पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की लाख दमनकारी नीति चलाने के बावजूद माओवाद प्रभावित कई जिलों में भाजपा ने अपना परचम लहराया है। इस पंचायत चुनाव में माओवाद और टीएमसी के गढ़ माने जाने वाले कई जिले इस बार भाजपा के केंद्र में बदल गए हैं। इस चुनाव परिणाम को देखकर स्पष्ट होता है कि अगर ममता बनर्जी ने सभी क्षेत्रीय पार्टियों से भाजपा के खिलाफ एकजुट होने को कह रही थीं तो आखिर क्यों?
मुख्य बिंदु
*माओवाद प्रभावित पुरुलिया और झारग्राम जैसे जिलों में भाजपा ने एक तिहाई से भी ज्यााद सीटें जीतीं
*ममता बनर्जी सरकार के विश्वासघात का बदला आदिवासी वोटरों ने अपने वोट से लेना शुरू कर दिया है
पिछले एक-डेढ़ साल से ममता बनर्जी अगले आम चुनाव के मद्देनजर भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ लड़ने के लिए सभी क्षेत्रीय पार्टियों को एक मंच पर एकजुट करने का प्रयास करती रही हैं। इस दौरान उन्होंने कई बार कहा है कि भाजपा के खिलाफ लड़ने में जो सबसे मजबूत पार्टी हो उसका सभी क्षेत्रीय पार्टियों को सहयोग करना चाहिए तथा चुनाव के दौरान उसके उम्मीदवार का समर्थन करना चाहिए। पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव से यह स्पष्ट हो गया है कि वह ऐसा प्रयास क्यों कर रही थीं? वह इसलिए ऐसा कर रही थीं क्योंकि वह खुद समझ चुकी है कि भाजपा के खिलाफ अकेले चुनाव लड़ना अब उनकी वश की बात नहीं रह गई है। सीधे टक्कर में वे भाजपा से मात खा जाएंगी। क्योंकि अपने ही राज्य के कई जिलों में वह भाजपा से पिछड़ गई हैं। भाजपा ने अब खुद को पश्चिम बंगाल में मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में स्थापित कर लिया है।
इस पंचायत चुनाव के परिणाम से यह साफ हो गया है कि भाजपा ने पूर्व माओवाद के गढ़ कहे जाने वाले पुरुलिया और झारग्राम जैसे जिलों में न अपनी पहुंच बनाई है बल्कि अपनी स्थिति भी बेहतर कर ली है। इन दोनों जिलों में टीएमसी से पीछे रहने के बावजूद भाजपा ने एक तिहाई से भी अधिक सीटें जीती हैं। मालूम हो कि ये जिले आदिवासी बहुल हैं।
कोलकाता के रविंद्र भारती विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर तथा चुनाव विशेषज्ञ बिश्वनाथ चक्रवर्ती का कहना है कि आदिवासियों की एक खासियत है कि वे अपने साथ विश्वासघात करने वालों को कभी माफ नहीं करते हैं। पश्चिम बंगाल सरकार ने उनके लिए सस्ते राशन के तहत 5 किलो चावल देने की घोषणा की थी, जबकि उन्हें 2 किलो चावल ही मिलता था। आदिवासियों ने इसे अपने साथ विश्वासघात माना। दूसरी बात ये हुई कि ममता बनर्जी का विकास उन्हें कहीं नजर नहीं आया, जिसका वह हमेशा ढिंढोरा पीटती हैं । इसलिए उनलोगों ने अब भाजपा पर अपना भरोसा जताना शुरू कर दिया है।
तभी तो ममता बनर्जी ने स्वीकार किया है कि इस बार सारी ताकतें उनके खिलाफ लामबंद हो गई हैं। उन्होंने स्वीकार किया है जो माओवादी उनके समर्थक थे उन्होंने इस बार भाजपा के समर्थन में खड़े हो गए हैं। तभी तो पुरुलिया जिले के 1,944 पंचायत सीटों में से 644 तथा झारग्राम जिले के 806 सीटों में से 329 सीटों पर भाजपा को जीत मिली है। भाजपा के झारग्राम जिलाध्यक्ष सुकन्या सत्पती ने पार्टी के लिए इसे एक अच्छी शुरुआत कही है।
पश्चिम बंगाल के इस पंचायत चुनाव में एक खास ट्रेंड सामने आए हैं, जो आगे चलकर भाजपा के लिए ही बेहतर साबित हो सकता है। इस चुनाव में तीसरे स्थान पर स्वतंत्र उम्मीदर रहे हैं। तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बाद सबसे ज्यादा 1,946 सीटों पर स्वतंत्र उम्मीदवार जीते हैं। इनमें से अधिकांश वे हैं जो तृणमूल कांग्रेस से टूटकर बाहर आए हैं।
तृणमूल कांग्रेस के गुंड़ों का महिला वोटर पर अत्याचार!
पंचायत चुनाव में तृणमूल कांग्रेस का अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन न कर पाने के पीछे उनके गुंडों का बढ़ता अत्याचार भी रहा है। पश्निम बंगाल में लोकतंत्र की हत्या के साथ ही महिलाओं के खिलाफ अत्याचार भी चरम पर पहुंच गया है। इसी का जीता जागता उदाहरण है तृणमूल कांग्रेस के पार्टी कार्यालय के सामने एक महिला पर हुआ अत्याचार। इस महिला का जुर्म बस इतना था कि उसने तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवा को वोट न देकर भाजपा के उम्मीदवार को वोट दे दिया। इसी जुर्म पर तृणमूल कांग्रेस के गुंडों ने उन्हें कान पकड़ कर 300 बार उठक बैठक करवाया।
इस प्रकार की निंदनीय घटना मेदनीपुर जिला के जंगमहल ब्लॉक स्थित बागदुबी गांव की है। आरोप है कि जब कविता दास नाम की महिला अपना वोट डालने गई तो वहां तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं बूथ लूट रहे थे। उन्होंने बूथ लूटने का विरोध किया। इसी कारण कार्यर्ता बने तृणमूल के गुंडों ने न केवल उनसे कान पकड़कर उठक-बैठक करवाई बल्कि उनके गले में चप्पलों की माला पहनाई। वे लोग इतने पर ही नहीं रुके, इस महिला को पूरे गांव में घुमाया भी गया।
जिस राज्य की मुख्यमंत्री खुद एक महिला हो उसके राज में महिला पर इतना बड़ा अत्याचार होना उनकी प्रशासनिक क्षमता या फिर मंशा पर सवाल खड़ा कर देता है। वैसे भी पंचायत चुनाव में इतनी हिंसा पश्चिम बंगाल में ही देखी गई है। पंचायत चुनाव के दौरान दूसरी पार्टियों के 12 कार्यकर्ताओं की हत्या हुई है। इसके अलावा विपक्षी पार्टी के एक उम्मीदवार के महिला परिजन के साथ तो बलात्कार करने जैसी घटना को भी अंजाम दिया गया है। इन घटनाओं से साफ होता है कि इसके पीछे स्थानीय प्रशासन से लेकर राज्य प्रशासन तक की शह मिली हुई थी।
URL: West Bengal panchayat polls: Former Maoist strong hold now BJP hubs
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