हफ्ते भर के अंदर विजय माल्या और क्रिश्चल मिशेल का प्रत्यर्पण रातों रात नहीं हुआ। हजारों करोड़ रुपये के आर्थिक घोटालों में यह भारत के इतिहास में पहला और दुसरा प्रत्यर्पण है। यह विदेशों में भारत की जांच एजेंसी की अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि है। इस उपलब्धी के नायक हैं सीबीआई के ‘विशेष निदेशक राकेश अस्थाना”। सीबीआई में नंबर 2 के वही राकेश अस्थाना जिन्हें सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा के साथ सरकार ने दो माह पहले अवकास पर भेज दिया।
सीबीआई की इतिहास की यह पहली घटना है। जिसमें ब्यूरो के दोनो शीर्ष अधिकारियों ने एक दुसरे पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया और मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। दिलचस्प यह है कि आलोक वर्मा और अस्थाना दोनो का पूरा करियर बेदाग रहा है। लेकिन राकेश अस्थाना के पास माल्या और मिशेल के प्रत्यर्पण का केस आते ही भारतीय राजनीतिक गलियारे में वो हड़कंप मचा । जिसने सीबीआई की साख चौपट कर दी। ब्रिटेन की कोर्ट ने माल्या के प्रत्यर्पण मामले में सीबीआई के जिस जांच अधिकारी की काबिलियत को प्रत्यर्पण का मुख्य आधार बताया उसी राकेश अस्थाना को सीबीआई से बाहर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दुसरी बार याचिका दाखिल की गई। वो कौन हैं जिसके लिए सीबीआई से अस्थाना को बाहर किए जाने की साजिश रच कर देश की सबसे काबिल जांच एजेंसी की साख नष्ट करने का खेल खेला जा रहा है। सिर्फ इसलिए ताकि माल्या को बचाया जा सके। यह खेल अब भी जारी है क्योंकि माल्या का मामला ब्रिटेन की हाईकोर्ट जा सकता है। उससे पहले अस्थाना के खिलाफ दूसरा मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया।
भारत की सबसे काबिल जांच एजेंसी के पास पिछले पैंतीस सालों में सत्तर भगौड़ों को विदेश से लाने की चुनौती रही है जिसमें चार को भारत लाया जा सका। ब्रिटेन की युवती हना फोस्टर के बलात्कार और हत्या के मामले में ब्रिटेन में जाकर छुपा मनींदर पाल सिंह का प्रत्यर्पण इसलिए हो पाया क्योंकि हना ब्रिटेन की नागरिक थी यह मामला देश की साख से जुड़ा था। प्रत्यर्पण में भारत से ज्यादा ब्रिटेन की दिलचस्पी थी। इससे पहले भी ब्रिटेन से कभी किसी मामले में किसी अपराधी का प्रत्यर्पण नहीं हुआ। लगभग बीस साल बाद विजय माल्या का प्रत्यर्पण पहला मामला है जिसके लिए भारत सरकार और देश की सबसे काबिल जांच एजेंसी की की काबिलियत की तारीफ की जा रही है। माल्या का प्रत्यर्पण न हो सके इसके लिए विजय माल्या के वकील ने जो ब्रिटेन की अदालत में दलील दी वो जांच अधिकारी राकेश अस्थाना के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत है । जिसे ब्रिटेन की अदालत ने गंभीरता से नहीं लिया। जज एम्मा अर्बथनॉट ने कहा कि “जांच अधिकारी ने जो साक्ष्यों दस्तावेजों और गवाहों को पेश किया है वो प्रत्यर्पण का मजबूत आधार है। कमाल है भारतीय बैंकों मे इतनी अनियमीतता है। आपने उसका फायदा उठा कर खुद हीरे जवाहरात से लद गए और दलील जांच अधिकारी पर आरोप लगा कर दिया जा रहा है। हमें इससे कोई लेना देना नहीं कि उन पर व्यक्तिगत आरोप क्या है “!
