डॉ. वेदप्रताप वैदिक(लेखक,पत्रकार,विचारक)
स्व. प्रधानमंत्री पामुलपर्ती वेंकट नरसिंहरावजी का जन्मदिन 28 जून को है! इस अवसर पर एक नई किताब उन पर आई है! उसमें यह मुद्दा उठाया गया है कि बाबरी ढांचे को क्या खुद राव साहब ने गिरवाया था? क्या राव साहब और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मिलीभगत से बाबरी मस्जिद को ढहाया गया?
वह ढाचा 6 दिसंबर 1992 को गिरा था! उसी दिन ये आरोप राव-सरकार के प्रमुख मंत्री अर्जुनसिंह ने प्रधानमंत्री पर जड़ दिए थे। इन आरोपों को राव-विरोधी अन्य कांग्रेसियों ने भी जस का तस निगल लिया और आज भी उन्हें सही माना जाता है लेकिन आज मैं पहली बार ऐसे तथ्य उजागर कर रहा हूं, जो बाबरी का सच प्रकट करेंगे। 6 दिसंबर 1992 को रविवार था! उन दिनों मैं पीटीआई-भाषा का संपादक था। सुबह 8.30 बजे तैयार होकर घर से दफ्तर के लिए निकलने के पहले मैंने राव साहब को फोन किया। मैंने उन्हें बताया कि मेरे संवाददाता योगेश माथुर बाबरी ढांचे के सामने ही खड़े हैं और वे थोड़ी-थोड़ी देर में फोन पर मुझे खबर दे रहे हैं। राव साहब ने कहा, गृह सचिव माधव गोडबोले मुझे अवगत रख रहे हैं। लगभग 11 बजे योगेशजी का फोन आया कि ढांचे का एक गुंबद टूटने ही वाला है। कारसेवक उस पर चढ़ गए हैं। राव साहब ने जैसे ही मेरा फोन लिया, उन्होंने कहा कि ‘रेक्स’ (विशेष फोन) पर गोडबोले हैं। वे भी यही कह रहे हैं! राव साहब से रात 10 बजे तक कई बार बात हुई। बार-बार वे कह रहे थे कि बडा धोखा हुआ। उनकी आवाज में कंपन था। गला भरा जा रहा था। रात को उन्हें बोलने में असुविधा हो रही थी। अपनी लगभग 30 साल की दोस्ती में मैंने उन्हें इतना परेशान कभी नहीं देखा! दूसरे दिन सुबह उन्हें हल्का-हल्का बुखार था।
यदि उनकी मिलीभगत से मस्जिद गिरी होती तो वे इतने व्यथित क्यों होते? वास्तविकता तो यह है कि संघ और भाजपा से मेरा सीधा संपर्क था। विश्व हिंदू परिषद के अशोकजी सिंघल ने मेरे कहने पर ही कार-सेवा की अवधि तीन महिने आगे खिसकाई थी। उ.प्र. के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह और राज्यपाल सत्यनारायण रेड्डी ने मुझे आश्वस्त किया था कि ढांचे को छुआ नहीं जाएगा। बालासाहब देवरस, भाऊरावजी, रज्जू भय्या और सुदर्शनजी से मेरा सतत संपर्क बना हुआ था। अटलजी और आडवाणी से निरंतर बात चलती रहती थी। भाजपा के श्वेत-पत्र में इसका जिक्र है। अटलजी से 6 दिसंबर को भी बात हुई। 7 दिसंबर को भेंट भी हुईं। नरसिंहरावजी से दिन में दो या तीन बार लगभग रोज बात होती थी। इन सब नेताओं और साधु-संतों ने नरसिंहरावजी के दिल में यह बात बिठा दी थी कि वे एक चबूतरे पर सिर्फ सांकेतिक कार-सेवा करेंगे। ढांचे को नहीं छुएंगे। राव साहब ने उन पर विश्वास किया। शायद ज्यादातर साधु-संतों और नेताओं को भी पता नहीं होगा कि कुछ सिरफिरे कारसेवक क्या करनेवाले हैं? लेकिन अर्जुनसिंहजी को पूरा विश्वास था कि बाबरी मस्जिद राव साहब ने ही गिरवाई थी। अर्जुनसिंहजी ने रात 11 बजे खुद फोन करके मुझे यह कहा। मैं उस समय वित्त राज्यमंत्री रामेश्वर ठाकुर के घर भोजन कर रहा था। अर्जुनसिंह ने कहा कि वे राव साहब को और मुझे देख लेंगे। मैंने शिष्टतापूर्ण शब्दों में उन्हें इतना कड़ा जवाब दिया कि शायद जीवन में किसी ने उनको ऐसा नहीं कहा होगा। सारी घटना पर विस्तार से फिर कभी!
www.vpvaidik.com