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India Speak Daily > Blog > Blog > व्यक्तित्व विकास > विचार > अब क्या लिखेंगी ज्योति यादव एवं प्रिंट के सम्पादक?
विचार

अब क्या लिखेंगी ज्योति यादव एवं प्रिंट के सम्पादक?

Sonali Misra
Last updated: 2020/05/11 at 2:58 PM
By Sonali Misra 74 Views 10 Min Read
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10 Min Read
Hindu Organisation VHP, Bajrangdal and others observing Vijay Diwas on 25th anniversary of Babri mosque demolition date at Kar Sevak Puram in Ayodhya on Wednesday. Express Photo by Vishal Srivastav. 06.12.2017.
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दिल्ली में instagram पर एक ग्रुप का खुलासा हुआ है. पहले यह पता चला कि इस समूह में कुछ लड़के शामिल हैं, और वह दिल्ली के अमीर घरों के लड़के हैं. जैसे ही यह खबर आई वैसे ही सोशल मीडिया पर एक भूचाल आ गया. यह भूचाल, मामले की तह में जाने के स्थान पर तमाम तरह के दोषारोपण किए जाने लगे. यह दोषारोपण लड़कों पर थे, उनकी परिवरिश पर थे और इन सबसे बढ़कर यह आरोप भारतीय या कहें हिन्दू मूल्यों पर थे, पूरी की पूरी लड़ाई हिंदुत्व और भारतीय परिवारिक मूल्यों पर टिक गयी. और जो सबसे शर्मनाक था कि इन सबमें भाजपा एवं समस्त राष्ट्रवादी संगठनों के पुरुषों को भी लक्ष्य बनाया गया.

प्रिंट में प्रकाशित एक लेख में ज्योति यादव ने  पूरी तरह से बात घुमाकर भाजपा के नेताओं पर डाल दी, मगर उनका यह प्रक्षेपण तब पूरी तरह से विफल हो गया जब पुलिस की जांच में यह बात सामने आई कि जो अश्लील चैट कर रही थी, वह एक लड़की थी, जो लड़कों को सबक सिखाने के लिए यह सब कर रही थी! अब जब यह तय हो गया है कि यह चैट लड़के नहीं लडकियां कर रही थीं, तो लड़कों को कोसने वाले तमाम लेखक और लेखिकाओं के सामने भी यह प्रश्न है कि क्या किया जाए और जो पूरा का पूरा लेख केवल भाजपा के विरोध में लिखा है, उसका क्या किया जाए? आइये पहले ज्योति यादव के लेख की बात करते हैं!

ज्योति यादव जब इस लेख में बच्चों की मानसिकता पर बात करती हैं तो उन्हें समय के साथ आए उस नैतिक क्षरण की बात करनी चाहिए, जिस नैतिक शिक्षा को राजनीति के आधार पर बंद कर दिया गया.  नैतिक शिक्षा मात्र बच्चों के चारित्रिक ही नहीं अपितु मानसिक विकास के लिए भी आवश्यक है. यह ऐसी शिक्षा है जो बच्चों को सही और गलत में भेद करना सिखाती है. जब ज्योति यादव रेप कल्चर की बात करती हैं तब उन्हें उस रेप की भी बात करनी चाहिए जो भारत की आत्मा के साथ हुआ. भारत के महान दर्शन को वैकल्पिक अध्ययन के नाम पर संकुचित और संकुचित किया गया. वैकल्पिक अध्ययन का अर्थ विषय का विस्तार होता है, परन्तु भारत में जिस प्रकार की वैकल्पिक पत्रकारिता हो रही है उसी प्रकार वैकल्पिक अध्ययन जो किया गया उसमें जिस दृष्टिकोण को ध्यान में लिया गया है, वह कतई वैकल्पिक नहीं.

पहले बच्चों को उनकी जड़ों से अलग किया गया, फिर उनके ह्रदय में नैतिक शिक्षा के प्रति अपमानजनक बोध भरा गया और जब पूरी तरह से जड़ों से दो तीन पीढ़ी कट गईं तो उस कटी पीढ़ी के बच्चों की हरकतों को लेकर आज उस देश की संस्कृति को आप बलात्कार की संस्कृति बता रही हैं, जहाँ पर शिव जैसे प्रेमी हैं. परन्तु यह प्रेम न तो ज्योति यादव को दिखाई देगा और न ही जहर उगलने वाले The print को.

