वामपंथी इतिहासकारों ने भारत के भूतकाल से बहुत छल किया! भारत के गौरवशाली अतीत को अपने चाटुकारिता वाले शब्दों से भरे इतिहास के पीछे दबा दिया ताकि वो इतिहास जो आपकी नसों में खून का उबाल ले आये, आप हम तक पहुंचे ही नहीं! रग-रग में जोश भरने वाली एक ऐसी घटना, एक ऐसा युद्ध जिसको पढ़कर आप हम गौरव करेंगे कि जिस भारत की धरती में हमने जन्म लिया है उसने कैसे कैसे शूरमाओं को जन्म दिया है पढ़िए 12 सितम्बर यानी कल लड़ा गया सारागढ़ी युद्ध जिसमें 21 सरदारों ने मार गिराए थे 600 क्रूर अफगानी आक्रान्ता…
सारागढ़ी युद्ध विश्व इतिहास की एक प्रमुख घटना है और इसमें 21 सिक्ख सैनिक ने सारागढ़ी किला को बचाने के लिए पठानों से अंतिम सांस तक युद्ध किया। ये कोई मिथक नहीं है बल्कि असंभव सी दिखने वाली नितांत सत्य घटना है। आज हम इतिहास की इस सबसे महान जंग पर प्रकाश डालेंगे ताकि हमें एक बार फिर अपने ‘सिख’ वीरों के पराक्रम पर गर्व महसूस हो सके?
ये घटना सन 1897 की है। नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर स्टेट मेँ 12 हजार अफगान आक्रांताओं ने भीषण हमला कर दिया ।वे गुलिस्तान और लोखार्ट के किलोँ पर कब्जा करना चाहते थे।याद रहे इन किलो को महाराजा रणजीत सिंह ने बनवाया था। इन किलो के पास सारागढी में एक सुरक्षा चौकी थी। जंहा पर 36 वीं सिख रेजिमेंट के 21 जवान तैनात थे। यह जानकर हमें सुख की अनुभूति होना चाहिए कि ये सभी जवान माझा क्षेत्र के रहने वाले थे और सभी केशधारी सिख थे। 36 वीं सिख रेजिमेंट में केवल केशधारी सिखों की ही भर्ती की जाती थी। यह पूरा का पूरा बटालियन ही केशधारी सिखों का था। ग्रीक सपार्टा और परसियन की लड़ाई पर अब तक 300 जैसी फिल्म भी बनी है, लेकिन सारागढ़ी के बारे में आप नहीं जानते होंगे। हमारी पीढी को इसकी कोई जानकारी ही नहीं है क्योंकि हमारी पीढी को इस बात की जानकारी दी ही नहीं गयी। सोची समझी रणनीति के तहत इस महान युद्ध को इसलिए नहीं पढते दिया गया क्योकि ऐसी घटनायें स्वाभिमान को जगाती है और इस देश में स्वतंत्रता के बाद से बौद्धिक क्षेत्र में एक खास प्रकार का षडयंत्र प्रारंभ कर दिया गया, जिससे देश का स्वाभिमान खडा नहीं हो पाया और हम इस प्रकार के इतिहास से परिचित नहीं हो पायें!
