सारा कुमारी। जापान में राजनैतिक हत्या कोई नया phenomen नहीं है, बल्कि जापान के इतिहास में पहले भी ऐसी कई हत्याएं हो चुकी है। शिंजो आबे जापान के सर्वाधिक वषों तक शासन करने वाले, एक लोकप्रिय नेता रहे हैं। उनके जाने से किस देश को फायदा होगा, इसी बात का अंदाजा लगाया जाना चाहिए।
अमेरिका विश्व में अपना प्रभुत्व सदैव बनाएं रखना चाहता है, इसके लिए समय-समय पर दूसरे देशों में युद्ध भी छेडता रहता है, यह किसी से ढकी छुपी बात नहीं है, परन्तु मिडिल ईस्ट के कुछ देशों को छोड़ दें तो, अमेरिका को युद्ध में सदैव मुंह की खानी पड़ी है, वियतनाम हो या अफगानिस्तान और अभी हाल में युक्रेन युद्ध में अमेरिका हथियार सप्लाई करता जा रहा है, परन्तु रुबल का बढ़ता प्रभाव, रशिया से द्वीपक्षीय व्यापार करने वाले देशों की संख्या में लगातार बढत, और अमेरिका एवं यूरोप में बढ़ती मंहगाई, ने फिर से एक बार साबित कर दिया है, की अमेरिका के लिए युद्ध लड़ना एक घाटे का सौदा सिद्ध हुआ है।
इसी सब को देखते हुए, शिंजो आबे, अपने देश के लोगों को यहीं समझा रहे थे, कि भले ही हमने द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् आक्रमण करने वाली पालिसी छोड़ कर केवल डिफेंस करने वाली पालिसी अपना ली थी, परन्तु तब से अब तक कई वर्ष बीत चुके हैं, विश्व के dynamics, बहुत परिर्वतन आ चुका हैं, उस को मद्देनजर रखते हुए, अब हमें भी अमेरिका की छत्रछाया से बाहर निकल कर स्वयं की independent military policy को अपनाना चाहिए।
खबर ये भी है, की विश्व का एकलौता देश जिसे एक समय न्यूक्लियर अटैक छेलना पड़ा था, तब से जापान ने No nuclear policy अपना ली थी, परन्तु धीरे धीरे ये लोग nuclear waste एकत्रित कर रहे थे, ताकि भविष्य में आवश्यकता होने पर, बगैर किसी की मदद लिए, ये लोग न्यूक्लियर पावर बन सकें। शिंजो आबे की हत्या के पश्चात, देश में हुऐ संसदीय चुनावों में जापान के सत्तारूढ़ गठबंधन ने रविवार को देश के संसद के ऊपरी सदन में व्यापक बहुमत हासिल किया, जो देश के शांतिवादी संविधान में सुधार के लिए पूर्व प्रधान मंत्री शिंजो आबे की स्थायी महत्वाकांक्षा को पूरा करने में सक्षम होगा।
आबे ने 2020 में प्रधान मंत्री के रूप में अपने पद से इस्तीफा दे दिया – वर्तमान प्रधान मंत्री फुमियो किशिदा ने उस वक्त पदभार संभाला था – और दोनों ही नेता साझा लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी में एक प्रभावशाली व्यक्ति बने रहे। लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी और उसके गठबंधन सहयोगियों ने रविवार के चुनाव में 87 सीटों पर जीत हासिल की, जो कि सुपर बहुमत बनाने के लिए आवश्यक 70 को पार कर गया।
ऐसा लगता है कि आबे की हत्या से मतदाता मतदान में वृद्धि हुई है, जो कि प्राप्त जानकारी के अनुसार 2019 के 49% से ऊपर 52% से अधिक है। सर्वोच्च बहुमत गठबंधन को जापान के संविधान को बदलने की अनुमति देगा, अभी तक जापान का संविधान युद्ध के त्याग के लिए कहता है, और जो कि जापान के लिए एक सैन्य शक्ति बनने की क्षमता को रोकता है। किशिदा ने शनिवार को एक अभियान कार्यक्रम में कहा भी है, कि “मेरे पास पूर्व प्रधान मंत्री अबे के विचारों को संभालने की जिम्मेदारी है,”
जापान का मूल स्वभाव यदि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से देखें तो सदैव एक introvert के जैसा रहा है, जो ज्यादातर अपने लोगों और देश की समृद्धि तक सिमित था, परन्तु आबे का नजरिया जापान को, एक रूढ़िवादी जिसकी आजीवन राजनीतिक महत्वाकांक्षा जापान में “शांतिवादी” से प्रेरित था, उस संविधान को संशोधित करना था।
आबे ने मुखर हो कर अमेरिका से ताइवान की रक्षा पर अपनी “अस्पष्टता” को समाप्त करने का आह्वान किया, आबे ने कहा था, की अमेरिका की अस्पष्ट नितियां एशियाई रिजन में खतरे को पैदा करती है, जिसमें यहां के देशों में आपसी वैमनस्य बढ़ता ही रहेगा, परन्तु उसका कोई स्थाई समाधान नहीं हो पाएगा। अमेरिका जो कि पहले से ही पिछले 3 महिनों से युद्ध की मार जेल रहा है, और चाहे MSM में कितना ही इस बात की खबर फैलाई गई की अमेरिका जीत रहा है, परन्तु रशिया और अमेरिका की आर्थिक स्थितियों का तुलनात्मक अध्ययन करने से स्पष्ट हो जाता है कि वास्तविक स्थिति क्या है।
अमेरिका को जापान में आने वाले इन चुनावों का पता था, और आबे के जापान को सैन्य स्वातंत्र्य देश बनाने की पालिसी का भी पता था, चुनाव में अपने प्रिय नेता के आकस्मिक निधन पर सहानुभूति वोट तो मिलते ही है, यहीं अमेरिका की मंशा थी, की आबे की पार्टी विजयी रहें और उन्हीं की पालिसी को implement किया जाएं, जिससे चीन के बिल्कुल बगल में एक सैन्य ताकत उसको contain करने के लिए सदैव खड़ी रहें, और जो अभी रशिया- युक्रेन युद्ध में अमेरिका की नेगेटिव छवि बनी, और आर्थिक नुकसान हुआ, वो भी ना छेलना पड़े। यह अमेरिका का चीन को समिति रखने का एक क़दम हो सकता है।
वैसे अभी इस विषय पर और ख़ोज जारी है,और कुछ समय बाद और जानकारी प्राप्त होंगी, परन्तु शिंजो आबे की हत्या विश्व की दो महाशक्तियों के प्रभुत्व स्थापित करने की होड़ की परिणिति लगती है।