माँ के नाम पर जहरीला नकाब क्यों है?
ये जुबां राना जी की इतनी खराब क्यों है?
यह सवाल मैं नहीं पूछ रही हूँ यह सवाल इस देश की तमाम जनता पूछ रही है, कि आखिर राना जी की जुबान इतनी जहरीली क्यों है? उन्होंने उस अदब का पर्दा कहाँ उतार फेंका है जिस अदब का वह दावा भरते थे. दरअसल जो अदब वह चाहते हैं, वह अदब दुसरे किस्म का है, वह अदब है कि सलाम तो कहा जाए, पर राम राम न कहा जाए! वह हमें सलाम कहें, यह अदब है, मगर हम उनसे राम राम कहें, तो यह साम्प्रदायिकता है. मुनव्वर राना जैसे लोगों की लोग इज्ज़त करते थे, वह अपनी उर्दू से जो भी कड़वी कडवी बात हमें बता देते, और हम लोग मान लेते! सब कुछ इतना सहज चल रहा था. मगर फिर एक दिन देश में मोदी सरकार आ गयी. जिस इंसान को गाली देते देते इन लोगों की जुबां न थकती थी, वह अब देश का प्रधानमंत्री बन गया था. फिर उसके बाद एक असहिष्णु लॉबी ने, जो अपने जहरीले दिमाग से सबको जहर पिला कर अपनी संस्कृति से दूर करती रहती थी, अपना आपा खोना शुरू किया. जब इनका आपा खोना शुरू हुआ, फिर उनका सारा अदब गायब होना शुरू हो गया.
वह भी क्या दिन थे जब आप अपना सारा कालापन और सारा जहर सोनिया गांधी जी पर कविता लिखकर छिपा दिया करते थे. चापलूसी की हर सीमा पार कर दिया करते थे! जब आप सोनिया गांधी की तारीफ़ में पन्ने भरते हैं, और अपनी पक्षधरता उस तरफ दिखाते हैं तो पता चलता है कि आप भी मौत के सौदागर जैसी भाषा का समर्थन करने वाले ही होंगे.
आपने सोनिया गांधी के बारे में लिखा था
मैं तो भारत में मोहब्बत के लिए आयी थी,
कौन कहता है हुकूमत के लिए आयी थी।
मुझे लगता है कि इस सवाल का जबाव आदरणीय सीता राम केशरी या स्वर्गीय नरसिम्हा राव ही दे सकते हैं,! आपने सोनिया गांधी जी के विषय में लिखा कि सारे बच्चे मुझे राहुल की तरह दिखते हैं, तो समझ आ जाता है कि वह बाटला हाउस एनकाउंटर पर क्यों रोई होंगी?
खैर! मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में जब असहिष्णुता वाला मामला उठा तो पुरस्कार वापसी में यह भी थे और टीवी का वह लाइव शो सभी को याद होगा जब लाइव उन्होंने साहित्य अकादमी अवार्ड वापस किया था. खैर उसके बाद उन्होंने प्रधामनंत्री मोदी जी से मुलाक़ात भी की थी.
उसके बाद उनकी जुबान में तल्खी आती गयी. वह तल्खी बढ़ते बढ़ते जब नागरिकता संशोधन अधिनियम बना तो इनकी जुबां का जहर और सामने आया.
मगर वह जहर केवल सीएए का ही नहीं था, वह जहर था राम मंदिर पर आए निर्णय का! न जाने क्यों ऐसा हुआ कि जिस फैसले को लेकर मुस्लिम समुदाय यह कहता रहा कि उन्हें अदालत का फैसला मंज़ूर होगा, फैसला आने के बाद उसे बर्दाश्त नहीं कर पाया. आखिर जिस हिन्दू समुदाय ने उन्हें इतनी मोहब्बत दी कि उन्हें सिर माथे पर बैठा लिया, उस समुदाय के सबसे ज्यादा पूजे जाने भगवान के मंदिर के लिए वह खुश न हो पाए. आखिर क्या बात है कि लाखों हिन्दुओं का कत्ल करने वाले बाबर के साथ राना जी ने अपनी पहचान जोड़ ली और वह अपनी जुबां को इतना जहरीला बनाते गए कि यह कह गए कि एक हिन्दू को मुख्यमंत्री नहीं होना चाहिए?
यह कैसी साम्प्रदायिकता है रानाजी?
जब वह यह कहते हैं कि
“मिरे बच्चों में सारी आदतें मौजूद हैं मेरी
तो फिर इन बद-नसीबों को न क्यूँ उर्दू ज़बाँ आई”
वह एकदम झूठ कहते हैं, क्योंकि जो जहर इनमें है वही जहर इनकी बेटियों में है! देश की सर्वोच्च संस्था संसद में सर्वसम्मति से पारित विधेयक के विरोध में उनकी बेटियों ने भी अपनी भड़काऊ भाषणों से आग लगाने से परहेज नहीं किया और उनकी बेटियों पर मुकदमा दर्ज किया गया था.
