राफेल विमान सौदे की जांच के लिए दायर याचिकाओं पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। हालांकि सुनवाई के तहत चार घंटे हुई बहस के बाद मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसफ की तीन सदस्यीय पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, लेकिन इस बहस के बाद कई चकित करने वाले तथ्य सामने आए हैं। सबसे चौंकाने वाला तथ्य यह है कि सुखोई 30 के बाद 1985 से भारतीय वायुसेना में कोई नया जेट शामिल नहीं किया गया है। कहने का मतलब है कि पिछले 33 सालों से भारतीय वायुसेना सबसे कठिन चुनौती का सामना करती आ रही है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि पिछली सरकारें अपना कर्तव्य निभाने में विफल रही हैं।
मुख्य बिंदु
* कांग्रेस सरकारों की विफलता के कारण 33 सालों से भारतीय वायुसेना कठिन चुनौतियों का सामना कर रही है
* अब जब वर्तमान मोदी सरकार ने वायुसेना की चुनौतियों को खत्म करने के लिए राफेल सौदा किया तो उसे विवादास्पद बनाया जा रहा है
Most shocking fact that has come out of today's hearing on #Rafaledeal in the SC is that after SU30s no new jets have been inducted into the Air Force since 1985. For the past 33 years the @IAF_MCC has been facing toughest challenge because successive Govts failed in their duty
— Akhilesh Sharma (@akhileshsharma1) November 14, 2018
ये खुलासा तब सामने आया जब राफेल डील की हुई सुनवाई के दौरान देश के मुख्य न्यायधीश ने भारतीय वायु सेना केअधिकारियों को कोर्ट में बुलाकर राफेल की जरूरत के बारे में पूछा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एयर मार्शल वीआर चौधरी, वायु सेना के डिप्टी चीफ एयर मार्शल खोसला तथा दो अन्य एयर मार्शल इस सुनवाई में शामिल होने कोर्ट पहुंचे। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश ने भारतीय वायु सेना अधिकार जे चलपति से भारतीय वायु सेना में विमानों के शामिल होने तथा वर्तमान जरूरत के बारे में पूछा। उन्होंने पूछा कि भारतीय वायु सेना के बेड़े में मिराज को कब शामिल किया गया? चलपति ने कहा 1985 में। उनके इस जवाब के बाद सीजेआई ने पूछा कि 1985 से लेकर अभी तक कोई विमान शामिल नहीं किया गया? इसके बाद उन्होंने कहा कि यही सब मैं जानना चाहता था।
#Rafale hearing: #CJI asks IAF officer J Chalapati about induction of the aircrafts and the present need of the force.#CJI: When did Mirage aircraft come in?
Chalapati: 1985#CJI: Between 1985 and tofay, zero aircraft..that's all we wanted to know. https://t.co/GkPUXTij2J
— Utkarsh Anand (@utkarsh_aanand) November 14, 2018
सीजेआई तथा एयर फोर्स के अधिकारियों के बीच हुई पूछताछ के बाद जब सरकार की तरफ से केके वेणुगोपाल ने अपना पक्ष रखते हुए बताया कि एयर फोर्स को तत्काल बेहतर जेट विमान की आवश्यकता है। उनके बयान पूरे होने से पहले ही सीजेआई ने कोर्ट में मौजूद सभी एयरफोर्स अधिकारियों को कोर्ट रूप छोड़ने को कहा। सीजेआई ने कहा कि आप सभी जा सकते हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि एयर मार्शल तथा वाइस एयर मार्शल वापस जा सकते हैं, क्योंकि कोर्ट रूम एक अलग प्रकार के युद्ध का खेल होता है, इसलिए अब आप अपने वार रूम में वापस जा सकते हैं।
As Govt concludes its arguments citing imminent need to better aircrafts by the Air Force, #CJI says #IAF officials may leave now.
