आदित्य जैन। यदि किसी व्यक्ति ने आचार्य रजनीश जैन अर्थात ओशो जैसे बहुआयामी साधक से दीक्षा ली हो वह सनातनी हिन्दू के सारे कर्तव्यों का पालन करता हो गोरख की नाथ परंपरा से जुड़ा हो पतंजलि योग सूत्र के ध्यान को सिद्ध करने वाले आशुतोष महराज की क्रियाओं को समझता हो स्वामी रामदेव जैसी सांगठनिक कुशलता रखता हो कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास जैसी वैचारिक – लेखन प्रतिभा वाला हो चाणक्य नीति का जानकार हो तथा वैश्विक विचारधाराओं की उत्पत्ति के कारणों को निर्बीज करने का साहस व दम रखता हो तो उसकी क्षमताएं अद्भुत होती हैं।
यह कुशलताओं का समूह जिसके पास होगा, वही भारत में सांस्कृतिक पुनर्जागरण की रणभेरी बजाएगा ।इसका प्रारम्भ भारत के कई स्थानों पर एक साथ हो रहा है। आप इस रणभेरी को सुन पा रहें हो या नहीं, ये अलग बात है । एक रणभेरी हमारे श्री संदीप देव जी ने बजानी प्रारम्भ कर दी है। यदि आप रणभेरी न बजा पाए तो बजाने वाले के साथ हो जाएं। इससे भी बहुत मदद मिलेगी, जिसके फलस्वरूप पंच मक्कार अपने कानों को बंद करके इधर – उधर भागते हुए नजर आएंगे ।
समानता, स्वतंत्रता और न्याय की मांग को लेकर देश को अशांत करना, मानवाधिकार, नारीवाद, धार्मिक अधिकार, लोकतंत्र जैसे शब्दों का प्रयोग करके एक वर्ग को दूसरे वर्ग से लड़ाने की साजिश करना, पुरुष को स्त्री से , एक भाषा को दूसरी भाषा के व्यक्ति से , अमीर को गरीब से , व्यापारी को नौकरी पेशा से, छात्रों को शिक्षकों से, विभिन्न जातियों को एक – दूसरे से लड़ाना तथा समाज को अस्थिर करने की मंशा को उजागर करने का समय आ गया है ।
ये पंच मक्कार देश की व्यवस्थाओं और संस्थाओं में केवल समस्या गिनाते हैं। प्रश्न करते हैं। इनके पास न तो कोई समाधान है और न कोई उत्तर है। सांस्कृतिक पुनर्जागरण के यज्ञ में इन पंच मक्कारों की कुटिलता की समिधा से ही सनातन की लौ में लालिमा आएगी । सांस्कृतिक पुनर्जागरण का अर्थ क्या है ? यह समझ लेना बहुत आवश्यक है। पुनर्जागरण का तात्पर्य है – पुन: जागना। फिर से जागना। अर्थात हम इसके पहले भी जाग रहे थे । लेकिन किसी कारण से हम सो गए। हम पहली बार सोए हैं , ऐसी बात नहीं है। हज़ारों वर्षों के इतिहास में ऐसा कई बार हुआ है : –
1 याज्ञवल्क्य द्वारा यजुर्वेद का परिशोधन करके शुक्ल यजुर्वेद का संकलन किया गया तथा उसके चालीसवें अध्याय के रूप में प्रथम उपनिषद की रचना करके भारत में आध्यात्मिक पुनर्जागरण का प्रारम्भ किया । इसके बाद से ही उपनिषदों की रचनाओं की परंपरा प्रारम्भ हुई । इसके पूर्व वेदों में कर्मकाण्ड , मंत्र एवम् दर्शन के सिद्धांत आपस में मिश्रित रहते थे । जिसे समझने में बहुत कठिनाई होती थी । जिस प्रकार याज्ञवल्क्य जी ने उपनिषदों की रचना प्रारम्भ करवाई , उसी प्रकार सनातनी भी अपने नरेटिव को पहले बना सकता है और फिर अन्य लोगों से बनवा सकता है ।
