कांग्रस एक अलोकतांत्रिक पार्टी है, यह तो इसके वंशवादी चरित्र से स्पष्ट ही है, यह आराजक और अहंकारी है- दिनों दिन यह और स्पष्ट होता जा रहा है! जिस तरह से मंगलवार को लोकसभा में प्रधानमंत्री के भाषण पर कांग्रेसियोंने हंगाम किया और जिस तरह से बुधवार को राज्यसभा में प्रधानमंत्री के भाषण के बीच से सभी कांग्रेसी पलायन कर गए, वह यह साबित करता है कि कांग्रेस केवल बोलना जानती है, सुनना उसे पसंद नहीं! और जो नहीं सुनता, वह अलोकतांत्रिक तो है ही, अहंकारी और अराजक भी है।
आप देखें, कांग्रेसी हों, कम्युनिस्ट हों, आपा हो या फिर वामपंथी बुद्धिजीवी और पत्रकार- ये सभी एक तरफा यातायात में चलने के आदी हैं, जहां केवल ये बोल सकते हैं! दूसरे की बातों को सुनना इन्हें पसंद नहीं! पहले सोशल मीडिया ने और फिर 2014 से आए राजनीतिक परिवर्तन के कारण जब आम लोगों को बोलने की ताकत मिली तो संसद से लेकर मीडिया तक में बैठे कांग्रेसी-कम्युनिस्ट कुनबे का अलोकतांत्रिक चरित्र खुलकर बाहर आ गया!
इसी राज्यसभा में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नोटबंदी को ‘मोनुमेंटल लूट’ बताया था, लेकिन तब मोदी सरकार के मंत्रियों और एनडीए के सांसदों ने तो इतना हंगामा नहीं किया! सरकार अपनी बारी का इंतजार करती रही। पिछले संसद सत्र में नोटबंदी पर कांग्रेसी और विपक्ष, यहां तक कि बसपा की मायावती, सपा के रामगोपाल यादव, तृणमूल कम्युनिस्ट-सभी ने अपनी बात रखी, लेकिन जब सरकार द्वारा जवाब देने की बारी आई तो यह अलोकतांत्रिक धड़ा, सरकार को सुनने के लिए ही तैयार नहीं हुआ और पूरे शीतकालीन सत्र को बर्बाद कर दिया।
आज जब बजट सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर सरकार को अपना पक्ष स्पष्ट करने की बारी आई तो स्वाभाविक है कि सरकार शीतकालीन सत्र में उस पर लगाए गए आरोपों का जवाब भी देगी और यही इस देश के ‘अलोकतांत्रिक विपक्ष’ को पसंद नहीं आया! आप देखिए, लोकसभा में प्रधानमंत्री ने पूर्व सत्र में कांग्रेस के पप्पू युवराज राहुल गांधी द्वारा ‘भूकंप’ और इस सत्र में कांग्रेसी खड़गे द्वारा संसद के अंदर भाजपाईयों को ‘कुत्ता’ कहे जाने का केवल जवाब ही तो दिया था कि संसद से लेकर मीडिया तक में बैठा अलोकतांत्रिक धड़ा सक्रिय हो गया और प्रधानमंत्री को मर्यादा सिखाने लगा।
राज्यसभा में भी प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले सत्र में मनमोहन सिंह द्वारा नोटबंदी को ‘लूट’ बताए जाने का तथ्यगत जवाब ही तो दिया था! मनमोहन सिंह 35 साल से इस देश की अर्थव्यवस्था में निर्णायक पदों पर बैठे रहे हैं और देश के गांवों में आज भी बैंकों का अभाव है, हद है! मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री काल में इस देश में एक के बाद दूसरा सर्वाधिक बड़ा घोटाला होता चला गया। कोयला आवंटन घोटाला में तो स्वयं उन पर आरोप लगा। कोयला ब्लॉक आवंटन में तो एक बार उन पर अपराधिक मामला तक दर्ज होने की नौबत आ गई थी, क्योंकि नियमों को बदल कर उनके हस्ताक्षर से कोयला खदान को लूटने की इजाजत दी गई थी। कहा तो यहां तक गया कि एक बड़े ग्रुप ने प्रधानमंत्री कार्यालय में बैठकर अपने हिसाब से ब्लॉक आवंटित कराया!