"The Air Marshal and Vice-Marshals can go back. It is a different war game here in court. You may go back to your own war rooms." https://t.co/sv0ot9cHTL
— Utkarsh Anand (@utkarsh_aanand) November 14, 2018
कोर्ट रूम में जिस प्रकार सीजेआई ने एयर फोर्स के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बर्ताव किया है वह कई लोगों को रास नहीं आया। कई लोगों ने सीजेआई द्वारा एयर मार्शल तथा वाइस एयर मार्शल के लिए उपयोग की गई भाषा को मर्यादा के खिलाफ बताया है। तभी गौरव प्रधान ने अपने एक ट्वीट में लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट के प्रति लोगों का आदर दिन-ब-दिन घटता जा रहा है।
Another low hit by CJI, Judiciary is losing respect day by day. God Bless India
What kind of language CJI used against The Air Marshal and Vice Marshal? pic.twitter.com/0XgBYjuG8c
— #GauravPradhan ?? (@DrGPradhan) November 14, 2018
राफेल सौदे पर सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई से कई चकित करने वाले तथ्य ही सामने नहीं आए हैं बल्कि बगैर औपचारिक नोटिस जारी किए यह तीसरी सुनवाई है। इससे पहले दो बार ऐसा हो चुका है। बगैर औपचारिक नोटिस जारी किए पहली सुनवाई जस्टिस लोया के केस में हुई थी, जिसे बाद में निरस्त कर दिया गया। और दूसरी सुनवाई छत्तीसगढ़ वीवीआईपी हेलिकॉप्टर घोटाला को लेकर वहां के मुख्यमंत्री रमन सिंह के परिवार के खिलाफ दायार जनहित याचिका के तहत हुई थी। बाद में इस मामले को भी निरस्त कर दिया गया।
#Rafale was heard at length by the #SupremeCourt today without issuance of a formal notice. The recent two times when it did this:
1) #JudgeLoya case – – Finally dismissed
2) #Chhatisgarh VVIP chopper scam #PIL against Raman Singh – – Finally dismissed
— Utkarsh Anand (@utkarsh_aanand) November 14, 2018
राफेल डील को लेकर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसफ की तीन सदस्यीय पीठ ने विभिन्न पक्षों के वकीलों की दलीलें सुनीं बहस की शुरुआत करते हुए याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि भारत सरकार पहले फ्रांस के साथ समझौते की घोषणा कैसे कर सकती है? उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में एक याचिका दायर कर इस मामले को संविधान बेंच के पास भेजने की मांग की गई है ताकि उनसे जाना जा सके कि क्या भारत सरकार ऐसे अनुबंध कर सकती है? वही इस मामले के एक याचिकाकर्ता आप नेता संजय सिंह के वकील ने कहा कि जब सरकार संसद में दो बार राफेल विमानों की कीमत का खुलासा कर सकती है तो फिर उसे सार्वजनिक क्यों नहीं किया जा सकता है। संजय सिंह के वकील सुभास भामड़े ने कहा कि सराकर ने संसद में विमान की कीमत 670 करोड़ रुपये बता चुकी है। इसके साथ ही बहस के दौरान उन्होंने कहा कि सरकार ने जो दस्तावेज दिए हैं उनमें इसका जिक्र तक नहीं किया गया है कि क्या प्रधानमंत्री ने राफेल डील की घोषणा करने से पहले रक्षा अधिग्रहण परिषद तथा कैबिनेट कमेटी से मंजूरी ली गई थी कि नहीं।
Lawyer for AAP MP Sanjay Singh tells #SupremeCourt that the Govt has already declared price of the #Rafale aircraft at least twice. He points out MPs Defence Subhash Bhamre has told the Parliament that cost of a #Rafale aircraft is Rs 670 Crore | @News18Courtroom https://t.co/0IEi8Uwp4c
— Utkarsh Anand (@utkarsh_aanand) November 14, 2018
आप नेता संजय सिंह के वकील की दलील के जवाब में एटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुनवाई कर रही जजों की पीठ को बताया कि राफेल विमान की कीमत गोपनीयता के कारण नहीं बताई जा सकती। क्योंकि इससे हमारे विरोधी फायदा उठा सकते हैं जिनके बारे में हम जानते तक नहीं हैं। साथ ही उन्होंन कहा कि संसद में जहाज की बेसिक कीमत के बारे में बताया गया था।
Attorney General tells #SupremeCourt that secrecy on pricing of #Rafale aircraft is with respect to the weaponry and certain other components that we don't our adversary to know. The cost disclosed in the Parliament was only regarding the basic craft | @News18Courtroom https://t.co/jfSxPiWFYJ
— Utkarsh Anand (@utkarsh_aanand) November 14, 2018
दोनो तरफ की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि हमें यह निर्णय लेना होगा कि क्या कीमतों के तथ्यों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए या नहीं? पीठ ने कहा कि तथ्यों को सार्वजनिक किये बगैर इसकी कीमतों पर किसी भी तरह की बहस का सवाल नहीं है।
#SupremeCourt clarifies the Govt doesn't need to respond to the petitioners' contentions on the pricing at the moment.
