अब जाकर मुनव्वर राना को देश में रह रहे सौ करोड़ जानवर दिखाई दिए हैं। इस देश से लगभग 22 अवार्ड ले लेने के बाद मुनव्वर को याद आया कि भारत में जानवर ज्यादा रहते हैं। देश ने उन्हें जो प्यार दिया, सम्मान दिया, खाने को रोटी दी, उसका उपकार उन्होंने सौ करोड़ लोगों को जानवर कहकर चुकाया है। सन 2014 के बाद रचनाकारों/कलाकारों के एक वर्ग को अचानक ही इस देश से समस्याएं होने लगी थी। वह ऐसी समस्या थी, जिससे ये सारे रचनाधर्मी पीड़ित थे। उनको एक राष्ट्रवादी सरकार के उदय से पीड़ा थी। जेएनयू , न्यूज़ चैनल, कुछ बड़े अख़बार, बॉलीवुड और लेखक-साहित्यकारों की एक ही साझा पीड़ा थी कि एक ऐसी पार्टी कैसे चुनकर आ गई, जो राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की बात करती है।
कोरोना के इस आपदा काल में कुछ बातें हमेशा याद रखी जाएगी। देश के एक समुदाय की अनुशासनहीनता और मुनव्वर राना जैसे शायरों की असंवेदनशीलता तो ज़रूर याद रखी जाएगी। जब देश सीमा पर आतंकवाद और अंदर एक महामारी से लड़ रहा हो तो राना जैसे शायर इस तरह की बातें करते हैं। क्या ऐसी बातें कहना, देशवासियों का मनोबल गिराने जैसा नहीं है? क्या इसलिए इस सरकार का किया-धरा सब गलत हो जाता है, क्योंकि ये सरकार उनकी नहीं है, जिनकी शान में आपने एक कविता लिख डाली थी। आपने सन 2015 में अपना साहित्य अकादमी अवार्ड एक लाख रूपये सहित लौटा दिया था। लौटाने का मंच भी एक लाइव शो को बनाया गया। उस समय आपने कहा था ‘ये रहा एक लाख रुपये का चेक। इस पर मैंने कोई नाम नहीं लिखा है। आप चाहें तो इसे कलबुर्गी को भिजवा दीजिए, या पनसारे को भिजवा दीजिए या अखलाक को भिजवा दीजिए या किसी ऐसे मरीज को भिजवा दीजिए, जो अस्पताल में इलाज न करवा पा रहा हो और हुकूमत के लोग उसे न देख पा रहे हों।’
मुनव्वर राना के इतिहास में जितना अधिक जाएंगे, उतना ही पता चलेगा कि वे भी उसी वामी-कामी गैंग के सदस्य हैं, जो अभिव्यक्ति के नाम पर पुरे भारत में गंद मचाए हुए हैं। कभी आपने सोनिया गाँधी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर पांच कविताएं लिख डाली थी। सोनिया गाँधी की स्तुति करती वे कविताएं जब वायरल हुई तो तिलमिलाकर राना ने कहा था ‘वे सोनिया गाँधी से कभी नहीं मिले और इस कविता के आधार पर उन्हें कांग्रेसी न कहा जाए। वैसे तो नागरिकता कानून के विरोध में भी वे काफी कुछ कह गए थे। उनकी बेटियों के विरुद्ध नागरिकता कानून का विरोध करने पर प्रकरण दर्ज हो गया था। उन्हें अपने आप से पूछना चाहिए कि कांग्रेस के विपक्ष में आने के बाद से वे शायर के बजाय एक वफादार पार्टी वर्कर की तरह क्यों पेश आ रहे हैं। अब उन्होंने देश के सौ करोड़ लोगों को जानवर कह दिया है। रईसी में रहने के शौक़ीन राना को ये तकलीफ है कि प्रजा अब उनकी नहीं रही। नागरिकों को प्रजा समझना हर उस कांग्रेसी समर्थक का स्वभाव है, जिसने सोनिया और इंदिरा के दरबार होने का आनंद उठाया है।
अब पता चल रहा है कि जिस ‘माँ की शायरी‘ ने उन्हें इतनी प्रसिद्धि, इतने पुरस्कार दिलवाए, वह शायरी भी चुराई हुई है। वह शायरी एक टीवी पत्रकार और कवि आलोक श्रीवास्तव ने सन 2001 में ग्वालियर के एक मंच से पहले ही पढ़ दी थी। स्वयं आलोक ने मुनव्वर को पत्र लिखकर अपनी नाराजगी जाहिर कर दी थी। किसी दूसरे कवि की रचना चुराना और उसके दम पर ख्याति लूट लेने में कौनसी ईमानदारी है मुनव्वर राना जी। इस खुलासे के बाद साहित्यिक जगत में राना की बहुत आलोचना की गई। आलोक श्रीवास्तव ने इस मौके पर गुलरेज इलाहाबादी का एक शेर ट्वीट किया ‘चलन नथिया पहनने का किसी बाज़ार में होगा, शराफ़त नाक छिदवाती है धागा डाल लेती है’।
मुनव्वर राना आपको स्पष्ट करना चाहिए कि देश के सौ करोड़ जानवरों में कवि आलोक श्रीवास्तव हैं या नहीं, जिनकी कविता को चुराकर आप ख्यातिनाम शायर बन बैठे। आपके सौ करोड़ जानवरों में वे संस्थाएं आती हैं या नहीं, जिन्होंने आपको ढेरों पुरस्कार दिए थे। मुनव्वर राना को स्पष्ट करना चाहिए कि सौ करोड़ जानवरों में आखिर कौन-कौन आता है? क्या वे मुरीद भी आते हैं, जिनकी तालियों ने आपको इस काबिल बना दिया कि आप इस देश को गाली दे सके। वैसे देश के सौ करोड़ जानवर अब सोच रहे हैं कि उन्होंने एक गलत इंसान को ख़ाक से उठाकर फ़लक तक पहुंचा दिया। आप इस फ़लक के काबिल नहीं हैं।