१) द्रोण, युधिष्ठिर और दुर्योधन के युवराज के चयन के सवाल पर निष्पक्षता के आवरण में योग्यता पर मौन साध लेते हैं। लेकिन जब युद्ध हुआ तो आखिर में उन्हें एक पक्ष से युद्ध करना ही पड़ा। यदि आरंभ में ही निष्पक्षता का आवरण नहीं लेते तो उनके सिर अधर्म का पाप नहीं लगता, और उनके पुत्र को अनंत काल तक नहीं भटकना पड़ता।
निष्कर्ष: सत्य को आरंभ से ही पहचान कर उसका साथ देना चाहिए। निष्पक्षता सिर्फ समस्या को टालते रहने का एक बहना है। निष्पक्ष कुछ नहीं होता।
२) भीष्म युवराज चयन के सवाल पर गांधार कुमार शकुनि का पक्ष जानने पर जोर देते हैं, जिसका विदुर विरोध करते हैं।
निष्कर्ष: किसी तीसरे को अवसर देकर आप संकट का समाधान नहीं करते, वरन उसे और अधिक बढ़ा देते हैं।
३) एक हत्या के लिए चार दोषी, और चारों को युधिष्ठिर द्वारा अलग-अलग सजा दी जाती है।
निष्कर्ष: समानता एक मिथ्या अवधारणा है। अज्ञानी के अपराध से बड़ा ज्ञानी का अपराध है, क्योंकि वह जानते-बूझते हुए अपराध करता है।
दूसरा निष्कर्ष यह कि महाराज भरत के समय योग्यता का जो आधार निश्चित था, वह धृतराष्ट्र का काल आते आते जन्मगत हो गया, और वर्ण व्यवस्था भी जन्मगत होने की ओर अग्रसर हो चला था।
४) विदर्भ राज की बेटी रूक्मिणी अपने पिता-भाई की मर्जी के विरुद्ध श्रीकृष्ण को अपना वर चुनती है। स्वंयवर में उसके अधिकार को सीमित रखने के लिए पिता-भाई आदेश देते हैं, तब भी वह श्रीकृष्ण को पत्र लिखकर बुलाती है और अपने अधिकारों की रक्षा करती है।
निष्कर्ष: स्त्री को वर चुनने का जो अधिकार प्राचीन काल में था, वह आज नहीं है। स्त्री आज की अपेक्षा पहले अधिक सशक्त थी। प्रेम विवाह सर्वस्वीकृत था, जो आज के तथाकथित आधुनिक समाज में भी नहीं है।
दूसरा, विदर्भ की सभा से पुत्री के अधिकार को सीमित करने का प्रचलन हम इसमें देख सकते हैं।
५) महाभारत भारत का इतिहास है, न कि कोई कल्पनात्मक कहानी। उस समय के हस्तिनापुर सहित, मगध, चेदी, मथुरा, द्वारिका, गांधार, पांचाल आदि सभी राज्यों की तात्कालिक राजनीति इस इतिहास में अंकित है। वह प्र्रदेश आज भी भौगोलिक रूप से हैं, हां थोड़े नाम बदल गये हैं।
सभी राज्य एक दूसरे के विरुद्ध राजनीतिक चालें चलते हैं, और यही कारण है कि युद्ध में पूरा भारतवर्ष इसमें भाग लेता है। इसलिए महाभारत को भारतवंशी अपना इतिहास समझ कर अध्ययन करें।
६) मगध उस समय उत्तर भारत का सबसे मजबूत राज्य था और जरासंध मजबूत राजा। उसके कारण श्रीकृष्ण को मथुरा छोड़ना पड़ा था। उस मगध के सेनापति हिरण्यधनु का पुत्र था एकलव्य, जो बाद में जरासंध की सेना का सर्वाधिक विश्वासपात्र सैनिक बना। उसकी सेना में एकलव्य को प्रमुख स्थान प्राप्त था।
निष्कर्ष: तो फिर वामपंथियों का यह कहना कि भारत में शूद्रों को शिक्षा व हथियार उठाने का अधिकार नहीं था, यह सबसे बड़ा झूठ है। अन्यथा एकलव्य एक सैनिक नहीं होता।
धन्यवाद। #संदीपदेव