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खैर अब आगे बढ़ते हैं और जब आगे बढ़ते हैं तो पाते हैं कि यह लेख वस्तुत: भाजपा के विरोध में लिखा हुआ है. ज्योति यादव जैसे पत्रकार और प्रिंट जैसे पोर्टल हर हाल में भाजपा को दोषी ठहराने के लिए जर्मीन आसमान एक करते रहते हैं. यद्यपि उन्होंने भाजपा, आप और कांग्रेस सभी की आईटीसेल का नाम लिया है, मगर यह बताने से भी नहीं चुकी कि दरअसल भाजपा के ही लोग सबसे नोटोरियस हैं. जब वह भाजपा के लोगों को इस तरह की उपाधि बाँट रही थीं तब उन्होंने कांग्रेस के नेताओं का अतीत ही नहीं वर्तमान भी भुला दिया. वह इन सभी लिखित रिकार्ड्स से नाता तोड़ चुकी हैं. या कहें सुविधाजनक रूप से भूल चुकी हैं. जब वह भाजपा के आईटी सेल के लड़कों की ट्विटर पर भाषा के बारे में लिखती हैं तो वह बहुत आराम से वामपंथी शोषण को भुला देती हैं. यही नहीं वह समाजवादी शोषण को भी भुला देती हैं. जब वह इस रेप कल्चर को लेकर यह बेसिरपैर का लेख लिख रही थीं तब उन्होंने अपनी ही बिरादरी के एक होनहार सदस्य रिजवाना की आत्महत्या से आँखें मूँद लीं.

ज्योति यादव जी का यह उद्देश्य है ही नहीं कि वह सच की तह में जाएं. जैसे ही रिजवाना की आत्महत्या में एक सपा नेता और वह भी मुस्लिम का नाम आया, वैसे ही रिजवाना को न्याय दिलाने का सारा आक्रोश ठंडा हो गया. क्या रिजवाना इन एजेंडा पोषक वेबसाइट्स का मात्र एक प्यादा थी? क्या ज्योति यादव तब भी इसी तरह शांत रहतीं जब आरोपी का नाम अंकित, राहुल या अशोक होता? और उसने हलके से टीका लगाया होता? क्या होता यदि उसने धोती पहनी होती? क्या होता यदि उसने भगवा अंगोछा डाला होता? यदि इनमें से एक भी होता तो लॉकडाउन का अब तक पूरी तरह से उल्लंघन होकर रिजवाना को न्याय दिलाने के लिए तमाम तरह के अभियान चलते लगते? भारत से लेकर अमेरिका तक हिन्दुओं द्वारा मुस्लिमों पर अत्याचार घोषित हो गया होता. अब तक फेसबुक पर तमाम क्रांतिकारी कविताएँ रच दी जातीं, कार्टून अब तक हर प्रगतिशील लेखक की वाल पर लग जाते और अब तक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दू पूरी तरह बदनाम हो जाता. परन्तु the print के लिए फीलान्सिंग करने वाली रिजवाना की आत्महत्या के बारे में प्रिंट ने भी जो रिपोर्ट लिखी है वह एकदम सपाट, एवं साधारण है. वह लिखते हैं

स्वतंत्र पत्रकार रिजवाना तबस्सुम ने किया सुसाइड, स्थानीय नेता के खिलाफ एफआईआर

परन्तु अब तक कोई खोजी पत्रकार यह नहीं पता लगा पाया कि वह स्थानीय नेता उसकी आत्महत्या के लिए जिम्मेदार कैसे था? रिजवाना की क्या शिकायत थी, क्या उसने उस स्थानीय नेता, जो मुस्लिम है और सपा का है, उसकी कोई शिकायत की थी? यदि वह आत्महत्या तक पहुँची, तो क्या वह एक दिन में आत्महत्या तक पहुँची होगी?

