अवधेश कुमार: अपने देश की दशा विचित्र है। राजनीतिक विरोध और देश विरोध में अंतर लगभग खत्म हो गया है। सेशल्स के राष्ट्रपति डैनी फॉरे इस समय भारत यात्रा पर हैं। उनकी यात्रा के काफी पहले से यह खबर उड़ा दी गई थी कि फोरे ने साफ कर दिया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 2015 के दौरे के समय असम्पशन आइलैंड पर भारत द्वारा नौसैनिक अड्डा पर हुई सहमति खत्म कर दी गई है। वे भारत जाएंगे तो उस विषय पर बात करेंगे ही नहीं।
अगर इस खबर में सच्चाई थी तो यह मोदी के लिए नहीं भारत के लिए धक्का था। हिन्द महासागर के विशाल क्षेत्र में भारत अपनी सामरिक उपस्थिति बढ़ाने की दिशा में जो कोशिशें कर रहा है। चीन समुद्र में अपनी सामरिक उपस्थिति काफी सशक्त कर चुका है और लगातार कर रहा है। भारत के पास भविष्य को ध्यान में रखते हुए उसके समानांतर रक्षा उपस्थिति बढ़ाना आवश्यक है। मोदी ने सत्ता संभालने के साथ इसकी कोशिशें आरंभ कर दीं। वे सेशेल्स की यात्रा पर गए ही इसीलिए कि उसे सामरिक साझेदार बनाकर वहां नौसैनिक अड्डा बनाया जा सके तो यह भारत की नीति थी। भविष्य की रक्षा को ध्यान में रखते हुए इस ओर कदम बढ़ाया गया था।
अगर सेशेल्स ने किसी कारण इससे इन्कार किया तो देश में इस पर चिंता व्यक्त की जानी चाहिए थी। किंतु एक वर्ग अंध मोदी विरोध में इतना आगे निकल गया है कि मोदी का ही उपहास उड़ाने लगे। सरकार की कूटनीतिक विफलता बताने लगे। यह नहीं सोचा गया कि इससे चीन की ताकत के सामने हम कमजोर होंगे जिससे हमारी रक्षा योजना खतरे में पड़ सकती है।
आज क्या हुआ? उसी राष्ट्रपति फोरे ने मोदी के साथ संयुक्त वक्तव्य में कहा कि हम नौसैनिक अड्डा बनाने पर सहमत हो गए हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हम एक-दूसरे के अधिकारों की मान्यता के आधार पर असम्पशन आइलैंड प्रॉजेक्ट पर मिलकर काम करने को सहमत हुए हैं। राष्ट्रपति फॉरे ने कहा कि असम्पशन आइलैंड प्रॉजेक्ट पर चर्चा हुई और हम एक-दूसरे के हितों का ध्यान रखते हुए साथ मिलकर काम करेंगे। भारत ने सेशल्स को समुद्री सुरक्षा क्षमता बढ़ाने के लिए करीब 650 करोड़ रुपया कर्ज देने की भी घोषणा की।
इन लोगों का अब क्या कहना है? मैं विचारों की असहमति और राजनीतिक विरोध का हमेशा सम्मान करता हूं, लेकिन यह तो शर्मनाक और निंदनीय व्यवहार है। यह समझना पड़ेगा कि मोदी के चीन ने मंगोलिया, सेशेल्स, म्यान्मार आदि देशों के दौरे को काफी गंभीरता से लिया और उसकी कूटनीति भी वहां सक्रिय हुई। आपको रोकने की वह पूरी कोशिश करेगा। नेपाल तक में वह अपनी आर्थिक ताकत की बल पर प्रवेश कर गया है। सेशेल्स पर भी उसका दबाव आया होगा, कुछ लालच भी दिया गया होगा। छोटे देश के लिए ऐसे दबावों और लालचों के सामने डिग जाना अस्वाभाविक नहीं है।
यह मामला तो भारतीय कूटनीति ने किसी तरह संभाल लिया। हो सकता है आगे और भी उल्टे समाचार सुनने को मिल सकते हैं, क्योंकि सरकार ने ऐसे कई समझौते हिन्द महासागर में सुरक्षा और शांति के नाम पर किए हैं। इसके लिए हमें तैयार रहना चाहिए। लेकिन इसके लिए मोदी का उपहास उड़ाना देश का उपहास उड़ाना होगा। जो धक्का होगा वह देश को होगा। मोदी आज प्रधानमंत्री हैं, कल नहीं रहेंगे, देश को तो रहना है, इसकी सुरक्षा योजन अगर सफल नहीं हुई तो खतरा किसे होगा हमें और हमारी पीढ़ियों को।
ऐसे लोगों से यही कहूंगा कि मोदी के प्रति अपना दुराग्रह, पूर्वाग्रह राजनीति तक सीमित रखिए, विदेश नीति, वैदेशिक रक्षा नीति, सामरिक संबंधों तक इसे मत खींचिए। देश के नागरिक होने के नाते कुछ शर्म और हया तो आपके अंदर होनी चाहिए।
साभार: Awadhesh Kumar के फेसबुक वाल से
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