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India Speaks Daily > Blog > इतिहास > गुलाम भारत > झूठ बोलना बंद कीजिए…1942 के आंदोलन से नहीं भागे थे अंग्रेज!
गुलाम भारत

झूठ बोलना बंद कीजिए…1942 के आंदोलन से नहीं भागे थे अंग्रेज!

ISD News Network
Last updated: 2018/06/27 at 9:37 AM
By ISD News Network 790 Views 8 Min Read
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8 Min Read
India Speaks Daily - ISD News
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आज संसद भारत छोड़ो आंदोलन की 75 वीं वर्षगांठ मना रहा है। संसद में इस पर आयोजित बहस में कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने भाजपा की मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर तंज कसा कि वह तो उस वक्त अंग्रेजों की मदद कर रही थी! कांग्रेस के लिए गांधी-नेहरू-इंदिरा-राजीव के अलावा इस देश में और किसी ने बलिदान नहीं दिया है, इसलिए उनके तकलीफ को समझा जा सकता है कि भाजपा क्यों सारे स्वतंत्रता सेनानियों का नाम भारत की आजादी से संसद के अंदर जोड़ रही थी! सोनिया गांधी को दुख है कि लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने वीर सावरकर आदि अन्य स्वतंत्रता सेनानियों का नाम क्यों लिया?

दरअसल नेहरूवादियों-कम्युनिस्टों ने 1942 के आंदोलन की सच्चाई से देश को अब तक गुमराह रखा है, इसलिए जनता को भ्रमित करने के लिए वह आज भी झूठ का सहारा ले रही है। 1942 के आंदोलन में संघ नहीं, बल्कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने अंग्रेजों की मदद की थी। तब के कम्युनिस्ट पार्टी महासचिव पी.सी.जोशी और अंग्रेज अधिकारी मैक्सवेल के बीच हुई गुप्त बैठकों का दस्तावेजी सबूत मेरी पुस्तक ‘कहानी कम्युनिस्टों की’ में मैंने दी है। इसके अलावा 1942 का आंदोलन किस तरह से गांधी ने सुभाषचंद्र बोस की बढ़ती लोकप्रियता से घबरा कर शुरु किया था, यह उस वक्त के अखबारों में मौजूद है। स्वयं तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने यह माना था कि उन्हें गांधी या कांग्रेस की वजह से नहीं, बल्कि सुभाषचंद्र बोस के कारण भारत छोड़ना पड़ा था। यह पूरा इतिहास मेरी दूसरी पुस्तक ‘हमारे श्रीगुरुजी’ में उपलब्ध है। इसी पुस्तक से वह हिस्सा निकाल कर मित्र सुजीत कुमार सिंह ने अपने वॉल पर शेयर किया था, जिसे मैं आपके समक्ष पेश कर रहा हूं। इसे पढ़कर आप जान जाएंगे कि भारत को आजादी 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन की वजह से नहीं, बल्कि 1946 के विप्लव की वजह से मिली थी। पढि़ए गुरु गोलवलकर जी की जीवन का वह अंश..

वास्तव में गांधी और सुभाष दो ध्रुव पर खड़े थे। गांधी भारत मे ब्रिटेन की सत्ता बनाये रखना चाहते थे, जैसा कि उनके 7 अगस्त 1942 के भाषण से स्पष्ट है। वही सुभाषचन्द्र बोस धूरी-राष्ट्र अर्थात जर्मनी, इटली और जापान की मदद से भारत से ब्रिटिश को खदेड़ने के प्रयास में जुटे हुए थे।

जापान ज्यो-ज्यो भारत के नजदीक आ रहा था, गांधी और नेहरू को यह डर सता रहा था कि “ब्रिटेन हार जाएगा और जापान भारत पर कब्जा कर लेगा?”, जबकि नेताजी जापान की मदद से भारत की आजादी के लिए लड़ रहे थे। जापान के साथ आजाद हिंद फौज की सेना भी लड़ रही थी।

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वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने भी अपने एक बयान में कहा कि “भारत छोड़ो आंदोलन बुरी तरह फ्लॉप रहा था!” अजित डोभाल ने आजादी के समय ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली के बयान के आधार पर ऐसा कहा था।

सन 1956 में ब्रिटिश प्रधानंत्री क्लीमेंट एटली भारत दौरे पर आए थे। उस वक्त कलकत्ता उच्चन्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायधीश पहनी भूषण चक्रवर्ती ने बातचीत के दौरान एटली से पूछ था कि “सन 1942 का ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ बुरी तरह से विफल रहा था, ब्रिटेन द्वितीय विश्वयुद्ध में जीत चुका था, इसके बावजूद उनकी सरकार ने भारत को आजाद क्यो किया ?”

ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने जबाब दिया “यह सुभाषचन्द्र बोस के भय था, सुभाषचंद्र बोस के कदम के कारण भारतीय सेना बगावत कर उठी थी। सेना के अंदर राष्ट्रीयता की भावना क़लग गई थी। हमने समझ लिया कि यही उचित समय है, जब हमे भारत से निकल जाना चाहिए ।”

जस्टिस पाहनी भूषण चक्रवर्ती के सवाल पर क्लीमेंट एटली ने जो जबाब दिया, वह इतिहास की दिशा मोड़ने वाला और आजादी दिलाने के नाम पर देश के अंदर गढ़ी गईं प्रतिमाओं को तोड़ने वाला साबित हो सकता था, इसलिए नेहरुवाद और वामपंथी इतिहासकारों ने देश की जनता से इस सच को छुपाया और इसे इतिहास के पाठ्य पुस्तकों का हिस्सा नही बनने दिया।

क्लीमेंट एटली के इस बयान की सच्चाई को बम्बई में 18 फरवरी से 23 फरवरी 1946 तक चले नौसेना के विद्रोह के आलोक में समझ जा सकता है।
यही नही, बम्बई के नौसेना का यह विद्रोह कलकत्ता और करांची बंदरगाह को भी चपेट में ले चुका था। पूरा अरब सागर उबाल चुका था। देश के सभी बंदरगाहो पर्ज खड़े 78 पोतों के 20 हजार नौ सैनिक ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह पर उतर आए थे।

नौ सेना के विद्रोह का ब्रिटेन पर इस कदर पड़ा कि विद्रोह के केवल एक दिन बाद 19 फरवरी 1946 को ही ब्रिटिश प्रधानमंत्री लार्ड एटली ने घोषणा की कि “वह भारत के प्रति नए दृष्टिकोण से सोच रहे है, इसलिए वहां कैबिनेट मिशन भेजा जा रहा है।”

7 अगस्त 1942 यानी भारत छोड़ो आंदोलन से केवल दो दिन पहले महात्मा गांधी ने कांग्रेस कमेटी में जो भाषण दिया, वह इस पूरे आंदोलन की सच्चाई को समझने में मददगार है। गांधी ने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ शुरु करने से दो दिन पहले ब्रिटेन को अपना मित्र बताकर उसकी बहादुरी का गुणगान किया था और वह जापान द्वारा ब्रिटेन पर हुए हमले से बिल्कुल घबराए हुए थे। नेहरू भी जापान के खिलाफ आग उगल रहे थे और उसके खिलाफ गुरिल्ला सेना बना कर लड़ने की बात कह रहे थे जबकि भारत को गुलाम ब्रिटेन ने बना रखा था न कि जापान ने! राममनोहर लोहिया तक ने लिखा है कि ‘1942 के कुछ महीनों में नेहरू विक्षिप्त प्रतिक्रियाएं व्यक्त कर रहे थे।’ सोचिए, स्वयं गांधी का भाषण और उस वक्त नेहरू की सच्चाई से अवगत कराती और स्वतंत्रता आंदोलन में सहभागी लोहिया की किताब ‘भारत विभाजन का अपराधी’ मौजूद है, लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस-कम्युनिस्ट ने भारत की आजादी को 1942 के आंदोलन का परिणाम बताकर हमें और हमारे बच्चों को इसे घुट्टी की तरह पिला दिया है! इसे बदलने की जरूरत है और जो सच है, जो तथ्य है, उसे इतिहास की पाठ्य पुस्तकों का हिस्सा बनाने की आवश्यकता है। कम से कम आप लोग मेरी पुस्तक ‘कहानी कम्युनिस्टों की’ और ‘हमारे श्रीगुरुजी’ तो पढ़ ही सकते हैं और अपने बच्चों को वास्तविक इतिहास से अवगत करा ही सकते हैं!

साभार: Book: Hamare Shri GuruJi (Hindi) By: Sandeep Deo

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ISD News Network August 9, 2017
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