नहीं, यह परत दर परत बहुत बड़ी बात है, जिसे केवल एक आत्महत्या के कम्बल में दबा दिया है. सच्चाई क्या है? और सच्चाई क्यों छिपाई जा रही है? क्यों यह एजेंडा वेबसाईट अपनी ही पत्रकार के लिए खड़ी नहीं हो पा रही हैं? क्या कारण है?

कारण यह है कि इनका कोई उद्देश्य नहीं होता, इनका कोई लक्ष्य नहीं होता! इनका एक मात्र लक्ष्य होता है केवल और केवल हिंदुत्व और भाजपा को बदनाम करना. नहीं तो बॉयज लाकर रूम के बहाने कपिल मिश्रा पर निशाना क्यों साधना?

ज्योति यादव को यदि भाजपा या हिंदुत्व वाले पुरुष बलात्कारी लगते हैं तो उन्हें देश में होने वाले बलात्कारों की जातिगत और धर्म आधारित गणना करानी चाहिए या मांग करनी चाहिए!

इसीके साथ उन सभी मुस्लिम स्त्रियों के हलाला निकाह को भी बलात्कार की ही श्रेणी में गिनना चाहिए, जो उनकी मर्जी के बगैर होते हैं, मज़हब की आड़ में होते हैं.

क्या अभी तक यह कहीं से भी साबित हुआ है कि जो लड़के पकडे गए हैं क्या वह भाजपा परिवार के थे? या फिर वह यूंही कह रही हैं? यदि ज्योति यादव को यह पता चला है तो क्या नाबालिग आरोपियों के परिवार की जानकारी पत्रकार को किसी प्रकार दी जा सकती है? निर्भया का नाबालिग आरोपी के परिवार का अभी तक पता नहीं चला है, जबकि वह अपनी सजा पूरी कर चुका है. फिर ज्योति यादव इन लड़कों के बारे में धर्म आधारित या विचार आधारित टिप्पणी कर सकती हैं? अब जबकि यह पता लग गया है कि यह सब एक लड़की का किया धरा है तो क्या ज्योति यादव माफी मांग सकेंगी? ज्योति यादव सफूरा पर लिख सकती हैं, क्योंकि इस बहाने वह ट्विटर के हैंडल्स को अपना शिकार बना सकती हैं, उसके बहाने वह हिंदुत्व पर हमला कर सकती हैं, मगर वह रिजवाना पर शांत हैं? रिजवाना ने अपनी जान इन प्रोपोगैंडा और एजेंडा वेबसाइट के लिए दे दी है, मगर यह सब मौन हैं, ज्योति यादव जो इन घटनाओं के माध्यम से धर्म और हिंदुत्व के प्रति अपनी कुंठा निकाल रही हैं, उन्हें अपनी कलम थोड़ी सी रिजवाना के लिए भी खर्च करनी चाहिए.  और अब उन्हें थोड़ी कलम इसलिए भी खर्च करनी चाहिए क्योंकि यह मामला लड़कों द्वारा की जा रही बेशर्मियों का था ही नहीं!

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TAGGED: Hinduism, hindutva, Jyoti Yadav
Sonali Misra May 8, 2020
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Sonali Misra
Posted by Sonali Misra
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सोनाली मिश्रा स्वतंत्र अनुवादक एवं कहानीकार हैं। उनका एक कहानी संग्रह डेसडीमोना मरती नहीं काफी चर्चित रहा है। उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति कलाम पर लिखी गयी पुस्तक द पीपल्स प्रेसिडेंट का हिंदी अनुवाद किया है। साथ ही साथ वे कविताओं के अनुवाद पर भी काम कर रही हैं। सोनाली मिश्रा विभिन्न वेबसाइट्स एवं समाचार पत्रों के लिए स्त्री विषयक समस्याओं पर भी विभिन्न लेख लिखती हैं। आपने आगरा विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में परास्नातक किया है और इस समय इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से कविता के अनुवाद पर शोध कर रही हैं। सोनाली की कहानियाँ दैनिक जागरण, जनसत्ता, कथादेश, परिकथा, निकट आदि पत्रपत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं।
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