2 बौद्धों के बढ़ते यौनाचार व कायरता को तथा वैचारिक रूप से खंड – खंड हो गए भारत को, आदि शंकाराचार्य ने सांस्कृतिक रूप से चार मठ बनाकर, अखाड़े परंपरा को पुनर्जीवित करके तथा अद्वैत वेदांत के दर्शन की स्थापना करके, एकीकृत किया। यह भी पुनर्जागरण था। शंकर की तरह आज भी सनातनी विकृत यौन कुंठा भरने के प्रयास, परिवार – विवाह आदि संस्था को नष्ट करने के प्रयास को समानांतर व्यवस्था खड़ा करके ध्वस्त कर सकता है। जैसे indiaspeaksdaily के ओटीटी प्लेटफॉर्म के पौराणिक ऑडियो बुक्स बचपन से ही बच्चों में संस्कारों को पोषित करेंगे ।
3 भारतीय परंपरा में गोरखनाथ जितने प्राचीन हैं , उनके अनुयायी उतने ही समकालीन हैं। लगभग एक हजार ईसवी में नाथ परंपरा के प्रतिनिधियों ने भारत वर्ष में घूम – घूम कर सनातन की अलख जलाए रखी। इसका विस्तृत वर्णन पंजाबी , राजस्थानी , मराठी , गुराती , तमिल , तेलगु , बंगला आदि साहित्य में प्राप्त होता है । इस संदर्भ में इतिहासकारों को या तो बहुत कम पता है या उन्होंने जानबूझकर छुपा लिया है ।
4 वल्लभाचार्य जी ने भक्ति आंदोलन चलाकर भारतीयों को पुन: जगाया । तथा कई संप्रदायों को एक किया। वैष्णव , शाक्त , गाणपत्य , सिख , उदासी , ब्राह्मण , चैतन्य , आडयार , रामानुज , माध्व , रामावत , निंबार्क , सहजिया , भागवत आदि संप्रदायों में एकता स्थापित की तथा भारतीयों की सुप्त हो गई चेतना को भक्ति के माध्यम से जगाया ।
5 स्वतंत्रता आंदोलन के समय भी स्वामी विवेकानंद, लोकमान्य तिलक, वीर सावरकर, गोलवलकर जी, महर्षि अरविन्द आदि ने भी भारत में वैचारिक पुनर्जागरण का प्रयास किया। परन्तु वर्तमान में भारत को सांस्कृतिक पुनर्जागरण की आवश्यकता है। पुन: जागना है , लेकिन सांस्कृतिक रूप से। संस्कृति में सब कुछ आ जाता है। आहार , विचार, शयन , व्यापार, धार्मिक क्रियाकलाप, मंदिर, स्थापत्य, औषिधि, साहित्य, फिल्म, शिक्षा, राजनीति, न्याय व्यवस्था, प्राशनिक व्यवस्था , सामाजिक ढांचा, पारिवारिक सरंचना, मानसिक – भावनात्मक पक्ष, विचारधारा, आर्थिक सिद्धांत आदि को सनातन के अनुकूल करना होगा। मानवों को आत्म बोध , गौरव बोध , शौर्य बोध , पराक्रम बोध से भरना होगा तथा इतिहास को भी सुधारना होगा । यह सांस्कृतिक पुनर्जागरण मुख्यत: दो स्तरों पर होगा –
- प्रथम खंडन पक्ष
- द्वितीय मंडन पक्ष
खंडन पक्ष के अंतर्गत पंच मक्कारों की साजिशों को उजागर करना है । तथा इनके मंसूबों को तार्किक रूप से , जागरूकता फैलाकर लोगों को बताना है । इनके द्वारा किए जा रहे किसी भी ग़लत दुष्टतापूर्ण राष्ट्र विरोधी कार्यों का जवाब उसी भाषा में देना है , जिसमे ये समझते हों। इसके लिए साहित्य , फिल्म , प्रिंट मीडिया , विजुअल मीडिया , सोशल मीडिया यथा – यूटयूब , ट्विटर , इंस्टाग्राम आदि का भरपूर प्रयोग करना है ।
ग़लत नैरेटिव को पहचानना भी इसमें सम्मिलित है। जैसे अकबर महान नहीं, आताताई था। सिकंदर पोरस से हारकर वापस लौटा था। ग्रैंड ट्रंक रोड का जनक चन्द्रगुप्त मौर्य था। आर्य भारत के है थे। सिंधु – सरस्वती सभ्यता ही असली सभ्यता थी। आजादी सुभाष चन्द्र बोस के कारण मिली थी, न कि गांधी के कारण। मंडन पक्ष के अंतर्गत तीन चरण आते हैं –
- जानना या बोध
- जगाना या जागृति
- करना या कर्म योग
