जवाहरलाल नेहरू को सनातन धर्म से चिढ़ थी, लेकिन उनके जन्म के लिए उनके पिता मोतीलाल नेहरू ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया था। जवाहरलाल नेहरू को सनातन धर्म के कर्मकांड से इतनी चिढ़ थी कि उन्होंने कह रखा था कि मृत्यु के बाद उनकी अंतिम क्रिया न कराई जाए।लेकिन इंदिरा गांधी ने वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं व निकटवर्तियों की सलाह मानते हुए चंदन की लकड़ी से उनका अंतिम संस्कार कराया था। इसका जिक्र कुलदीप नैयर ने अपनी आत्मकथा ‘बियॉन्ड द लाइन्स’ में किया है।
ऐसा ही एक खुलासा गायत्री परिवार के संस्थापक पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ने अपने संस्मरण ‘सुनसान के सहचर’ में किया है। आचार्य लिखते हैं- ” श्री जवाहरलाल नेहरू के बारे में कहा गया है कि उनके पिता श्री मोतीलाल नेहरू जब चिरकाल तक संतान से वंचित रहे तो इसकी चिंता दूर करने के लिए हिमालय निवासी एक तपस्वी ने अपना शरीर त्यागा और उनका मनोरथ पूर्ण किया।”
इससे चार बातें निकलती हैं। पहला, यदि यह पुत्रेष्टि यज्ञ था, जैसा कि आदि काल में होता था तो फिर नेहरू के जन्म के लिए हिंदू विधि का उपयोग किया गया, जिस धर्म से वह आजीवन घृणा करते रहे।
दूसरा, भारत के पूरे इतिहास में पुत्रेष्टि यज्ञ में किसी ऋषि के प्राण त्यागने की बात नहीं आती है, जबकि भगवान राम सहित चारों भाई के जन्म से लेकर कई ऐसे उदाहरण मिलते हैं जिसमें उत्तम संतान के लिए राजाओं के कहने पर पुत्रेष्टि यज्ञ कराया गया, लेकिन ऋषि नहीं मरे!
इससे तीसरा बिंदू जो निष्कर्ष के रूप में निकलता है वह यह कि जवाहरलाल नेहरू का जन्म पौराणिक नियोग प्रथा से हुआ, जैसा कि वेदव्यास के नियोग से धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर का हुआ था, लेकिन तब भी वेदव्यास की मृत्यु नहीं हुई थी! लेकिन जवाहरलाल के लिए जिस ऋषि ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया या फिर मोतीलाल नेहरू की पत्नी से नियोग किया उनकी मौत हो गयी! यह बेहद आश्चर्यजनक और संदेहप्रद है!
संदेह यह होता है कि शायद इस मामले को दबाने के लिए नियोग के बाद उस ऋषि की हत्या कर दी गयी हो या उन्हें गायब करा दिया गया हो! जो भी हो जिस इतिहास की पुस्तकों में वामंथियों ने जवाहरलाल नेहरू को ‘आइडिया आफ इंडिया’ के रूप में स्थापित किया है, वहां उनके जन्म के लिए किए गये हिंदू कर्मकांड वाले हिस्से को छुपा लिया गया है!
और चौथा बिंदू इसी से निकलता है कि शायद इसी कारण पूरी उम्र जवाहरलाल नेहरू को हिंदू धर्म और उसके कर्मकांड से नफरत रहा था! हिंदू कोड बिल, सेक्युलरिज्म को थोपना, अपनी मौत पर कर्मकांड न करने की सख्त हिदायत, बंटवारे के लिए पाकिस्तान के पक्ष में वोट करने वाले कट्टरपंथियों को जबरदस्ती रोकना आदि उनके कृत्य हिंदू धर्म के प्रति उनके आग्रह-पूर्वग्रह को दर्शाते कुछ उदाहरण हैं।
आचार्य श्रीराम शर्मा की इस किताब को आप इसलिए हल्के में नहीं ले सकते, क्योंकि उसमें लिखा है- “शासनादेश संख्या 29/70-1-200-15(7)2000, दिनांक- 24 जनवरी के अनुसार कला संकाय में, स्नातक स्तर पर हिंदी के यात्रा वृत्त के अंतर्गत पाठ्यपुस्तक के रूप में मान्य।” अर्थात यह किताब किसी विवि के हिंदी कोर्स में शामिल है। मैंने केवल तथ्य रखा और उसका विश्लेषण किया है। अपनी ओर से कुछ नहीं कह रहा हूं। पाठक चाहें तो पुस्तकों को पढ़ और जांच सकते हैं।
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। IndiaSpeaksDaily इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति उत्तरदायी नहीं है।