जबसे मैंने जायरोपैथी की शुरुआत की तब से लोग मुझसे यह पूछते आ रहें हैं कि क्या आपका सिस्टम साइन्टिफिकली प्रूवेन है? तब मेरे मन में so called साइन्स जानने की जिज्ञासा जागी। साइन्स की खोज मैंने बहुत जल्द कर ली। Nature is Science. प्रकृति ही विज्ञान है। वैज्ञानिक दुनिया में पाई जाने वाली प्रत्येक वस्तु प्रकृति में है। इसीलिये विज्ञान में खोज की जाती है और खोजा उसे ही जाता है जो पहले से मौजूद हो। अंग्रेज़ी में कहते हैं – Research & Development जिसका तात्पर्य है खोजें और विकास करें। इस परिभाषा के अनुसार ज़ायरोपैथी पूर्णरूपेण साइन्स है।
Scientifically proven में सबसे पहले यह समझने की आवश्यकता कि Scientifically proven से क्या अभिप्राय है। जहॉं तक मुझे समझ आया कि मॉडर्न मेडिसिन में Scientifically Proven का मतलब है कि पहले किसी भी ड्रग का प्रयोग चूहों, बंदरों, ख़रगोश व अन्य जानवरों पर किया जाय और उसके बाद मनुष्यों को दिया जाय। मॉडर्न मेडिसिन ड्रग्स का प्रयोग करती है जिसमें हानिकारक तत्व होते हैं अत: मनुष्यों को देने के पहले इस प्रकार के टेस्ट का प्रावधान रखा गया है। वहीं आयुर्वेद या ज़ायरोपैथी में जड़ी-बूटियों एवं पेड़-पौधों के तत्वों का प्रयोग किया जाता है जिनका ट्रायल हज़ारों वर्षों पूर्व कर आयुर्वेद शास्त्रों में उल्लेखित किया गया है। इसके अतिरिक्त इनमें ड्रग्स जैसी हानिकारक चीजें नहीं हैं अत: इस प्रकार के ट्रायल की आवश्यकता नहीं है। आयुर्वेदिक औषधियों का ट्रायल मॉडर्न मेडिसिन की तरह करना उचित नहीं होगा क्योंकि दोनों पद्धतियाँ अलग-अलग हैं। वास्तविकता तो यह है कि आयुर्वेद मॉडर्न मेडिसिन के मुक़ाबले कहीं अधिक साइन्टिफिक हैं। यह समझना ज़रूरी है कि हर चीज की कसौटी अलग होती है, इसलिये प्रत्येक स्वास्थ्य पद्धति को मॉडर्न मेडिसिन की कसौटी पर टेस्ट करना उचित नहीं होगा।
मैं पहले भी बता चुका हूँ कि प्रकृति ही विज्ञान है और यदि यह सही है तो मॉडर्न मेडिसिन क़तई साइन्टिफिक नहीं है क्योंकि इसमें प्रयोग की जाने वाली दवायें विभिन्न प्रकार के ड्रग्स से बनती हैं जो प्रकृति विरोधी है। दवायें किसी भी बीमारी के सिर्फ लक्षण कंट्रोल करती और साइड इफ़ेक्ट के रूप में इम्यूनिटी को कमजोर करने के साथ किसी दूसरे अंग को ख़राब करती हैं। इसके अतिरिक्त स्टेरॉयेड, इम्यूनोसप्रेसैन्ट, कीमोथेरैपी, रेडियेशन, सर्जरी सभी प्रकृति विरोधी तरीक़े हैं। इन सभी से बीमार को तात्कालिक राहत तो मिल सकती है पर बीमारी कभी नहीं समाप्त होती। यदि आँकलन किया जाय तो आप पायेंगे कि मॉडर्न मेडिसिन में इलाज करवाने वाले प्रत्येक व्यक्ति को मृत्यु तक में 7-8 बीमारियाँ हो जाती हैं।इस प्रकार के सिस्टम को जो शरीर में बीमारियाँ बढ़ाता हो उसे स्वास्थ्य सिस्टम कैसे कहा जा सकता है। इतिहास गवाह है कि जब भी हॉस्पिटल और डॉक्टरों ने स्ट्राइक किया और काम पर नहीं आये तो मृत्यु दर में कमी आई है। यही नहीं ऐसे सिस्टम को समाज ने यह अधिकार भी दे रखा है कि वे अन्य स्वास्थ्य प्रणालियों को सूडोसाइन्स कहें और उन्हें साइन्टिफिकली प्रूवेन ना होने की धमकियाँ देकर दबाने का काम करती रहे। धीरे-धीरे लोगों में जागरूकता फैल रही है और लोगों को समझ आ रहा है।
मानवजाति के लिये इससे दुर्भाग्यपूर्ण क्या हो सकता है कि रक्षक ही भक्षक बना हुआ है और अन्य सभी को धमकाये जा रहा है। कोरोना काल मॉडर्न साइन्स की कलई खोलकर इसे यथास्थान पहुँचा देगा। कोरोना में इस सिस्टम पूर्ण असफलता इसके विनाश का कारण बनेगी। प्रकृति की विडंबना तो देखिये कि मॉडर्न मेडिसिन को संक्रमण ने ही ऊँचाइयों के चरम पर पहुँचाया और आज संक्रमण ही उसका काल बनकर आया है। यही प्रकृति का न्याय है।
कमान्डर नरेश कुमार मिश्रा
फाउन्डर ज़ायरोपैथी
Good article.
Zayropathy is proveen supplements in life style disease
जायरोपेथी से डायबिटीज भी ठीक हो सकती है क्या… अगर होती हौ तो संपर्क नंबर दीजिये
हजारों साल पहले ही खोज लिया पर भारत माता की जुबानी सवाल को कोई नहीं सुनता है? जय मा भारती भारत माता की जय ?
आयुर्वेद पर patent करवा लेना चाहिए हमें
बहुत अच्छा लेख. ड्रग माफिया कैंसर और एड्स जैसी बीमारियों के उपचार में जो आगे आए उसे रोकते हैं जिससे उनका अपना मुनाफा ड्रग्स के ज़रिए बढ़ता रहे. यह बात बहुत समय से वेस्ट में भी कही जा रही है. प्रकृति के जितने करीब हो सके वही इलाज पूर्ण और साइड इफैक्ट रहित है.