आपने सही कहा था कि आपकी हर आदत आपके हर बच्चे में मौजूद है, तभी वह संसद का सम्मान नहीं कर पा रही थी. आपने सही कहा था कि आपकी हर आदत आपके बच्चों में मौजूद हैं, तभी वह भी बहुमत से चुनी हुई सरकार के निर्णय को स्वीकार नहीं कर पाईं, उसी तरह जिस तरह आप अभी तक स्वीकार नहीं कर पाए हैं.
परन्तु आपने जिस तरह से पूर्व न्यायाधीश के विषय में रंडी शब्द का इस्तेमाल किया है, वह बेहद अपमानजनक है! आपने कहा कि “रंजन गोगोई जितने कम दामों में बीके हैं, उतने कम दाम में हिन्दुस्तान की रंडी नहीं बिकती!”
यह बेहद अपमानजनक है! इस पंक्ति ने केवल यह ही नहीं दिखाया है कि आपके मन में न्यायालय के लिए आदर नहीं है, यह भी उतना ही सच है कि आपके दिल में औरतों के लिए इज्ज़त नहीं है. यह याद रखिये कि केवल माँ पर पंक्तियाँ लिखकर ही औरतों के लिए इज्ज़त नहीं दिखाई जाती, आपके शब्दों से भी इज्ज़त झलकनी चाहिए. मगर आप एक नंबर के दोगले इंसान हैं राना जी! एक तरफ आप माँ के लिए लिखते हैं कि
ज़रा सी बात है लेकिन हवा को कौन समझाये,
दिये से मेरी माँ मेरे लिए काजल बनाती है
तो वहीं लिखते हैं
क़दमों में ला के डाल दीं सब नेमतें मगर
सौतेली माँ को बच्चों से नफ़रत वही रही
राना जी, माँ केवल माँ होती है सौतेली या सगी नहीं! शायद आपने भारत भूमि को जाना नहीं, उसके इतिहास को और उसकी संस्कृति को जाना नहीं, यहाँ पर पन्ना धाय अपने पुत्र को कर्तव्य पथ पर न्योछावर कर देती हैं, जहाँ पर लोग अपने देश को माँ मानते हैं, वह सगी और सौतेली माँ में भेद नहीं करते! माँ को खांचों में मत बाँटिये, मगर आप बांटेंगे क्योंकि आपके लिए औरतें तवायफों से ज्यादा नहीं हैं! कभी कभी ऐसा लगता है जैसे आपने स्त्रियों के प्रति अपने घटिया विचार छिपाने के लिए माँ का सहारा लिया क्योंकि आपकी रचनाओं में तवायफों का ज़िक्र बहुत है जैसे”
बड़ी अजीब है दुनिया तवायफ़ों की तरह
हमेशा चाहने वाले बदलती रहती है
या फिर
तवायफ़ की तरह अपने ग़लत कामों के चेहरे पर
हुकूमत मंदिरों-मस्जिद का पर्दा डाल देती है
और जो सबसे ज्यादा स्त्रियों के लिए अपमानजनक है वह है जब आप उकताए हुए बदन में लिखते हैं:
लेकिन ख़्वाबीदा आरज़ूओं की शाहराह से गुज़रते हुए
लोग अपनी मंज़िल का पता भूल जाते हैं
इसी पता भूलने को समाज धर्म और मज़हब की आड़ ले कर ऐसी बे-हूदा गालियाँ देता है जो तवाइफ़ों के मोहल्लों में भी नहीं सुनाई देतीं या फिर जब आप लिखते हैं:
घर में रहते हुए ग़ैरों की तरह होती हैं
लड़कियाँ धान के पौदों की तरह होती हैं
नहीं राना जी, लडकियां धान के पौधों की तरह नहीं होतीं, काश आपने उर्दू से परे संस्कृत या भारत की संस्कृति को भी पढ़ा होता, मगर वह कैसे आप पढेंगे?
सच कह रही हूँ आज जब भी माँ जैसा शब्द आपके मुंह से सुनती हूँ तो घिन आती है आपकी सोच पर! कैसे आपने अपने घिनौने और जहरीले और निकृष्ट विचारों को छिपाने के लिए माँ जैसे शब्द का सहारा लिया. और हालांकि आपने चापलूसी की जो परम्परा सोनिया गांधी पर लिखकर शुरू की थी, उसी के सहारे आपने अपने हर गंदे शब्द को माँ शब्द के पीछे छिपा लिया!
अब नहीं, अब नहीं मुनव्वर जी, अब आपकी यह गंदी सोच, स्त्रियों को केवल बाजारू समझने वाली आपकी सोच बेपर्दा होगी! आपका जहरीला एजेंडा अब नहीं चलेगा! आपकी जुबां का जहर अब सबके सामने आएगा!
बहुत ही सुन्दर तरह से राना को धो दिया है,आपकी ब्यंग्य करने की शैली अत्यंत मर्यादित है।