"Until we decide pricing needs to be debated, there is no need for you to reply to petitioners on this aspect," #CJI tells Attorney General | @News18Courtroom https://t.co/6cykzpFEp9
— Utkarsh Anand (@utkarsh_aanand) November 14, 2018
वहीं भूषण ने खुद तथा पूर्व केंद्रीय मंत्रियों यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी की ओर से न्यायालय में उपस्थित हुए। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार गोपनीयता की आड़ में जानकारी छिपा रही है। उन्होंने कहा कि फ्रांसीसी सरकार ने डील के सबंध में कोई सॉवरेन गारंटी नहीं दी थी। इतना ही नहीं प्रशांत भूषण ने दलील देने के दौरान कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पहले से तय विमानों की संख्या घटाने का अधिकार ही नहीं है। इस तरह के रक्षा सौदों के लिए एक विशिष्ट प्राधिकरण है।
"#PM had no authority to make the new deal with lesser number of aircrafts. It was in violation of the procedure. There is a specific authority to vet such defence deals…The delivery has only been delayed and thus the argument on quicker procurement falls flat", Bhushan to SC https://t.co/GcBRncdSXY
— Utkarsh Anand (@utkarsh_aanand) November 14, 2018
प्रशांत भूषण की इस दलील को वरिष्ठ पत्रकार सुशांत सिन्हा ने मूर्खतापूर्ण बताया है।
चीन/पाक दोनों मोर्चों पर फाइटर जेट्स की कमी की वजह से भारत कमजोर था और प्रशांत भूषण के मुताबिक वायुसेना के परखे रफेल के लिए इंटर गवर्नमेंटल एग्रीमेंट के पहले टेंडर निकालना चाहिए था।पहला तो ये मूर्खतापूर्ण तर्क है,दूसरा ये कि DPP2006 से नियम है कि ऐसे सौदों में IGA ही होना चाहिए। pic.twitter.com/gy0iLWAWZY
— Sushant Sinha (@SushantBSinha) November 14, 2018
राफेल डील पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई को दौरान हुई बहस के तहत जब पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी को अपनी बात कहने का मौका मिला तो उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि वर्तमान सरकार ने ऑफसेट की बातों को बाद में बदला है। उन्होंने कहा कि इस समय दसॉल्ट कंपनी भी आर्थिक तंगी से जूझ रही है, यही कारण है कि उन्होंने सरकार की हर बात मानी और रिलायंस के साथ करार किया। इस डील से दसॉल्ट को भी फायदा हुआ। उन्होंने कहा कि राफेल डील का फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिना रक्षा मंत्री और रक्षा मंत्रालय की सलाह लिए किया है। शौरी ने अपनी बात के समर्थ में कहा कि जब इस मामले में पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर से पूछा गया था तो उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि यह डील देश के प्रधानमंत्री मोदी और फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति के बीच हुई राजनीतिक बातचीत के तहत तय हुई है। साथ ही उन्होंने इस डील के लिए प्रधानमंत्री का समर्थन करने की बात भी कही थी। इसके अलावा उन्होंने कुछ नहीं कहा था।
Arun Shourie also gets chance to argue briefly before #SupremeCourt in #Rafale case. He questions lack of experience of the Indian off set partner to be picked up by #Dassault. Shourie also emphasises it is public money and hence secrecy surrounding #Rafale pricing is curious. https://t.co/aU68MRf774
— Utkarsh Anand (@utkarsh_aanand) November 14, 2018
याचिकाकर्ताओं के वकीलों की दलीले सुननें के बाद सुप्रीम कोर्ट एटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से कहा कि वह इस मामले में भारतीय वायुसेना के किसी जिम्मेदार अधिकारी से बात करना चाहता हूं। क्या वे इस वक्त कोर्ट परिसर में मौजूद हैं? वेणुगोपाल ने जब कहा कि आईएएफ के अधिकारी तो मौजूद नहीं हैं लेकिन रक्षा मंत्रालय के अधिकारी मौजूद हैं कोर्न ने साफ शब्दों में कहा कि रक्षा मंत्रालय के अधिकारी से नहीं बल्कि भारतीय वायु सेना के अधिकारी से बात करना चाहते हैं
#SupremeCourt seeks presence of a responsible #IAF officer in court. #CJI tells Attorney General the Court doesn't want an office from the MoD but the Air Force.
