भेज दिया। उन्हें बैरक नंबर एक में रखा गया। इधर सलमान जेल गए, उधर मीडिया का विलाप शुरू हो गया। मीडिया को चिंता थी कि सलमान के जेल जाने से फिल्म इंडस्ट्री को एक हज़ार करोड़ का नुकसान हो जाएगा। उनके सामाजिक कार्यों का क्या होगा। ये भी बताया गया कि ये सलमान का जेल में उन्नीसवां दिन है। कुछ साल पहले अठारह दिनों की जेल में ये एक दिन और जोड़कर बताया जा रहा था। जाहिर है कि मीडिया के लिए ये उन्नीस दिन बहुत बड़े और भारी थे। टीवी चैनलों ने अलग उत्पात मचा रखा था। उनकी ब्रेकिंग और दिन में तीन-तीन घंटे की न्यूज़ ने सलमान को किसी मसीहा की तरह पेश किया था।
सलमान खान और संजय दत्त जब जेल जाते हैं तो अमूमन हेडलाइंस कुछ इस तरह की होती है। ‘करवटे बदलते हुए कटी पहली रात’, बिस्तर और पंखे के अलावा उन्हें कोई सुविधा नहीं दी गई, माता-पिता का रो रोकर बुरा हाल है’, ‘बहन ये खबर सुनकर जोधपुर तक चली आई’। दो दिन बाद ही उन्हें ज़मानत दे दी गई। इसके बाद मीडिया का वही नाटक शुरू हो गया। सलमान के घर के फुटेज दिखाए गए। घर के सामने ‘जुटाई’ गई सैकड़ों की भीड़ भाईजान-भाईजान के नारें लगाकर उनकी वापसी का जश्न मनाती रही। इस बीच मीडिया ये भूल गया कि सलमान एक अपराधी हैं, जो जमानत पर बाहर चल रहे हैं। एक निरीह वन्य प्राणी की ह्त्या का दुःख मीडिया प्रकट नहीं करता।
भारत देश में ‘हीरो’ का अर्थ कदापि गलत ले लिया गया है। हमारे यहाँ एक फ़िल्मी एक्टर को ‘हीरो’ माना जाता है या फिक्सिंग के आरोपों से घिरे क्रिकेटरों को। यहाँ सोनम वांगचुक को कोई नहीं जानता लेकिन सोनम कपूर को सब जानते हैं। यहाँ देश के वैज्ञानिकों के बारे में कोई नहीं जानता लेकिन बॉलीवुड की पूरी जानकारी उन्हें रहती है। सामाजिक कार्य करने वाले, पर्यावरण रक्षक, सीमा पर लड़ने वाले सैनिकों को भारत में ‘नायक’ नहीं माना जाता। माना जाता तो उस रात सलमान की रिहाई पर देश का मीडिया ऐसा जश्न नहीं मनाता। सलमान जैसे अपराधियों को ‘हीरो’ किसने बनाया। निश्चित ही देश की मीडिया ने, जो उन्हें रॉबिनहुड की तरह पेश करता है।
वाइल्ड लाइफ एक्ट की धारा 149 के तहत काला हिरण का शिकार करने पर सात साल के अधिकतम कारावास की सजा का प्रावधान है। संभव है भविष्य में सलमान कोर्ट की सजा से बच न सके। कृष्ण मृग को राजस्थान में देव तुल्य माना जाता है और यही कारण है कि अब तक ग्रामीणों ने ये लड़ाई हारी नहीं है। वे एक रसुखदार अभिनेता से लड़ रहे हैं, जो बचने के लिए कानून को ढाल बनाए हुए हैं। वह इतना रसूख वाला है कि उसकी रिहाई के लिए पाकिस्तान से नवाज़ शरीफ का कॉल आता है। ये विडंबना ही है कि इस देश में मीडिया ने ऐसे लोगों को हीरो बना रखा है, जो लोगों को कुचल डालते हैं, मूक प्राणियों का शिकार मज़े के लिए करते हैं। लेकिन उनका कुछ नहीं बिगड़ता। ये अनैतिक बचाव इन जैसे कलाकारों का अहंकार और पुष्ट करता है। हमें सीखना होगा ‘नायक किसे कहते हैं’।
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