कल्पना कीजिए अस्थाना के खिलाफ यह दलील क्यों तैयार किया गया। जिस जांच अधिकारी के खिलाफ तीस वर्ष के कार्यकाल में कोई आरोप नहीं था उसके खिलाफ उस स्तर का आरोप कैसे लगाया गया जो सीबीआई के उच्च स्तर के अधिकारी के खिलाफ कभी नहीं लगा। सीबीआई ने अपने ही नंबर दो के अधिकारी अस्थाना के खिलाफ रिश्तखोरी के मामले में एफआईआर तब दर्ज कर दिया जब माल्या के प्रत्यर्पण मामले में बचाव पक्ष की दलील शुरु होने वाली थी। अस्थाना पर मीट व्यापारी मोईन कुरैसी मामले में रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया कि उन्होने कुरैसी के सहयोगी सतीश सना से दो करोड़ की रिश्वत ली। यह आरोप अस्थाना पर सीबीआई के निदेशक ने लगाया। जिनका अस्थाना के सीबीआई में आने के साथ ही टकराव चल रहा था। दिलचस्प यह कि यही आरोप अस्थाना ने वर्मा पर लगाया जिसकी शिकायत सीवीसी से की गई थी। दोनो अधिकारियों का विवाद इस स्तर तक गया कि सरकार ने दोनो को छुट्टी पर भेज दिया। वर्मा ने इसकी शिकायत सुप्रीम कोर्ट में की जिस पर सुनवाई चल रही है।
लेकिन मामला इतना आसान नहीं जितना दिख रहा है। परेशानी तभी बढ़ी जब गुजरात कैडर के अधिकारी अस्थाना की नियुक्ति पिछले साल किए जाने के साथ ही उन्होने माल्या के प्रत्यर्पण मामले में दिलचस्पी ली। तब यह मामला बिल्कुल गोपनीय था। लेकिन यह पहली बार हुआ कि सीबीआई के किसी इस स्तर के अधिकारी कि नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी गई। आरोप था कि अस्थाना जब सुरत पुलिस में कमीश्नर थे तो एक निजी कंपनी को लाभ पहुंचाया था। लिहाजा किसी ऐसे दागदार अधिकारी को सीबीआई में इतने उंच्च पद पर नियुक्ति नहीं होनी चाहिए। 28 नवंबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया था। प्रशांत भूषण की अर्जी को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अस्थाना सीबीआई के विशेष निदेशक बने रहेंगे। भूषण ने यह याचिका गैर सरकारी संगठन कॉमन कॉज की तरफ से दाखिल की थी। याचिका पर सुनवाई न्यायमूर्ति आरके अग्रवाल और एएम सप्रे की पीठ ने की थी। राकेश अस्थाना को दागदार साबित करने में मिली असफलता ने उन सब को परेशान कर दिया जो माल्या के प्रत्यर्पण से बेहद डरे हुए थे। चुकी ब्रिटेन की कोर्ट से प्रत्यर्पण होने बेहद मुश्किल भरा रहा है लेकिन माल्या का प्रत्यर्पण भारत सरकार के लिए चुनौती थी। चुनौती इसलिए क्योंकि कांग्रेस के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप से बेचैन जिस जनमानस ने मोदी को अपना प्रधानमंत्री चुना था उस पर वही कांग्रेस विजय माल्या और नीरव मोदी को भगाने का आरोप लगा रही थी। राजनीति परशेप्सन का मामला है मोदी सरकार इसे गंभीरता से लेते हुए हर हाल में माल्या का प्रत्यर्पण चाहती थी। इस लिहाज ने सीबीआई और सेबी ने पूरा जोड़ लगा दिया था। राकेश अस्थाना मामले की अगुआई कर रहे थे। लिहाजा माल्या के भारत आने से जो राज खुलना था उसके राजदार बेहद घबराए हुए।
सुपीम कोर्ट में अस्थाना के खिलाफ याचिका खारिज होने से उनकी परेशानी बढ़ गई थी। हर हाल में अस्थाना को बाहर किए जाने में मिली असफलता के बाद उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराया गया ताकि ब्रिटेन की अदालत में इस मामले को दलील के रुप में पेश कर माल्या का प्रत्यर्पण रोका जा सके ! ब्रिटेन की अदालत में माल्या के वकील की दलील तो कम से कम इसके साक्ष्य पेश करते ही हैं।
इस पूरे प्रकरण से लगता है कि माल्या को बचाने उसे भारत लाने की राह में रोड़ा डालने के लिए तो कहीं आलोक वर्मा का इस्तेमान नहीं किया जा रहा। माल्या को बचाने के लिए सीबीआई की साख तो कहीं खराब नहीं किया गया। यह संदेह इसलिए भी गहराता है क्योंकि पिछले साल अस्थाना को सीबीआई से बाहर करने के लिए दाखिल याचिका खारिज किए जाने के बाद उसी कॉमन कॉउज नामक संस्था ने सुप्रीम कोर्ट में दुबारा याचिका दाखिल कर आलोक वर्मा विवाद में दाखिल एफआईआर के आधार पर अस्थाना को हर हाल में सीबीआई से बाहर करने की मांग की है। क्या इसलिए क्योंकि अस्थाना की काबिलियत विदेशों से देश के अपराधियों के प्रत्यर्पण का है मिशेल का तो प्रत्यर्पण हो गया माल्या के प्रत्यर्पण का मामला हाईकोर्ट जा सकता है जहां वर्तमान में दुबारा से अस्थाना के खिलाफ दाखिल याचिका को आधार बना कर माल्या के प्रत्यर्पण के राह में बाधा ड़ाला जा सके।
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