मनमोहन सिंह के तब के मीडिया सलाहकार संजय बारू ने तो उन्हें ‘एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्ट’ तक लिखा, जो केवल फाइलों पर हस्ताक्षर करते थे, जबकि वास्तविक निर्णय तो 10 जनपथ से सोनिया गांधी लेती थी। इतिहास में मुगल बादशाह अकबर के कार्यकाल को ‘पेटीकोट सरकार’ की संज्ञा केवल इसलिए दी जाती है कि उनकी जगह उनकी धाय मां महम अंगा सारे निर्णय लेती थी! सोनिया गांधी तो मनमोहन सिंह की धाय मां भी नहीं हैं! फिर 2004 से 2014 की सरकार को ‘पेटिकोट सरकार’ क्यों न कहा जाए?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यही तो व्यंग्य किया कि ‘बाथरूम में रेनकोट पहन कर नहाना कोई मनमोहन सिंह से सीखे।’ अब इसमें क्या गलत है? एक लाख 86 हजार करोड़ का कोयला घोटाला और एक लाख 76 हजार करोड़ का 2जी घोटाला सहित पूरे देश को लूटने के लिए अनेक घोटाले होते रहे और कांग्रेसी नेता व पत्रकार ‘मनमोहन सिंह ईमानदार हैं’ का नारा गढ़ने में जुटे रहे! सरकार के मंत्री देश लुटते रहे और सरकार का मुखिया बेदाग रहा, यह कैसे संभव है? जबकि उसी लूट की कई फाइलों पर स्वयं प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह के हस्ताक्षर हैं! अब तो यह भी सामने आ गया है कि भगोड़े कारोबारी विजय माल्या को जब बैंक ने डिफाल्टर घोषित कर दिया था तो उसे लोन देने की सिफारिश भी मनमोहन सिंह ने ही की थी! अब इन्हें ‘लुटेरों का सरदार’ क्यों न कहा जाए? हां यह आरोप जरूर है कि लूट का माल 7 आरसीआर की जगह 10 जनपथ पहुंचाता रहा! अब इसकी वजह से मनमोहन सिंह ईमानदार हैं तो यह ‘बाथरूप में रेनकोट पहनकर नहाने’ वाली ही तो ईमानदारी हुई न?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, बड़े निर्णय में परिणाम आने में समय लगता है। लेकिन मनमोहन सिंह को देखिए, नोटबंदी का 50 दिन इंतजार किए बगैर इसे लूट बता दिया! अब ऐसे रीढ़ विहीन और ‘पेटिकोट सरकार’ चलाने वाले स्वाभिमान विहीन व्यक्ति को रेनकोट पहनकर नहाने वाला न कहें तो क्या कहें?
आप देखिए न, जब से वह दबा हुआ ई मेल बाहर आया है कि मनमोहन सिंह ने लुटेरे विजय माल्या को कर्ज दिलाने में निजी तौर पर मदद की, तब से कांग्रेसी युवराज और उनके चेले-चपाटों ने इस सरकार पर यह आरोप लगाना बंद कर दिया है कि मोदी सरकार ने विजय माल्या को भगाया! अब पप्पू युवराज क्यों चुप हैं? दरअसल शुरु से ही कांग्रेसी एक लुटेरी पार्टी, कांग्रेसी लुटेरे नेता और कांग्रेसी सरकार गजनी और गोरी की तरह इस देश को लूट-लूट कर खोखला करने वालों में रही है! इन लुटेरों के लिए ‘रेनकोट’ जैसे अति संभ्रांत शब्द का इस्तेमाल कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मर्यादा में रहते हुए अपनी बात संप्रेषित की है। वैसे भी यह चाणक्य का देश है, जिन्होंने कहा था- ‘शठे शाठ्यम समाचरे‘। दुष्टों के साथ दुष्टता का व्यवहार शास्त्रोचित है! पीएम मोदी ने दुष्टों को उन्हीं की भाषा में और मर्यादा में रहकर जवाब दिया है! याद रखिए, यह गूंगी सरकार नहीं है! अलोकतांत्रिक कांग्रेसियों को लोकतांत्रिक तरीके से जवाब कैसे दिया जाता है, यह इस सरकार को अच्छे से पता है!