विपुल रेगे। होलिका दहन होते ही प्रेम पर्व भगोरिया विदा हो गया। रंग पर्व शुरु होने से पूर्व झाबुआ के भगोरिया मेलों के विदा लेने की प्रथा है। भगोरिया झाबुआ अंचल का दर्पण है। इस दर्पण में हम यहाँ की आदिवासी संस्कृति के रंग सहज ही देख सकते हैं। इसी दर्पण में हम अपने मन की निश्छलता भी देख सकते हैं। समझना मुश्किल है कि भगोरिया की फिलॉसफी क्या है। वन वासियों के भोलापन, सहजता और प्रेम की आंच से प्रज्जवलित चेहरों में ही कहीं झाबुआ का मूल दर्शन छुपा है। भगोरिया हाट में घूमते हुए आपका शहरी मन कब बौरा जाए, कहा नहीं जा सकता। जब आप भगोरिया से विदा लेते हैं तो मन वहीँ छोड़ आते हैं। आदिम मन को शहर में लेकर भी कैसे जाया जाए (झाबुआ से लाइव )
भगोरिया हाट कब और कैसे विश्वप्रसिद्ध हो गया, इसकी ठीक-ठीक जानकारी किसी के पास नहीं है। स्वतंत्रता पश्चात ये हाट आधुनिक जीवन और वन जीवन के एक दूसरे से मिलने का बिंदु बन गया। ये पर्व झाबुआ, अलीराजपुर, धार, खरगोन, बड़वानी जिलों में मनाया जाता है। इसके इतिहास में जाए तो पता चलता है कि भगोरिया दो भील राजाओं कासूमार और बालून ने अपनी राजधानी ‘भगोर’ में शुरु किया था और बाद में आसपास के क्षेत्रों में भी मनाया जाने लगा। हाट को लेकर कई मिथक प्रचलित है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन आदिवासी लड़का और लड़की भागकर विवाह कर लेते हैं।

हालांकि स्थानीय रुप से बहुत से लोग ऐसा नहीं मानते हैं। ये बात सही है कि भगोरिया में रिश्ते तय होते हैं लेकिन ये गन्धर्व विवाह की तरह नहीं होता। रिश्ते तय होने में दोनों के परिवार की सहमति भी होती है। मूलतः ये आदिवासी संस्कृति का सबसे बड़ा पर्व है। भगोरिया का वास्तविक आधार वनवासियों की फसलों का पकना है। इस समय तक उनकी फसलें पक चुकी होती है और ये समय उनके लिए उल्लास का होता है। बाहर शहरों में काम करने गए वनवासी इस समय अपने घरों को लौटते हैं और होली तक यही रहते हैं।

भगोरिया के मनाने का समय बड़ा ही अनूठा है। फाल्गुन मास में प्रकृति सुंदर श्रृंगार करती है। इस मौसम में झाबुआ क्षेत्र में पलाश और महुआ के वृक्ष फूलों से लद जाते हैं। वन वासियों की ये धरती लाल, पीले और केसरिया रंगों से ढँक जाती है। मानों प्रकृति भी भगोरिया पर इस ढंग से प्रसन्नता व्यक्त करती है। महुआ इन लोगों के जीवन का आधार है। महुआ झाबुआ के लोगों का आर्थिक आधार है। महुआ से वे शराब समेत कई उत्पाद बनाते हैं। स्थानीय परंपराओं की जानकारी हो तो हाट घूमने का आनंद और बढ़ जाता है। जैसे महिलाएं मेले में होली गोट का गीत गाती है। ताड़ी की खुमारी में स्त्री -पुरुष झूमते दिखाई देते हैं।

इनके मेलों के झूलों को देखना आनंददायी अनुभव होता है। जब आदिवासी लड़कियां सजधज कर मेलों में आती हैं, तो शहरों से आए लोग उनकी सुंदरता देख मोहित हो जाते हैं। इन आल्हादित कर देने वाले चेहरों में ही तो भगोरिया का दर्शन छुपा है। उनके मन की निश्चलता हवा की तरंगों के साथ बहती है, जो हमें सम्मोहित कर लेती है। उनके उल्लास से भरे मुखमंडल देख हमारी शहरी कपटता जैसे विदा होने लगती है। मन की कलुषता पलाश का स्वर्गीय सौंदर्य मन हर लेता है।

झाबुआ अपनी किसी भौतिक वस्तु के लिए प्रसिद्ध नहीं हुआ है। झाबुआ का निष्कपट सौंदर्य उसकी प्रकृति में निहित है, तो यहाँ के लोग उस सौंदर्य के प्रतीक हैं। शहर लौटते हुए मन के किसी कोने में एक महुआ खिल आया है। हम सबके मन में एक शहर बसता है। उस शहर के एक कोने में एक महुआ अवश्य खिलना चाहिए। जब ये होगा तो मन ‘आदिम’ बना रहेगा, मशीन बनने से बचा रहेगा।