शुक्रवार को न्यूज़18 इंडिया पर अमिश देवगन ने देश के सूचना व प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से कई मुद्दों पर सवाल किये। उनसे मीडिया, टीआरपी और ओटीटी को लेकर प्रश्न किये गए। पूर्वानुमान था कि वे कुछ सवालों को राजनीतिक कौशल से टालने के प्रयास करेंगे। अमिश देवगन की स्विंग गेंदों को वे बाउंड्री से बाहर तो नहीं भेज सके लेकिन अपने दीर्घ राजनीतिक अनुभवों से सीखी प्रश्न टालने की कला उनके काम आ गई।
इस लंबे-चौड़े इंटरव्यू का कुल हासिल ये रहा कि विगत आठ माह से जारी जन विरोध उनको न दिखाई दिया है, न सुनाई दिया है। उन्होंने कहा ‘पत्रकारिता लोगों को गुमराह करने के लिए नहीं है।‘ मुझे हैरानी है कि उनके अपने कार्यकाल में पहली बार वे ये वाक्य बोले हैं। इस वाक्य का अर्थ ये होता है कि विगत आठ माह से ही पत्रकारिता लोगों को गुमराह कर रही है। उसके पहले की पत्रकारिता आदर्श थी और संभवतः इसलिए मंत्री जी ने इससे पहले ये गूढ़ वाक्य नहीं कहा था।
अमिश ने जावड़ेकर से प्रश्न किया कि टीआरपी को लेकर केंद्र सरकार क्या सोच रखती है। प्रश्न के उत्तर में वे कहते हैं ‘सरकार के समर्थन से टीआरपी चल रहा है। टीआरपी सिस्टम विज्ञापनदाताओं के लिए शुरु किया गया था।’ क्या शानदार जवाब है। इस उत्तर में भारत देश के वे लाखों दर्शक कहाँ हैं, जो देखना चाहते हैं कि गुणवत्ता के आधार पर कौनसा चैनल शीर्ष पर बना हुआ है। वे आगे कहते हैं ‘हम टीआरपी का नया स्वरुप लाने जा रहे हैं, जिस पर काम चल रहा है।’
वास्तव में उनको टीआरपी के नए सिस्टम की कोई जानकारी है ही नहीं। वे बता नहीं सके कि जो समिति उन्होंने बनाई है, वह आखिर अब तक क्या उखाड़ सकी है। उनका ये कहना कि परिवर्तित टीआरपी सिस्टम अच्छे परिणाम देगा, बताता है कि वे पूर्व स्थापित टीआरपी को बेहतर नहीं मानते।
क्या वे पूर्व में चले आ रहे बीआरसी रेटिंग सिस्टम को इसलिए बेहतर नहीं मानते कि पिछले एक साल के अंदर रिपब्लिक भारत ने आकर सभी चैनलों को पुरातन बनाकर रख दिया। प्रकाश जावड़ेकर नहीं बता सके कि उनकी समिति और उनका टीआरपी सिस्टम कब तक तैयार होगा।
अमिश देवगन के सवाल पर वे बड़ी लापरवाही के साथ कहते हैं ‘देखो महीना भर लग सकता है।‘ ये हमारे देश के सूचना व प्रसारण मंत्री हैं, जो एक बहुत ही संवेदनशील मुद्दे पर ऐसा अलसाया जवाब दे मारते हैं। जब इनसे मुंबई पुलिस कमिश्नर और टीआरपी को लेकर प्रश्न किया गया तो, ये असहज हो गए।
उस प्रश्न पर प्रकाश जावड़ेकर से अपेक्षा थी कि एक जिम्मेदार मंत्री की तरह जवाब देते। वे इस सवाल को सुप्रीम कोर्ट पर डाल देते हैं। वे नहीं बताते कि महाराष्ट्र में मीडिया और उद्धव ठाकरे सरकार के बीच चल रही लड़ाई पर केंद्र सरकार क्या नज़रिया रखती है।
अमिश ने जब उनसे सवाल किया कि अब तो ओटीटी प्लेटफॉर्म सरकार की निगरानी में आ गए हैं, सरकार क्या करेगी। प्रकाश जावड़ेकर कहते हैं ‘एक तरह से आप ये मान सकते हैं।‘ ये कैसा जवाब है। मंत्री जी को राष्ट्रपति महोदय ने अपने हस्ताक्षरित पत्र पर अध्यादेश सौंपा है।
उन्होंने आपको एक शक्तिशाली कानून दिया है। और आप कहते हैं ‘मान सकते हैं।’ वे मानते हैं कि ओटीटी पर कंटेंट को लेकर सैकड़ों शिकायतें आ रही हैं। वे कहते हैं कि मैं भी ओटीटी पर फ़िल्में देख रहा हूँ। यानि वे अच्छी तरह जानते हैं कि देश की जनता इस कंटेंट पर क्यों भड़की हुई है।
वे कहते हैं ‘हमें एक व्यवस्था तैयार करनी चाहिए।’ इस राजनीतिक कौशल से परिपूर्ण जवाब को देश किस तरह लेगा जावड़ेकर जी। उनके कहने का एक अर्थ ये भी निकलता है कि तकनीक का प्रयोग करने वाले बुद्धिमान मंत्री जी ने अब तक इस दिशा में कोई विचार ही नहीं किया है।
जबकि राष्ट्रपति ने केंद्र को पंद्रह दिन पूर्व अध्यादेश सौंप दिया था। महेश्वर के मंदिर में चुंबन दृश्य फिल्माने को लेकर अमिश देवगन ने प्रश्न किया। वे जानना चाहते थे कि नेटफ्लिक्स पर एफआईआर को लेकर प्रकाश जावड़ेकर क्या विचार रखते हैं। प्रकाश जावड़ेकर ने यहाँ फिर अपने राजनीतिक अनुभव का लाभ लेकर सवाल टाल दिया।
स्पष्ट है कि देश के सूचना व प्रसारण मंत्री की सोच देखकर देशवासी निराश ही होंगे। जिन मंत्री ने ओटीटी पर लगाम कसने को लेकर कोई विचार ही नहीं किया है, वे आगे कैसा सख्त कानून बनाने जा रहे हैं, स्पष्ट हो जाता है।
केंद्र सरकार के मुखिया नरेंद्र मोदी विचार करें कि ऐसे व्यक्ति को टीआरपी के नए सिस्टम की जिम्मेवारी देनी चाहिए, जो देशवासियों के सत्याग्रह को ही नज़रअंदाज़ कर देता हो। जिसे महेश्वर की घटना पर क्या जवाब देना है, ये पता नहीं हो। ऐसा व्यक्ति इस सिस्टम में रहेगा तो वामपंथी मीडिया के लाभान्वित होने के आसार घने दिखाई देते हैं।
ये सत्ता की मलाई खाने वाले मंत्री हैं। जनता क्या सोचती है, इससे इनको क्या लेना-देना। वैसे भी ये जनता से जुङे नेता तो हैं नहीं।