जहां डर हो वहां लोकतंत्र नहीं हो सकता है! वहां की सरकार भी लोकतांत्रिक नहीं कही जा सकती है। पश्चिम बंगाल के लोगों में कितनी दहशत है इसका जीता जागता सबूत है ई-नामांकन को मंजूरी मिलना। लेकिन न तो मुख्यधारा का मीडिया न ही ‘सेक्युलर गैंग’ इस मसले को उठा रहा है। उसे देश में मोदी का भय दिख जाता है लेकिन ममता बनर्जी के बंगाल में व्याप्त भय नहीं दिखता है! कलकत्ता हाईकोर्ट के न्यायाधीश बी सोमाड्डर और ए मुखर्जी की एक खंडपीठ ने राज्य निर्वाचन आयोग को 23 अप्रैल को तीन बजे तक ईमेल के जरिये किए गए वैध आवेदन स्वीकार करने का आदेश दिया है।
मुख्य बिंदु
* कई सीटों पर तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवारों का निर्विरोध जीतना संशय पैदा करता है
* सेक्युलर गैंग और प्रबुद्ध लोगों की इस प्रकार की दहशत पर सधी चुप्पी हैरान करने वाली है
पश्चिम बंगाल की जमीन स्तर की रिपोर्टिंग करने गए कई पत्रकार वहां के दहशत के माहौल को देखकर हतप्रभ हैं। निष्पक्ष रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों का कहना है कि वहां पर लोग अधिकारियों के दफ्तर में जाकर नामांकन तक करने से डरते हैं। उम्मीदवार अपना नामांकन व्हाट्सएप के माध्यम से भेजने को मजबूर हैं। इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि पश्चिम बंगाल की स्थिति क्या है और सेक्युलर गैंग की सबसे चहेती मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार किस प्रकार से शासन चला रही है। सुशांत सिन्हा ने तो पश्चिम बंगाल के साथ देश के उन प्रबुद्ध वर्ग की खामोशी पर हैरानी जतायी है।
पश्चिम बंगाल का हाल देखकर हतप्रभ हूँ। खौफ़ के मारे लोग पंचायत चुनाव में वाट्सएप पर नामांकन भेज रहे हैं। सोचिए क्या स्तिथि होगी वहां कि देश के इतिहास में पहली बार कोर्ट ने ई नामांकन को भी मंजूरी दे दी है। और देश का प्रबुद्ध वर्ग खामोश बैठा है जैसे कोई बड़ी बात न हो इसमें।
— Sushant Sinha (@SushantBSinha) May 9, 2018
पश्चिम बंगाल में जिस प्रकार से पंचायत चुनाव हो रहा है उस पर भी एक बड़ा सवाल खड़ा होता है। लोकतंत्र का मतलब होता है चुनाव के माध्यम से संविधान प्रदत्त मताधिकार का प्रयोग करना। लेकिन जिस राज्य में प्रत्याशियों को नामांकन ही न करने दिया गया हो वहां कैसा लोकतंत्र और कैसा मताधिकार? यहां कई ऐसी पंचायत हैं जहां पंचायत समिति के पूरे सदस्य ही निर्विरोध चुनाव जीत गए हैं। सबसे बड़ा सवाल उठता है कि क्या ऐसा संभव हो सकता है? क्या 30-30 सदस्यों का निर्विरोध चुनाव जीतना संभव है? क्या यह लोकतंत्र की हत्या और राजनीतिक डकैती नहीं है?
पश्चिम बंगाल में बीरभूम जिला परिषद की 42 में से 41 तथा पंचायत समिति की 19 में से 14 सीटों पर टीएमसी उम्मीदवारों ने चुनाव से पहले यानी निर्विरोध जीत गए। इसी प्रकार मुर्शिदाबाद के किंडी में 30 में से 29 उम्मीदवार निर्विरोध घोषित हो चुके हैं। भारतपुर में तो टीएमसी ने सभी 22 सीटें अपने नाम कर ली है। भारतपुर ही क्यों बरवान में भी TMC ने सभी 37 पंचायत समिति सीटों पर चुनाव से पहले ही बाजी मार चुकी है। चुनाव नतीजे को देखकर यही लगता है कि यहां पर कोई समस्या ही नहीं होगी। क्योंकि अगर लोगों में इतना सामंज्य हो तो फिर समस्याएं होंगी क्यों? लेकिन इस सामंजस्य और चुनाव से पहले इन नतीजों की पोल वहां होने वाली हिंसात्मक घटनाएं खोलती हैं।
अगर पूरे प्रदेश में इतना ही सामंजस्य है तो फिर वहां हिंसा का कोई सवाल ही नहीं उठता है। लेकिन प्रदेश में हो रही हिंसा कुछ अलग ही कहानी कह रही है। उत्तरी 24 परगना जिले में विजय जुलूस के दौरान सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के ही दो गुटों की भिड़ंत में दो लोगों की हत्या हो चुकी है। आमलोगों की बात तो दूर पश्चिम बंगाल में पत्रकार भी सुरक्षित नहीं हैं। दक्षिण 24 परगना के जिला मुख्यालय अलीपुर में फोटो पत्रकार के साथ छीनाझपटी कर उसपर हमला किया। हिंसा की ये घटनाएं बताती हैं कि पंचायत चुनाव के मद्देनजर लोग कितने दहशत में हैं। वैसे बता दूं कि सरकार के पक्ष में रिपोर्ट करने वाले पत्रकारों के पौ बारह हैं। दिल्ली की लुटियन मीडिया भी सेक्यूलरिज्म के नाम पर ममता बनर्जी की सांप्रदायिक राजनीति को खुलकर प्रश्रय देने में जुटी है।
URL: West Bengal Panchayat polls: High Court allows filing of nominations through e-mail
Keywords: Panchayat polls, state election commission, West bengal, Calcutta High Court, calcutta high court order, online nominations, पश्चिम बंगाल, ममता बनर्जी, पंचायत चुनाव