साहित्य अकादमी, मप्र का बहुत धन्यवाद। करीब एक साल पूर्व साहित्य अकादमी द्वारा मेरी पुस्तक ‘हमारे श्रीगुरुजी’ (संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर जी की जीवनी) का ‘अखिल भारतीय विष्णु प्रभाकर पुरस्कार’ (2017 के लिए) लिए चयन हुआ था। इसी महीने 18 तारीख को यह पुरस्कार प्रदान किया जाएगा।

प्रभात प्रकाशन ने संघ के अभी तक के सभी सरसंघचालकों पर जीवनी लिखवाने का एक बड़ा प्रोजेक्ट किया था, जिसमें मैं अकेला था जो संघ का स्वयंसेवक नहीं था। मुझे पहले हेडगेवार जी की जीवनी लिखने को मिली थी, परंतु BHU के पूर्व छात्र होने के नाते मेरी रुचि गुरुजी में अधिक थी। वह भी BHU के छात्र थे।दूसरा, गुरुजी के कालखंड में भारत विभाजन से लेकर भारत की स्वतंत्रता व कश्मीर समस्या जैसा बड़ा इतिहास घटित हो रहा था, जिसमें मुझे डुबकी लगानी थी।
इस पुस्तक को लिखने के लिए मैं काशी में काफी समय रहा और वहां के पुस्तकालय में उस समय के अखबारों को निकलवा कर पढ़ा और नोट्स तैयार किया मेरा मानना है कि सही इतिहास को जानने के लिए तत्कालीन समय के अखबारों की रिपोर्टिंग को ध्यान से पढ़ना चाहिए। वह आपको पूर्वग्रह मुक्त इतिहास का दर्शन कराते हैं।

मुझे खुशी है कि प्रभात प्रकाशन के ‘संघ प्रमुख श्रृंखला’ में सर्वाधिक बिक्री गुरुजी की जीवनी की ही हुई और अब साहित्य अकादमी का पुरस्कार पाने वाला भी उस श्रृंखला की यह पहली पुस्तक बन गई है। इसके लिए सबसे अधिक धन्यवाद के पात्र मेरे सभी पाठकों हैं, जिन्होंने इसे एक सफल पुस्तक बनाया।
इस पुस्तक ने भारत विभाजन के उस इतिहास को सामने रखने का कार्य किया, जिसे जानबूझकर टेक्स्टबुक से गायब किया गया है। मुझ पर ईश्वर की बड़ी कृपा है, जिसके कारण मेरी सारी पुस्तकें बिक्री, बेस्ट सेलर, पुरस्कार – अर्थात् किसी न किसी रूप में सफल रही हैं।
आठवीं कक्षा में पहली बार एक कहानीकार के रूप में मुझे मेरे स्कूल विद्याभवन, उदयपुर ने पुरस्कृत किया था और मेरी कहानी वहां की वार्षिक पत्रिका ‘पूर्वा’ में छपी थी। तब मुझे कहां पता था कि मैं भविष्य में एक लेखक के रूप में ही पहचाना जाऊंगा!
परमात्मा ने सबकुछ पहले से तय कर रखा है, बस आपको अपने अंदर छुपी कस्तूरी की उस गंध को पहचानना है, फिर राहें आसान हो जाती हैं। वंदे विष्णु 🙏