सरागढ़ी’ पश्चिमोत्तर भाग में स्थित हिंदुकुश पर्वतमाला की समान श्रृंखला पर स्थित एक छोटा सा गाँव है, एक जंग में सिख सैनिकों के अतुल्य पराक्रम ने इस गाँव को दुनिया के नक़्शे में ‘महान भूमि’ के रूप में चिन्हित कर दिया। ब्रिटिश शासनकाल में 36 सिख रेजीमेंट जो की ‘वीरता का पर्याय’ मानी जाती थी,’सरगढ़ी’ चौकी पर तैनात थी। यह चौकी रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण गुलिस्तान और लाकहार्ट के किले के बीच में स्थित था। यह चौकी इन दोनों किलों के बीच एक कम्यूनिकेशन नेटवर्क का काम करती थी। ब्रिटिश इंटेलीजेंस स्थानीय कबीलायी विद्रोहियों की बगावत को भाँप न सके। सितम्बर 1897 में आफरीदी और अफगानों ने हाथ मिला लिया। अगस्त के अंतिम हफ्ते से 11 सितम्बर के बीच इन विद्रोहियों ने असंगठित रूप से किले पर दर्जनों हमले किये, परन्तु सिख वीरों ने उनके सारे आक्रमण विफल कर दिए। 12 सितम्बर की सुबह करीब 12 से 15 हजार पश्तूनों ने लाकहार्ट के किले को चारों और से घेर लिया। हमले की शुरुआत होते ही, सिग्नल इंचार्ज ‘गुरुमुख सिंह’ ने ले. क. जॉन होफ्टन को हेलोग्राफ पर यथास्थिती का ब्योरा दिया, परन्तु किले तक तुरंत सहायता पहुँचाना काफी मुश्किल था!
मदद की उम्मीद लगभग टूट चुकी थी, लांस नायक लाभ सिंह और भगवान सिंह ने गोली चलाना शुरू कर दिया। हजारों की संख्या में आये पश्तूनों की गोली का पहला शिकार बनें भगवान सिंह, जो की मुख्य द्वार पर दुश्मन को रोक रहे थे। उधर सिखों के हौंसले से पश्तूनों के कैम्प में हडकंप मचा था! उन्हें ऐसा लगा मानो कोई बड़ी सेना अभी भी किले के अन्दर है। उन्होंने किले पर कब्जा करने के लिए दिवार तोड़ने की दो असफल कोशिशें की। हवलदार इशर सिंह ने नेतृत्व संभालते हुए अपनी टोली के साथ “जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल” का नारा लगाया और दुश्मन पर झपट पड़े! हाथापाई मे 20 से अधिक पठानों को मौत के घात उतार दिया। गुरमुख सिंह ने अंग्रेज अधिकारी से कहा, “हम भले ही संख्या में कम हो रहे हैं, पर अब हमारे हाथों में 2-2 बंदूकें हैं हम आख़िरी साँस तक लड़ेंगे”! इतना कह कर वह भी जंग में कूद पड़े। पश्तूनों से लड़ते-लड़ते सुबह से रात हो गयी और अंततोगत्वा सभी 21 रणबाँकुरे शहीद हो गए। जीते जी उन्होंने उस विशाल फ़ौज के आगे आत्मसमर्पण नहीं किया !
12 सितम्बर 1897 को सिखलैंड की धरती पर हुआ यह युद्ध दुनिया की पांच महानतम लडाइयों में शामिल हो गया। एक तरफ 12 हजार अफगान थे तो दूसरी तरफ 21 सिख सरदार। यंहा बडी भीषण लडाई हुयी और 1400 अफगानी सिपाही उस युद्ध में मारे गये। अफगानियों को भारी नुकसान सहना पडा लेकिन वे किले को फतह नहीं कर पाये। अफगानियों की हार हुई। जब ये खबर यूरोप पंहुची तो पूरी दुनिया स्तब्ध रह गयी। ब्रिटेन की संसद मेँ सभी ने खड़े होकर इन 21 वीरों की बहादुरी को सलाम किया। इन सभी को मरणोपरांत इंडियन आर्डर ऑफ़ मेरिट दिया गया। जो आज के परमवीर चक्र के बराबर था।
पर अफ़सोस होता है कि जो बात हर भारतीय को पता होनी चाहिए, उसके बारे में कम लोग ही जानते है। ये लडाई यूरोप के स्कूलोँ मेँ पढाई जाती है पर हमारे यंहा लोग जानते तक नहीँ। इस महायुद्ध में वीरगति पाए उन सभी वीर बलिदानी योद्धाओं को बारम्बार नमन, वंदन और अभिनंदन!
साभार: http://www.sudarshannews.com/, मूल खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें
URL: When 21 Sikhs Faced Over 10,000 Afghans at Saragarhi
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