मुझे आश्चर्य है कि हिंदुओं का एक वर्ग इस कदर ‘सरकारी’ हो चुका है कि सनातन परंपरा को समझने की जगह उसे ढोंग, अविश्वास, मुहुर्त कुछ नहीं होता, जैसी मूढ़ता पर खुलेआम उतर गया है। इनको देखकर तब के सरकारी हिंदू राजराममोहन राय, महात्मा गांधी आदि की याद आती है, जो अंग्रेजों के हित में ऐसे ही कुतर्क गढ़ा करते थे।
अब सूतक-पातक को लीजिए। यह पितर, पिंड, गोत्र, प्रवर से जुड़ा होता है। सूतक-पातक को न मानने का तात्पर्य है कि आप इस्लामी ढंग से अपनी चचेरी-ममेरी बहन, गांव की लड़की के साथ वैवाहिक संबंध भी कल को बना लेंगे।
सूतक-पातक में अशुद्धि इसीलिए जोड़ा गया था कि अगली पीढ़ी को पता हो कि किस पिंड, प्रवर, गांव आदि तक उसके पितर का दायरा विस्तृत है और उनके साथ उसे कैसा समाजिक व्यवहार करना है। यदि राजा और मंदिर का पुजारी इस नियम में शिथिलता बरतता है तो पूरा समाज और सामाजिक बंधन शिथिल पड़ जाएगा, यह मूढ़ सरकारी हिंदुओं को कौन समझाए?
हमेशा से हिंदू परंपरा मानने वाले हिंदुओं ने गला कटवा कर और जनेऊ तौलवा कर धर्म को बचाया, वो तब भी कम संख्या में थे और आज भी कम संख्या में है।
महात्मा गांधी, राजा राममोहन राय आदि सरकारी हिंदू तब भी बड़ी संख्या में हिंदुओं को बर्गला रहे थे और आज भी बर्गला रहे हैं।
समय बदल गया, लेकिन हिंदुओं की मानसिक दशा आज भी पिछलग्गूपन से नहीं उबरी है! बिना अपने धर्म शास्त्र को पढ़े हिंदुओं का कोई उद्धार नहीं हो सकता। स्वयं की जगह वह दूसरों में अपना तारणहार ढूंढता-ढू़ंढ़ता ठूंठ होता जा रहा है!