विजय सिंह ठकुराय।
पिछले दिनों एक सज्जन ने प्रश्न किया था कि आखिर भागीरथी के उदगम यानी गौमुख से इतना पानी निकलता कैसे हैं? कहाँ से आता है? कभी खत्म क्यों नहीं होता?
बचपन में गौमुख को देख कर ऐसे ही सवाल मेरे मन में भी आते थे। शायद बहुतों को इसका जवाब न भी पता हो।
तो बेसिकली गौमुख के ऊपर एक बर्फ का ग्लेशियर है, जिसका आकार लगभग 27 घन-किलोमीटर है। ग्लेशियर की बर्फ पिघलती है, और पिघल कर जल सबसे निचले और आखिरी मुहाने अर्थात गौमुख से भागीरथी के रूप में निकलता रहता है। नॉर्मली जितना ग्लेशियर पिघलता है, उतनी ही बर्फ ऊपर की ओर जम कर ग्लेशियर का आकार बैलेंस में बनाए रखती है। चिंता की बात यह है कि पिछले 90 साल में गंगोत्री ग्लेशियर का आकार पौने दो किलोमीटर छोटा हो चुका है। अर्थात बर्फ के पिघलने की मात्रा बर्फ के जमने की मात्रा से ज्यादा है। ऐसा ही चलता रहा तो 1500 सालों में भागीरथी पूरी तरह विलुप्त भी हो सकती है। बचाव में मनुष्यों को अपनी आदतों में क्या कंट्रोल करना है, यह तो आपको पता ही है। बार-बार क्या रिपीट करूँ।
बहरहाल, नदियां भूगर्भीय स्त्रोतों जैसे तालाब इत्यादि से भी निकल सकती हैं पर ज्यादातर नदियों का स्त्रोत पहाड़ ही होते हैं। पर हिमालय का हमारे जीवन में रोल नदियों को उपलब्ध कराने से भी कहीं अधिक है।
पृथ्वी के भूमध्य से हवा गर्म होकर ऊपर उठती है और कॉरिओलिस इफ़ेक्ट पर आधारित पैटर्न बनाती हुई उत्तरी अथवा दक्षिणी ध्रुवों की तरफ कूच करती है। वैसे तो इन हवाओं के कई अलग सेल्स अथवा पैकेट्स होते हैं। हमारे संदर्भ में – हवाओं के ये पैकेट्स बरसात करते हुए 20 से 35 डिग्री नार्थ अथवा साउथ तक पहुंचते हुए ठंडी होकर नीचे आने लगते हैं और वापस भूमध्य की ओर कूच करते हैं।
बेसिकली इस कारण भूमध्य रेखा से 20 डिग्री से परे के नार्थ अथवा साउथ के इलाको में बेहद कम अथवा नगण्य बारिश होती है। विश्व के लगभग सभी मरुस्थल भी इसी ज़ोन में पाए जाते हैं। मजे की बात यह है कि उत्तर भारत भी लगभग इसी जोन में आता है, तो फिर भारत में ठीक-ठाक बारिश क्यों होती है? उत्तर है – हिमालय
हिमालय इन हवाओं तथा सीजनल मानसून के रास्ते में अवरोध उत्पन्न कर बादलों को बरसने के लिए विवश तो करता ही है, साथ ही साथ साउथ-ईस्ट एशिया से आने वाली शुष्क हवाओं को भारत में प्रवेश करने से रोकता भी है।
अर्थात – हिमालय न होता, तो न ये नदियां होतीं, न बारिश होती और उत्तर भारत बेसिकली एक शीत मरूस्थल बन गया होता।
तो 50 करोड़ लोगों के जीवन को जो सरल और सुगम बनाता है, उस हिमालय के प्रति कृतज्ञता और आभार हमारे हृदय में सदैव होना चाहिए।
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