मैं देख रहा हूं कि ‘सरकारी हिंदू’ दंगों के समय सरकारों को बचाने के लिए हिंदुओं को कायर आदि कहना शुरू कर देते हैं। जबकि सच यह है कि कलकत्ता के डायरेक्ट एक्शन डे से लेकर आज तक के हर दंगे की शुरुआत मुस्लिम की ओर से होती रही है और प्रतिक्रिया में जब हिंदू खड़ा होता है तो मुसलमानो को जान बचाना मुश्किल हो जाता है!
फिर ‘मुस्लिमों’ की सहायता के लिए सरकारें मैदान में कूदती हैं, चाहे वो कोई भी सरकार हो। हिंदुओं का हाथ गांधी से लेकर दिल्ली दंगे तक सरकारों ने बांधे, और फिर दंगा आरंभ करने वाले मुस्लिम समुदाय की कानूनी सहायता भी की या कराई ताकि विदेशी मीडिया व सरकारें उन्हें मुस्लिम विरोधी न कहे, न लिखे!
2002 में गुजरात में सबसे अधिक गोली हिंदुओं के सीने पर चली, 2020 में दिल्ली दंगे में सबसे अधिक हिंदू तिहाड़ जेल में ठूंसे गये। हिंदुओं को सजा दिलाने में सरकार इतनी तत्पर है कि दिल्ली दंगे में सबसे पहली सजा एक हिंदू को हुई, वहीं दिलबर नेगी के हत्यारों का केस इतना कमजोर बनाया गया कि उन्हें जमानत मिल गई। शफूरा जरगर के जमानत का तो सरकार ने विरोध तक नहीं किया!
बंगाल में खुलकर जेहादियों को वहां की सरकार और पुलिस बल का सहयोग मिला। यही राजस्थान के करौली में हुआ, और यही कभी कश्मीर में भी हुआ था। हिंदुओं के हाथ-पैर सरकारें बांधती हैं, और मुसलमानों को वह शेल्टर उपलब्ध करती हैं।
दिल्ली के जिस जहांगीरपुरी में हनुमान जन्मोत्सव की शोभा यात्रा पर जिन मुस्लिमों ने पथराव किए वह सभी बंग्लादेशी घुसपैठिए हैं, और यह बात सभी सरकारें जानती हैं, लेकिन NRC को लागू करने की जगह केंद्र सरकार टालमटोल कर रही है। स्थानीय पुलिस घुसपैठियों के हर अवैध करोबार में हफ्ता लेकर सहयोग कर रही है।
मुसलमानों के लिए सड़क से सुप्रीम कोर्ट तक उनका सहयोगी नेटवर्क काम करता है, वहीं हिंदू अकेले लड़ता है। फिर भी ‘सरकारी हिंदू’ हिंदू समाज को कायर कहता है! इन ‘सरकारी हिंदुओं’ ने बंटवारे के बाद से यदि एक भी दंगे का अध्ययन किया होता तो उसे सच पता होता? हिंदू समाज का दुश्मन कोई और नहीं स्वयं हिंदू है!
अब यहीं देख लो कि कानून व्यवस्था ने जहांगीरपुरी में शोभायात्रा निकालने वाले हिंदुओं के एक पूरे परिवार को ही उठा लिया है! क्यों? क्योंकि ऊपर का आदेश था कि सभी पकड़े गये दंगाई मुसलमान के कारण विदेश में गलत मैसेज जाएगा। ओवैसी ने इस बात का शोर मचाया और सरकार ने ‘अपराधियों की गिरफ्तारी में संतुलन सिद्धांत’ का पालन करते हुए शोभायात्रा के आयोजक एक ही परिवार के सभी हिंदू पुरुषों को उठवा लिया। अब कोई ‘सरकारी हिंदू’ इन निर्दोषों के लिए आवाज नहीं उठा रहा, क्योंकि फिर इनको अपनी ही सरकार पर ऊंगली उठानी पड़ जाएगी! इसलिए हिंदू हित की यहां तिलांजलि दे दी गई ‘सरकारी हिंदुओं’ द्वारा।
उधर मुस्लिम दंगाईयों को बचाने के लिए उनका नेटवर्क कल से ही काम पर लग गया है। एनडीटीवी, HT, राजदीप सरदेसाई आदि रात-दिन दंगाइयों को मासूम बताने के लिए एजंडा चला रहे हैं। उधर सरकार उनके दबाव में समानता दिखाने के लिए हिंदुओं को भी उठाने में जुट गई है, ताकि ‘न्यूयार्क टाइम्स’ की हेडिंग सरकार को मुस्लिम विरोधी न लिख दे!
लेकिन ‘सरकारी हिंदुओं’ को तथ्य से क्या लेना, उन्हें तो अपनी-अपनी सरकारों की चापलूसी में अनर्गल प्रलाप करना है। यही तो होते हैं क्षुद्र स्वार्थ, जिनके लिए कभी कुछ हिंदुओं ने ही दुश्मनों के लिए किले के दरवाजे खोले थे! अरे इन क्षुद्र स्वार्थों को छोड़कर केवल ‘हिंदू’ होने के नाते सोचना कब आरंभ करोगे?