विपुल रेगे। दक्षिण भारतीय शैली का निर्देशन बॉलीवुड के साथ मिलकर जादू क्यों नहीं जगा पाता, ये एक यक्ष प्रश्न है। पिछले दिनों जगन्नाथ पुरी ने करण जौहर के साथ मिलकर ‘लाइगर’ बनाई थी, जो बुरी तरह पिट गई थी। क्या बॉलीवुड के निर्माताओं के साथ दक्षिण के निर्देशक अपनी सहज स्वाभाविक शैली खो बैठते हैं ? शुक्रवार को ‘विक्रम वेधा’ प्रदर्शित हुई।
विक्रम वेधा को उसी निर्देशक जोड़ी ने बनाया है, जिन्होंने मूल तमिल फिल्म बनाई थी। उनके लिए अधिक समस्या नहीं थी, क्योंकि फिल्म को केवल तमिल से हिन्दी भाषा में ‘कॉपी’ करना था। जब हम इस हिन्दी कॉपी को देखते हैं तो तमिल भाषा वाली फिल्म भूली नहीं जाती, बल्कि उसकी याद और बढ़ जाती है। फिल्म में इतनी आग होनी चाहिए थी कि मूल फिल्म को दर्शकों को भूल जाना चाहिए था।
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निर्देशक जोड़ी पुष्कर-गायत्री की फिल्म ‘विक्रम वेधा’ को उम्मीद से कम ओपनिंग मिली है। पहले दिन फिल्म ने लगभग 12 करोड़ का कलेक्शन किया है। ऋत्विक रोशन की तगड़ी फैन फॉलोइंग देखते हुए ये ओपनिंग निराशाजनक है। यहाँ बॉयकॉट बॉलीवुड का फैक्टर काम करता नहीं दिख रहा है बल्कि फिल्म के निर्देशन ने दर्शकों को निराश कर दिया है। इस मैच के मुजरिम कौन है, ये देखना ज़रुरी है।
मूल तमिल फिल्म का निर्देशन भी पुष्कर-गायत्री ने किया था। बहुत से दर्शकों का मानना है कि स्क्रिप्ट के बॉलीवुडकरण ने फिल्म का नाश कर दिया। पहले तो कलाकारों का रिप्लेसमेंट ही कायदे का नहीं था। आर.माधवन वाली भूमिका सैफ अली खान को दे दी गई। सैफ माधवन द्वारा खींची हुई लकीर को पार नहीं कर पाए। सैफ से यहाँ कुछ अलग करने की उम्मीद थी।
सैफ अली खान अच्छी रेंज वाले अभिनेता हैं लेकिन इस किरदार में वे सहज नहीं दिखाई दिए। यही बात ऋत्विक के किरदार के लिए भी कही जा सकती है। मूल फिल्म में ये किरदार विजय सेथुपति ने निभाया था। विजय सेथुपति को उस किरदार में इसलिए लिया गया क्योंकि उनका व्यक्तित्व वेधा के चरित्र के लिए परफेक्ट था किन्तु ऋत्विक के साथ ऐसा नहीं है।
इस किरदार के लिए उनका चयन नहीं होना चाहिए था। यूँ तो अग्निपथ में उन्होंने एक डॉन का किरदार निभाया था लेकिन वेधा एक अलग ही कैरेक्टर था। वेधा के चरित्र में कई बारीक शेड्स हैं, जो ऋत्विक समझ नहीं सके। ऋत्विक ने बढ़िया अभिनय दिखाया है लेकिन इसके बावजूद दर्शक फिल्म में एंगेज नहीं हो पाता। फिल्म की अधिक लम्बाई इसकी दुश्मन बन गई। क्लाइमैक्स लगभग आधे घंटे तक खींच दिया गया है।
अब सवाल ये उठता है कि तमिल फिल्म की हूबहू कॉपी हिन्दी बेल्ट में असरदार क्यों नहीं रही तो इसका जवाब फिल्म के निर्माता हैं। फिल्म में भारतीय पृष्ठभूमि निहायत ही नकली दिखाई देती है। उत्तरप्रदेश का सेट अबुधाबी में लगाकर शूटिंग की जाएगी तो ऐसा ही परिणाम हाथ लगेगा। उत्तरप्रदेश का उच्चारण ऋत्विक की जुबान पर बिलकुल नहीं जंचता। वे कहीं से भी उत्तरप्रदेश के डॉन नहीं लगते।
एक तमिल फिल्म का ऐसा बॉलीवुडकरण किया गया कि उसका जादू, उसका करिश्मा गुम हो गया। विक्रम वेधा को इतनी बोझिल बनाने के जितने अपराधी निर्देशक हैं, उतने ही निर्माता भूषण कुमार भी हैं, जिन्होंने एक संतुलित सुंदर फिल्म को भंगार बनाकर रख दिया है।