"We are dealing with the requirement of the Air Force. Somebody should have been here", says #CJI. @News18Courtroom https://t.co/9tBEt1fj3K
— Utkarsh Anand (@utkarsh_aanand) November 14, 2018
सुप्रीम कोर्ट की इस मांग पर एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने आपत्ति जताते हुए कहा कि राफेल विमान की खरीदारी की जांच करना सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में ही नहीं आता है। क्योंकि यह काम विशेषज्ञों का है। उन्होंने सवाल पीठ से सवाल किया कि क्या वे समझते हैं कि ऐसा करने में वे सक्षम हैं? इसलिए इस मामले में कोर्ट को दखल ही नहीं देना चाहिए।
Govt opposes judicial review of purchase of #Rafale aircrafts.
"It is for the experts to examine what kind of weaponry and avionics are required. Question is if the Court is really competent to deal with such an issue. Courts can't look into all this," AG to SC | @News18Courtroom https://t.co/KdJPQkT4JH
— Utkarsh Anand (@utkarsh_aanand) November 14, 2018
सुप्रीम कोर्ट के जजों की तीन सदस्यीय पीठ में शामिल जस्टिस केएम जोसेफ से केके वेणुगोपाल से वही प्रश्न पूछा जो मसला आप के सांसद संजय सिंह ने उठाया था। उन्होंने पूछा कि जब राफेल डील पर हुआ पुराना एग्रीमेंट वापस नहीं लिया गया उससे पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए डील की घोषणा कैसे कर दी? जस्टिस जोसेफ ने वेणुगोपाल से कहा कि यह सवाल इसलिए है क्योंकि आप ने अपने नोट में कहा है कि पुराने एग्रीमेंट वापस लेने की प्रक्रिया मार्च 2015 में शुरू की गई थी और जून में पूरी कर ली गई।
#Rafale: Justice KM Joseph asks AG how did the #PM announce about the new deal even before the RFP of the old agreement was to be withdrawn.
As AG struggles to answer, #CJI comes to his help. "Your own note says process of withdrawal had begun in Mar 2015 & was concluded in June" https://t.co/QWUZt7D4Z3
— Utkarsh Anand (@utkarsh_aanand) November 14, 2018
राफेल डील पर बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान जजों ने राफेल डील से जुटे ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट के बारे में भी पूछा। सुप्रीम कोर्ट के ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट के बारे पूछे गए सवाल के जवाब में सरकार ने कहा कि आप मुख्य कॉन्ट्रैक्ट को ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट से पूरी तरह अलग नहीं कर सकते हैं। सरकार ने कहा है कि अगर ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट बाद में अलग से किया जाता तो वह देश हित में नहीं होता।
SC questions Govt on offset partner in #Rafale case: "You can't completely separate main contract from the offset contact. It may not be in the country's interest if the offset contract is executed later because that may lead to delay in production by the offset partner," says SC https://t.co/7WZZWeNhxe
— Utkarsh Anand (@utkarsh_aanand) November 14, 2018
राफेल डील पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान चली चार घंटे की बहस का अंत एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने यह निवेदन करते हुए किया, कि आप सब जानते हैं कि कारगिल युद्ध के दौरान हमने अपने कितने सैनिक गंवाए? उन्होंने कहा कि अगर उस समय हमारे पास राफेल जैसे विमान होते तो हम अपने कई सैनिकों का जीवन बचा सकते थे। क्योंकि यह विमान 60 किमी दूर से भी गोला दाग सकता था।
#Rafale: Attorney General ends his submissions: "We lost soldiers in #Kargil War. If there was Rafale at that time, we could have saved many lives. They could shoot over 60 km#CJI: Mr Attorney… #Kargil was in 1999-2000. #Rafale came in 2014.
AG: I meant it hypothetically. https://t.co/Vp8FImmVar
— Utkarsh Anand (@utkarsh_aanand) November 14, 2018
URL: who said what in supreme court hearing on rafale controversy
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