अपनी ऐतिहासिक , सामाजिक , दार्शनिक समृद्ध विरासत को जानना इसका प्रथम चरण है। भारत राष्ट्र के महान व्यक्तित्वों को पढ़ना ; भारतीय सनातन संस्कृति की कार्य विधि को गहराई से समझना तथा अधिक से अधिक लोगों को समझाना । यह जानना कि भारत में शस्त्र और शास्त्र दोनों का प्रयोग होता था । भारत के राजा चक्रवर्ती सम्राट हुआ करते थे । भारत लगभग – लगभग सभी विद्याओं का जन्मदाता था । इस तथ्य को अकादमिक रूप से जानकर सिद्ध करना ।
दूसरा चरण स्वयं के अंदर सनातनी व्यक्तित्व को जागृत करना है । जिसमें गौरव बोध कूट – कूट कर भरा हुआ है । जो इस्लामी गुलामी , क्रिश्चियन गुलामी और पश्चिम वैचारिक गुलामी जैसे शब्द कहने से डरता ना हो । जिसे पॉलिटिकली करेक्ट होने का कीड़ा ना लगा हो ।
तीसरा चरण कर्मयोग का आता है । अर्थात सनातन के अनुकूल आगामी सौ वर्षों की योजना पर काम करने का मन बनाना तथा अपनी – अपनी क्षमता के अनुसार इसमें लग जाना । सनातन के अनुकूल इको – सिस्टम बनाने का प्रयास करना । सेल्फ सस्टेनेबल वेंचर्स बनाना । समाज , राजनीति , कला , फिल्म , उद्योग , प्रशासन , शिक्षा , न्याय व्यवस्था सभी जगह इस सांस्कृतिक पुनर्जागरण करने वाले व्यक्तियों को प्रशिक्षित करना तथा उनकी पहुच सुनिश्चित करना ।
इसके अतिरिक्त भी सांस्कृतिक पुनर्जागरण के कई आयाम हो सकते हैं। भारतीय संत परंपरा को भारत में सनातन के विरुद्ध बनाए गए कानूनों को रद्द करने की मांग करनी होगी। शिक्षा व्यवस्था में व्यापक सुधार को जल्द ही शुरू करना होगा। परिवार संस्था को टूटने से बचाना होगा। सोलह संस्कारों की परंपरा को थोड़ा – बहुत करके प्रतीक रूप में ही हर सनातनी के घर में प्रारम्भ कराना होगा। तो आइए हम सभी सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रारंभ करें। राम की गिलहरी बन जाए और जो भी हमारी शक्ति हो , उसका पूर्ण रूपेण प्रयोग करें ।
जगा स्वयं में शक्ति सनातन की
जगा मेधा – संवेदना पुरातन की
तोड़ दे मैकाले का कलुषित आवरण
कर हिंदुत्व का पुन: विजयी जागरण
कितना सोएगा, तू कुंभकरण नहीं है
तू तो निंद्रा को जीतने वाला गुडाकेश है
यह सदी ही सनातन की है !
यह सदी ही भारत की है !
यह सदी ही भगवा की है !
लहलहा दे अपने पराक्रम कुछ इस तरह की,
विश्व का आसमान सनातनी हो जाए !
फैला दे अपने भगवा को कुछ इस कदर की,
सारी धरती ही पूजनीय बन जाए !
आखिर सनातन की कोख से जो निकला वो ” संतान ” कहलाया
आखिर ” भगवा ” को धारण करने वाला ही ” भगवान ” कहलाया
कर ले फिर से खुद में महाकाल का जागरण
आएगा ! आएगा !! आएगा!!! — ” पुनर्जागरण “
।।जयतु जय जय पुनर्जागरण पुरुष याज्ञवल्क्य शंकर वल्लभ गोरख ।।
(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग के गोल्ड मेडलिस्ट छात्र हैं । कई राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में अपने शोध पत्रों का वाचन भी कर चुके हैं। विश्व विख्यात संस्था आर्ट ऑफ लिविंग के युवा आचार्य हैं। भारत सरकार द्वारा इन्हे योग शिक्षक के रूप में भी मान्यता मिली है । भारतीय दर्शन , इतिहास , संस्कृति , साहित्य , कविता , कहानियों तथा विभिन्न पुस्तकों को पढ़ने में इनकी विशेष रुचि है और यूट्यूब में पुस्तकों की समीक्षा भी करते हैं। )
लेखक आदित्य जैन
सीनियर रिसर्च फेलो
यूजीसी प्रयागराज
adianu1627@gmail.com